हरी भटनागर , अरुण कुमार और अलोक गच्च |
हरी भटनागर पाठ करते हुए |
श्रोता |
हिमांशु राय परिचय देते हुए |
श्री हरि भटनागर ने अपने नव प्रकाशित उपन्यास ’एक थी मैना एक था कुम्हार’ के कुछ अंशों का पाठ किया। इस उपन्यास की भाषा जनभाषा है। जिसमें एक सतत प्रवाह है जो पाठक को सहज ही अपने साथ बांध लेता है। नाटक के घटनाएं कभी यथार्थवादी हैं तो कभी फेंटेसी में जाती हैं। उपन्यास के बहाने उदारीकरण के बाद के देश का हाल हरि भटनागर कहते दिखाई देते हैं।
पाठ के पश्चात् श्री अरूण कुमार उपन्यास के बारे कहा कि यह आलेख आज की ग्रामीण सच्चाई का आलेख है। जिसमें सर्वहारा श्रमजीवी किन मुसीबतों और किन विरोधाभासों को शिकार हो रहा है इसका अनोखा विवरण है। उपन्यास में फेंटेसी के रूप में कभी मैना और कभी गधा भी बातें करते हैं। यह उपन्यास जल जंगल जमीन की लड़ाई का उपन्यास भी है और उदारीकरण की नीतियों से बदलते समाज का उपन्यास भी है जहां एक कुम्हार अपने गधे पर सामान ढ्रुलाई करता है वहीं उसका पड़ोसी एक ऑटो भी रखता है। नाटक की भाषा बहुत आसान है जो पाठक उपन्यास से जोड़कर रखती है।
इस अवसर पर प्रख्यात अभिनेता आलोक गच्छ भोपाल हरि भटनागर की कहानी ’माई’ का नाट्य मंचन किया। यह कहानी हरि भटनागर ने सन् 1980 में लिखी थी। 2006 में इसका पुनर्लेखन हुआ। यह कहानी मां की कहानी है। इसका मंचन आलोक गच्छ ने भोपाल और लंदन में किया है। जबलपुर में इसके मंचन को दर्शकों ने बहुत सराहा।
कार्यक्रम का संचालन हिमांशु राय ने किया। आभार प्रदर्शन राजेन्द्र दानी ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में वसंत काशीकर, बांकेबिहारी ब्यौहार, रमाकांत ताम्रकार ने अपना योगदान दियां।
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