Tuesday, November 4, 2014

अंधा युग के नाट्य पाठ से दर्शक प्रभावित

जब कोई भी मनुष्य अनासक्त होकर,
चुनौती देता है इतिहास को
उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है।
नियति नहीं है पूर्व निर्धारित
मानव इसे हर क्षण बनाता मिटाता रहता है।
उपरोक्त पंक्तियां हैं हिन्दी के सुप्रसिद्ध काव्य नाटक अंधा युग की जिसकी पाठ प्रस्तुति  विवेचना संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अभिनेता -निर्देशक जुगलकिशोर ने की। उन्होंने कहा कि ’अंधा युग’ नाटक सन् 1954 में रेडियो के लिए धर्मवीर भारती ने लिखा है। तबसे इस नाटक के हजारों मंचन देश और दुनिया में हर भाषा में और हर शैली में हुए हैं। धर्मवीर भारती ने महाभारत का गहराई से अध्ययन कर हर पर्व से घटनाएं और पात्र लेकर इसे रचा है। यह नाटक दूसरे विश्वयुद्ध में हुए विनाश की पृष्ठभूमि में लिखा गया हिन्दी का ही नहीं भारत का प्रथम युद्धविरोधी नाटक है। महाभारत के पात्र इसमें हर कोई अपनी अपनी त्रासदी और अपना अपना पक्ष रखता है।
युद्धोपरांत, ये अंधा युग अवतरित हुआ
जिसमें स्थितियां, मनोवृत्तियां, आत्माएं सब विकृत हैं
एक बहुत पतली डोरी मर्यादी की
पर वो भी उलझी है दोनों ही पक्षों में
धर्मवीर भारती ने अंधा युग के बहाने भूत भविष्य वर्तमान दोनों के बारे में जो टिप्पणियां की हैं वो आश्चर्यजनक हैं। समय का ऐसा विश्लेषण कोई महान कवि ही कर सकता है।
उस भविष्य में
धर्म अर्थ ह्वासोन्मुख होंगे
क्षय होगा धीरे धीेरे सारी धरती का
सत्ता होगी उनकी जिनकी पूंजी होगी
जिनके नकली चेहरे होंगे, केवल उन्हें महत्व मिलेगा
राजशक्तियां लोलुप होंगी, जनता उनसे पीड़ित होकर
गहन गुफाओं में छिप छिप कर दिन काटेगी
जुगलकिशोर जी द्वारा किए गए नाट्यपाठ ने श्रोताओं को गहरे तक प्रभावित किया। संवादों का उतार चढाव, हाव भाव बहुत प्रभावशाली थे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में हिमांशु राय ने कहा कि विवेचना द्वारा समय समय पर नाट्य प्रेमियों और साहित्य प्रेमियों के लिए ऐसे आयोजन किए जाते हैं जिनसे हम नई विधा और नए कलाकारों से मिल सकें। जुगलकिशोर भारत के जाने माने रंगकर्मी भी हैं और शिक्षक, अभिनेता, निर्देशक भी। नवोदित कलाकारों के साथ उनका संवाद बहुत जरूरी है। संजय गर्ग ने जुगलकिशोर जी का परिचय दिया। संजय गर्ग और वसंत काशीकर और अनिल श्रीवास्तव ने उनका गुलदस्ते से स्वागत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जबलपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री महेश गुरू ने की।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में अंधा युग के नाट्य पाठ के पश्चात् ’आज का रंगकर्म’ विषय पर बोलते हुए जुगलकिशोर ने कहा कि आज के अभिनेता को मालूम होना चाहिए कि आज का युग कैसा युग है। ब्रेख्त ने कहा है आज हम सब वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। विज्ञान सर्वोपरि है तो विचारों का आकलन तार्किकता के आधार, वैज्ञानिक दृष्टि से ही होगा। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि अभिनेता देश और व्यक्तियों के इतिहास और उनके कार्यों का मूल्यांकन करे। नाटक करने वाले के लिए जरूरी है कि वह देश के साहित्य से उसकी विविधता से परिचित हो। उन्होंने स्तानिस्लावस्की और जर्मन द्रामातूर का उदाहरण दिया जहां नाटक के पाठ के समय पहले कलाकारों को नाटक की पृष्ठभूमि और साहित्यिक मूल्यों से परिचित कराया जाता है। उन्होंने आज के समय में हिन्दी में आए कुछ नए नाटकों के मंचनों का ब्यौरा दिया और समकालीन थियेटर पर बात की।
कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन बांके बिहारी ब्यौहार ने किया।



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