Tuesday, November 4, 2014

पाखंड के निर्मम आलोचक थे कबीर



भक्तिकाल के कवियों में कबीर अपने किस्म के अलग ही कवि हुए। अपने समय से विपरीत चलते हुए उन्होंनेमठाधीशों को चुनौती दी। उनकी लोकप्रियता के कारण उनके जाने के कारण उनका एक पंथ बन गया। वे आलोचक के रूप में दिखाई देते हैं जब वे धार्मिक पाखंडों पर हमला करते हैं। वे आम जनता का विवेक जगाना चाहते हैं और बार बार तर्क से अपनी बातों को अपने दोहों में कहते हैं। परसाई जी इसी कारण से अपने को कबीर की परंपरा में रखते थे। कबीर के तर्क अकाट्य हैं और तिलमिला देने वाले हैं।
ये विचार हैं डा शिवकुमार शर्मा ’मलय’ के जो उन्होंने विवेचना संस्था द्वारा ’कबीर की प्रासंगिकता’ पर बात करते हुए व्यक्त किए। डा मलय के पूर्व विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने कहा कि कबीर के जाने के चार सौ साल बाद भी कबीर का लिखा हमारा मार्गदर्शन कर रहा है।
विषय पर बात करते हुए जी एस कॉलेज के प्राचार्य डा अरूण कुमार ने कहा कि कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। वे अनहद नाद की बात करते थे। वे अपने को ’हरि मोर पियु मैं राम की बहुरिया कहा करते थे। कबीर ने आज से चार सौ साल पहले एक जुलाहे के यहां पैदा होकर अपने ज्ञान, भक्ति और तर्क से एक नयी बयार बहाई जो आज भी हमें रास्ता दिखाती है। कबीर ने केवल स्थापित परंपराओं और कर्मकांडों पर ही प्रहार नहीं किया बल्कि भक्ति की एक अलग मार्ग भी सुझाया जो श्रेष्ठि वर्ग के मार्ग से बिल्कुल अलग था और समाज के निचले तबकों का प्रतिनिधित्व करता था।
इस अवसर पर संगोष्ठी में उपस्थित श्री हनुमंत शर्मा, बांकेबिहारी ब्यौहार, आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। हिमांशु राय ने बताया कि भविष्य में विवेचना संस्था द्वारा विभिन्न ज्वलंत विषयों पर संगोष्ठियां आयोजित की जाएंगी।

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