Tuesday, November 4, 2014

थोड़ी शक्ति थोड़ा तमाशा, लेकिन मतलब के साथ





थोड़ी शक्ति, थोड़ा तमाशा लेकिन मतलब के साथ । जबलपुर के नवोदित रंगकर्मियों को यह सूत्र दिया सुप्रसिद्ध अभिनेता व निर्देशक जुगलकिशोर ने। भारतेन्दु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक श्री जुगलकिशोर ने विवेचना के आयोजन में आज जबलपुर के नवोदित रंगकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि एक अभिनेता को मंच पर अपनी उर्जा, अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन तो करना चाहिए लेकिन उसकी गतियों और भावाभिव्यक्तियों  में अर्थ भी होना चाहिए। इसके लिए कलाकार को केवल अभिनय ही नहीं वरन् अच्छे साहित्य का अध्ययन करना चाहिए। अभिनेता को अपने उच्चारण और बोली पर बहुत ध्यान देना चाहिए। हिन्दी उर्दू के शब्दों का सही उच्चारण हर कलाकार के लिए जरूरी है। चरित्र चित्रण के लिए उन्होंने कहा कि चरित्र की शारीरिक विशेषता, सामाजिक पृष्ठभूमि और उसकी मनोवैज्ञानिक अवस्था का अध्ययन करना आना चाहिए। उन्होंने फिल्म टी वी में जाने के इच्छुक कलाकारों को नाटक, फिल्म और टी वी के लिए अभिनय की अलग अलग तकनीकों को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि नाटक में अभिनेता का मंच पर प्रवेश बहुत मजबूत होना चाहिए। उसी से नाटक का भविष्य तय हो जाता है।
विवेचना द्वारा  दोपहर 2 बजे से भातखंडे सभागार में नवोदित नाट्यकलाकारों के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया। लखनउ से पधारे वरिष्ठ अभिनेता निर्देशक जुगलकिशोर ने वर्कशॉप में कलाकारों को अल्पसमय में ही कई रंग व्यायाम करवाये। कलाकारों से कुछ गतियों और भावाभिव्यक्तियों का अभ्यास कराया गया। विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने जुगलकिशोर जी का परिचय दिया। विवेचना के कला निर्देशक वसंत काशीकर व संजय गर्ग ने इस वर्कशॉप के संचालन में जुगलकिशोर जी का सहयोग किया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में श्री जुगलकिशोर ने गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता ’अंधेरे में’ का पाठ किया। कविता पाठ के पूर्व वरिष्ठ कवि मलय जी ने ’अंधेरे में’ कविता के पृष्ठभूमि और उसके महत्व की चर्चा की। हिमांशु राय ने रंगकर्मियों के लिए ’अंधेरे में’ कविता के महत्व और उसकी मंचीयता के बारे में कहा कि इस कविता के अनेक मंचन देश में हुए हैं। इसमें बिम्बों और विचारों का अद्भुत तालमेल है। जुगलकिशार ने लंबी कविता के चुनिंदा अंशों का पाठ किया।
अब तक क्या किया,
जीवन क्या जिया!!
बताओ तो किस-किसके लिए तुम दौड़ गये,
करुणा के दृश्यों से हाय! मुँह मोड़ गये,
बन गये पत्थर,
बहुत-बहुत ज्यादा लिया,
दिया बहुत-बहुत कम,
मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम!!
लो-हित-पिता को घर से निकाल दिया,
जन-मन-करुणा-सी माँ को हंकाल दिया,
स्वार्थों के टेरियार कुत्तों को पाल लिया,
भावना के कर्तव्य--त्याग दिये,
हृदय के मन्तव्य--मार डाले!
बुद्धि का भाल ही फोड़ दिया,
तर्कों के हाथ उखाड़ दिये,
जम गये, जाम हुए, फँस गये,
अपने ही कीचड़ में धँस गये!!
विवेक बघार डाला स्वार्थों के तेल में
आदर्श खा गये!

अब तक क्या किया,
जीवन क्या जिया,
ज्यादा लिया और दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम...!
कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ अभिनेत्री और साहित्यकार श्रीमती साधना उपाध्याय ने इस आयोजन को बहुत अहम् बताया। श्री बांकेबिहारी ब्यौहार ने आभार प्रदर्शन किया।   

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