Friday, October 23, 2009

विवेचना का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह



रोचक नाटकों का सफल समारोह
विवेचना मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में काम करने वाली विख्यात संस्था है। विवेचना का गठन स्व हरिशंकर परसाई व उनके साथी बुद्धिजीवियों ने सन् 1961 में किया था। तब इसका उद्देश्य ज्वलंत मुद्दों व समस्याओं पर विचार गोष्ठियों का आयोजन करना था ताकि सच्चाई लोगों के सामने आए। आम जन सही तथ्यों को जानें और अपने स्वयं के विवेक व तर्क से निर्णय लें। सन् 1975 से विवेचना के नाट्य दल ने काम करना शुरू किया। तब से आज तक हर साल एक या दो नए नाटक और उनके मंचन, नाट्य कार्यशालाएं,बच्चों के शिविर आदि सभी कुछ निरंतर जारी है। विवेचना के नाटक देश के प्रतिष्ठित मंचों पर हुए हैं और बहुत सराहे गये हैं।
सन् 1994 से विवेचना द्वारा राष्टीय नाट्य समारोह का आयोजन शुरू किया गया। पहले साल का पहला दिन हबीब तनवीर जी के नाम रहा। उन्होंने ही नाट्य समारोह का उद्घाटन किया और देख रहे हैं नैन का शो किया। दूसरे दिन बंसी कौल, तीसरे दिन बा व कारंत और चैथे दिन सतीश आलेकर के नाटक मंचित हुए। इतनी मजबूत बुनियाद के साथ शुरू हुए विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोहों में अब तक देश के प्रमुख नाट्य निर्देशकों और नाट्य संस्थाओं व संस्थानों के नाटक मंचित हुए हैं। सर्वश्री हबीब तनवीर, बा.व.कारंत, बंसी कौल, सतीश आलेकर, देवेन्द्रराज अंकुर नादिरा बब्बर, दिनेश ठाकुर, दर्पण मिश्रा, उषा गांगुली, देवेन्द्र पेम, अरविंद गौड़, पियूष मिश्रा, रंजीत कपूर,, अनिलरंजन भौमिक, बलवंत ठाकुर, श्रीमती गुलबर्धन, अलखनंदन, लईक हुसैन, अशोक राही, विवेक मिश्र अजय कुमार, मानव कौल और वसंत काशीकर आदि द्वारा निर्देशित नाटक विवेचना के विगत समारोहों में मंचित हो चुके हैं। विवेचना के रा न समारोह में देश के अधिकांश प्रसिद्ध निर्देशक व नाट्य संस्थाएं शिरकत कर चुकी हैं।
विवेचना का रानास अब हर वर्ष दशहरे और दीपावली के बीच सप्ताह में बुधवार से रविवार तक आयोजित होता है। इस पांच दिनी समारोह में प्रायः 6 या 7 नाटक मंचित होते हैं। अब तक लगभग सौ नाटक मंचित हो चुके हैं। जबलपुर में विवेचना के रा ना स का एक बड़ा दर्शक वर्ग तैयार हुआ है। विवेचना का रा ना स शहर से कुछ बाहर की ओर स्थित म प्र वि मं के तरंग ए सी आॅडीटोरियम में आयोजित होता है। फिर भी नाटक शुरू होने से पहले पूरा हाॅल भर जाता है। बाहर कारों मोटर साइकिलों की कतार लग जाती है। ना समारोह के लिए टिकिट बेचना अब कोई समस्या नहीं है और न दर्शकों की संख्या की चिन्ता करना होती है। अंतिम दो दिनों में पचासों दर्शकोे को सीट के अभाव में वापस जाना होता है।
नाटक के प्रचार के लिये अखबार में एक समाचार ही पर्याप्त होता है जिसे साल भर इंतजार कर रहे दर्शक एक नजर में पढ़कर अपना कार्यक्रम तय कर लेते हैं। शहर में बैनर और आकर्षक पोस्टरों के माध्यम से भी दर्शकों को सूचना दी जाती है। इसके बाद दर्शक एक दूसरे को सूचना देना शुरू कर देते हैं और पूरे शहर में नाट्य समारोह देखने का एक माहौल बन जाता है। ये शहर की एक ऐसी गतिविधि बन चुकी है जिसमें जाना प्रतिष्ठा का प्रश्न है। और जो न गया हो उसके लिए हीनताबोध का।
विवेचना का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 7 अक्टूबर को ’मित्र’ नाटक के मंचन के साथ शुरू हुआ। इसका निर्देशन व प्रमुख भूमिका वसंत काशीकर ने निबाही। यह नाटक डा शिरीष आठवले ने लिखा है। यह एक ऐसे बुजुर्ग की कहानी है जिसे एक झगड़े में लगी चोटों के इलाज के समय लकवा जैसी बीमारी हो जाती है। इसके इलाज के लिए एक नर्स रखी जाती है जिससे दादा साहब बहुत चिढते हैं। नर्स सावित्री बाई रूपवते अपना काम करती है। धीरे धीरे दादा साहेब सामान्य होने लगते हैं। दादा साहब की लड़की उन्हें अमेरिका ले जाना चाहती है पर वे जाना नहीं चाहते। उसके लिए वे नर्स की मदद से अतिरिक्त मेहनत करते हैं और लगभग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। लड़की को विश्वास नहीं होता और वो उन्हें फिर भी अमेरिका ले जाना चाहती है। डाक्टर समझाता है कि ये चमत्कार दादासाहेब की इच्छा शक्ति का परिणाम है। मित्र नाटक मानवीय संबंधों को बहुत बारीकी से रेशा रेशा अलग करता है। दादा साहब पुरोहित और सावित्री बाई रूपवते के संबंध एक मरीज और नर्स के हैं। मगर बार बार ये संकेत देते हैं कि कुछ और भी हो सकता है। नाटककार ने सावित्री बाई रूपवते के रूप में एक अद्भुत आदर्श चरित्र विकसित किया है। नाटक में पिता पुत्री पिता पुत्र और पति पत्नी के संबंधों के अलग अलग रंग उभर कर आते हैं। लड़की के रोल में उदिता चक्रवर्ती, डा के रूप में संजय गर्ग, पुत्र के रूप में अभिषेक काशीकर ने सहज अभिनय किया है। नाटक मानवीय संबंधों के आदर्शांे को स्थापित करने में सफल है। विवेचना की यह प्रस्तुति बहुत पसंद की गई।
दूसरे दिन 8 अक्टूबर 2009 को महमूद फ़ारूख़ी और दानिश हुसैन ने दास्तानगोई प्रस्तुत की। उर्दू में कथाकथन की पांच सौ साल पुरानी परंपरा है। इसे इन दो कलाकारों ने पुनरूज्जीवित किया है। शुरू में महमूद ने दर्शकों को बताया कि वो क्या प्रस्तुत करने जा रहे हैं। दास्तानगोई क्या है और उसका इतिहास क्या है ये बताया गया। बातचीत पूरी शुद्ध उर्दू में थी। दास्तानें शुरू हुईं तो दर्शकों को कुछ समय लगा इस फ़न से जुड़ने में। थोड़ी देर बाद दर्शक और कलाकारों के बीच एक संबंध सेतु बन गया और फिर दर्शकों ने दास्तानों का पूरा आस्वाद लिया। अंतिम दास्तान 1947 के बंटवारे से संबंधित था। इससे दर्शकों ने बहुत जुड़ाव महसूस किया। दास्तानें केवल दास्तानें न रह कर एक पूरा संदेश बन गईं भाइ्र्र्रचारे का, सर्वधर्मसद्भाव का। धर्मान्धता और संकीर्णता पर दोनों कलाकारों ने बहुत समझदारी से हमला किया।
तीसरे दिन 9 अक्टूबर 2009 को रंगविदूषक, भोपाल के कलाकारों ने बंसी कौल के निर्देशन में ’तुक्के पे तुक्का’ का मंचन किया। यह नाटक करीब 15 वर्षों से हो रहा है और इसके मंचन देश और दुनिया के अनेक देशों में हुए हैं। यह एक चीनी लोककथा पर आधारित है। इस नाटक को राजेश जोशी और बंसी कौल ने लिखा है। बंसी जी के नाटकों की अपनी विशिष्टता है। रंगीन लाइट्स, रंगीन वेशभूषा, विदूषकों से रंगीन मेकअप वैसे भी दर्शकों को अच्छा लगता है। फिर कहानी को कहने के लिये ये विदूषक कलाकार सर्कसनुमा कम्पोजिशंस बनाते हैं। नाटक और मंच पर पूरे समय गति बनी रहती है। तुक्के पे तुक्का का नायक तुक्कू है जो गांव का एक चतुर युवक है जिसकी पढ़ाई लिखाई में कोई रूचि नहीं है पर वो चतुर है। वो शहर आकर राजा का चहेता बन जाता है और फिर अंततः घटनाक्रम ऐसा चलता है कि वो सुल्तान बन जाता है। नाटक में डिज़ायन कथ्य पर बहुत ज्यादा हावी दिखाई पड़ता है। नाटक की असली उपलब्धि अंजना पुरी का गायन है जो नाटक को बहुत ऊंचा उठाता है।
नाट्य समारोह के चैथे दिन 10 अक्टूबर 2009 को दिल्ली के पिरोज ट्रुप द्वारा ’मिर्जा ग़ालिब’ का मंचन किया गया। इसमें मिर्जा गालिब का किरदार प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता टाॅम आॅल्टर ने निभाया। यह नाटक मिर्ज़ा ग़ालिब की जीवनी बयान करता है। हाली को मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी आत्मकथा लिखवाते हैं और इसी दौरान मंच पर घटनाएं प्रदर्शित होती जाती हैं। लगभग दो घंटे के इस नाटक में ग़ालिब के जीवन को परत दर परत सामने लाया गया हैं। ग़ालिब के जीवन की अच्छी बुरी सभी घटनाओं को नाटक में दिखाया गया है। नाटक में टाॅम आॅल्टर ने अपनी अदाकारी से दर्शकों को बहुत प्रभावित किया।
नाट्य समारोह के अंतिम दिन 11 अक्टूबर को दिल्ली के दि एन्टरटेनर्स ने रंजीत कपूर के निर्देशन में ’अफ़वाह’ का मंचन किया। शहर के डिप्टी मेयर वीरेन्द्र नागपाल और कविता नागपाल अपनी शादी की दसवीं सालगिरह पर एक पार्टी देते हैं। इस पार्टी में पंहुचने वाले मेहमान एक अजीब मुसीबत में फंस जाते हैं जब वे पाते हैं कि उनका मेजबान खुद की चलाई गोली का शिकार हो गया है। उसकी पत्नि फरार हो चुकी है। राजेन्द्र वीरेन्द्र का वकील है इसीलिए वह इस घटना को छुपाने की कसरत शुरू करता है और शुरू होता हैै मनोरंजक घटनाओं, ग़लतफ़हमियों का लंबा सिलसिला। नाटक के मध्य तक तेज गति बनाए रखी गई और दर्शकों ने खूब मजा लिया। नाटक के संवाद मनोरंजक हैं। नाटक में सुमन अग्रवाल, अश्विन चड्डा, पूनम गिरधानी, हेमंत मिश्रा, रूमा घोष, अमिताभ श्रीवास्तव, मुक्ता सिंह, वामिक अब्बासी, शैलेन्द्र जैन और तबस्सुम ने बहुत अच्छा अभिनय किया। नाटक ने दर्शकों को आनंदित किया।
विवेचना के सोलहवें नाट्य समारोह में हर नाटक में एक स्वस्थ संदेश था। जबलपुर में परंपरा बन चुके इस समारोह का सफल समापन लगभग एक हजार दर्शकों की उपस्थिति में हुआ। विवेचना के इस समारोह में जहां मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों से रंगकर्मी नाटकों को देखने आए वहीं नाट्य समारोह के आयोजन का साक्षी बने अजित राय, संगम पांडेय और शिवकेश। नाट्य समारोह के अंत में विवेचना के सचिव हिमांशु राय और बांके बिहारी ब्यौहार व म प्र वि मंडल की ओर से श्री संतोष तिवारी ने सभी सहयोगियों, कार्यकर्ताओं और दर्शकों का आभार व्यक्त किया।