Tuesday, November 4, 2014

प्रसिद्ध अभिनेता जुगलकिशोर जी का व्याख्यान और प्रस्तुति

विवेचना संस्था द्वारा सुप्रसिद्ध अभिनेता.निर्देशक साहित्यकारपूर्व निदेशक, भारतेंदु नाट्य अकादेमी लखनऊ  श्री जुगलकिशोर को जबलपुर में धर्मवीर भारती के नाटक "अंधायुग" के अंशों की सस्वर प्रस्तुति और आज के आधुनिक रंगकर्म के बारे में बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया है। आयोजन 26 जुलाई 2014 को संध्या 7 बजे रानी दुर्गावती संग्रहालय भंवरताल के डा हीरालाल कलावीथिका में आयोजित है। 27 जुलाई को भातखंडे महाविद्यालय के सभागार में दोपहर 2 बजे से जुगलकिशोर नवोदित रंगकर्मियों से संवाद करेंगे और 4 बजे से नगर के साहित्यप्रेमियों के बीच मुक्तिबोध की सुप्रसिद्ध कविता ष्अंधेरे मेंष् का पाठ करेंगे।
 लखनऊ वि वि में अध्ययन के बाद जुगलकिशोर जी ने भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ से अभिनय में विशेषज्ञता के साथ डिप्लोमा हासिल किया। विगत दो दशक से अधिक से वे अभिनय से जुड़े हुए हैं। पहले एक छात्र के रूप में फिर शिक्षक और सक्रिय रंगकर्मी के रूप में उन्होंने परंपरागत और लोकनाटकों के लिए अनथक कार्य किया। लगभग 25 वर्षों तक भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ में अध्यापन करते हुए वे 2008 से 2012 तक उसके निदेशक भी रहे।
वे नाट्य निर्देशकए नाट्य कलाकारए फिल्म कलाकारए मॉडल के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्होंने दबंग.2, पीपली लाइव, बाबर, कॉफी हाउस, मैं मेरी पत्नी और वो, कफन, हमका ऐसन वैसन ना समझा जैसी हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों में काम किया है और बह्म्र का स्वांग, पर्दा ए वसीयत, हल होना एक कठिन समस्या का, आदि टेलिफिल्मों में अभिनय किया है। जी वी अइयर की संस्कृत फिल्म श्रीमद्भगवतगीता, के हिन्दी संस्करण को उन्होंने बनाया जिसे 1993 का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला। उन्होंने मूक बधिर पर, लखनऊ के रंगमंच पर, मृत्यु दंड पर, युवाओं की समस्याओं पर,लखनऊ के हस्तशिल्प पर फीचर लिखे हैं जो अब एक दस्तावेज हैं। उन्होंने भांडों पर और बुन्देलखण्ड  के मार्शल आर्ट "पाई डंडा" पर शोध पत्र लिखे हैं। उन्होंने देश के विभिन्न शहरों में अनेक थियेटर वर्कशॉप का संचालन किया है। नौटंकी के परंपरागत कलाकारों और बी एन ए के छात्रों के साथ उन्होंने ष्सत्यवक्ता हरिशन्द्रष् नाटक तैयार किया।
जुगलकिशोर जी ने 30 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है। उनके नाटकों के चयन और उनके प्रयोगशील निर्देशन से समकालीन रंगमंच के राजनैतिकए सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पक्षों का पता मिलता है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी ब्रह्म का स्वांग या दारियो फो का नाटक एक अराजक की अचानक मौत हो जुगलकिशोर के निर्देशन में इन नाटकों से समाज के पाखंडों का पर्दाफाश होता है। जुगलकिशोर ने रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी "ताशेर  देश" का रूपांतर ताशों का देश अल्बर्ट कामू के नाटक "कालीगुला" भारतेन्दु के नाटक अंधेर नगरी रूसी उपन्यास पर आधारित "खोजा  नसरूद्दीन" कुरासोवा  की फिल्म का नाट्य रूपांतर मटियाबुर्ज, मोलियर के नाटक बिच्छू  अरबी कहानी अली बाबा, मुद्रा राक्षस के नाटक आला अफसर राकेश का नाटक माखनचोर  और होली जो छात्रों के आंदोलन पर आधारित है आदि नाटकों का निर्देशन किया है। वैश्वीकरण की समस्या और पूंजीवादी समाज की विकृतियों को उन्होंने अपने नाटकों का विषय बनाया है।
विवेचना के हिमांशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर, सीताराम सोनी, तपन बैनर्जी, संजय गर्ग, इंदु सूर्यवंशी, ब्रजेन्द्र सिंह, आयुश राय आदि ने नगर के रंगकर्मियों व साहित्यप्रेमियों से तीनों आयोजनों में उपस्थिति का अनुरोध किया है।  

विवेचना द्वारा कबीर जयंती के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन

 भक्तिकाल के महान कवि कबीर की जयंती 13 जून को मनाई जाती है। विवेचना संस्था ने इस अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है।
विवेचना द्वारा 13 जून 2014 शुक्रवार को संध्या 7.30 बजे जबलपुर में जॉय स्कूल राइटटाउन में (मोहनलाल हरगोविन्दास अस्पताल के निकट एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कवि डा मलय व प्रोफेसर डा अरूण कुमार कबीर की प्रासंगिकता पर अपने विचार व्यक्त करेंगे।
विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने सभी साहित्यप्रेमियों व कलाप्रेमियों से इस कार्यक्रम में शामिल होने का
अनुरोध किया है। 

Monday, November 3, 2014

जनसंस्कृति को नए सिरे से परिभाषित करना होगा-रामप्रकाश त्रिपाठी

आज का समय तेज वैज्ञानिक प्रगति और संचार माध्यमों का समय है साथ ही आक्रामक व्यापार का समय है। आज विश्व का कोई स्थान ऐसा नहीं है जहां संचार के माध्यम से संपर्क नहीं किया जा सकता हो। इन माध्यमों का परिणाम यह है कि हम चाहें या न चाहें, हमें पसंद हो या न हो, हर समाचार, संदेश और सूचना घर घर पंहुचाई जा रही है। इस प्रगति का सीधा संबंध संस्कृति से है। जिसे हम लोकसंस्कृति कहते हैं लोककलाएं कहते हैं उनका भी कच्चापन और अनगढ़पन गायब हो गया है और वे एक संश्लेषित रूप में सजधज कर हमें परोसी जाती हैं। इसीलिए इप्टा की स्थापना के समय जनसंस्कृति की जो समझ थी वो अब बदल चुकी है। उसे हमंे नई परिस्थिति में ढाल कर देखना होगा। समाज में बहुत से संसाधन आ गये हैं। मोटर कारें हैं, बहुत बडे बडे भवन हैं हर हाथ में मोबाइल है और हर किसी के पास कोई न र्कोई इंधन से चलने वाला वाहन है। पर फिर भी हमारे ही संचार माध्यम ये भी बताते हैं कि देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और देश में सत्तर करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं। उनकी आय 20 रूपये रोज से कम है। इन तथ्यों की रोशनी में हमें आज की जनसंस्कृति को समझना होगा। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि आज भी फूहड़ नाटक को देखने के लिए दर्शक नहीं जाते और अच्छे नाटक को देखने के लिए दर्शक जाते हैं। अच्छी प्रस्तुति के बारे में दर्शकों में एक सामान्य समझ है और उसका अवमूल्यन वो नहीं करते हैं।
ये विचार हैं लेखक, पत्रकार श्री रामप्रकाश त्रिपाठी के जो उन्हांेने विवेचना द्वारा आयोजित विचारगोष्ठी में ’जनसंस्कृति और आज का समय’ विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए। श्री रामप्रकाश त्रिपाठी भोपाल में प्रखर रंग समीक्षक, लेखक, और पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं।
कार्यक्रम के शुरू में इप्टा के

रामप्रकाश भाषण देते हुए 

इंद्रपाल सिंह जनगीत गाते  हुए 
राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य और विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने ’जनसंस्कृति दिवस’ के बारे में बताया कि इप्टा की स्थापना 25 मई 1943 को हुई थी। मुम्बई में पूरे देश से कलाकार इकठ्ठे हुए थे और इप्टा का गठन हुआ था। इप्टा ने देश के स्वाधीनता आंदोलन मंे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश के गांव गांव में फैले कलाकारों को मंच पर लाकर आम जनता की संस्कृति और आकांक्षाओं को उजागर किया।
विवेचना के इस आयोजन में इन्द्रपाल सिंह व साथियों ने मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत नग्में प्रस्तुत किये। उल्लेखनीय है कि अभी चार दिन पहले दिवंगत हुए कलाकार श्री अनिल पांडे ने इस संगीत के कार्यक्रम का संयोजन किया था मगर आज यह कार्यक्रम उनके बिना ही उनको याद करते हुए संपन्न हुआ। श्रोताओं ने महसूस किया कि पुराने फिल्मी गीत मानवीय मूल्यों को बहुत अच्छे तरीके से अभिव्यक्ति देते हैं।
कार्यक्रम का संचालन बंाके बिहारी ब्यौहार ने किया और आभार प्रदर्शन वसंत काशीकर ने किया।

हरि भटनागर का उपन्यास समकालीन समाज की कहानी कहता है


हरी भटनागर , अरुण कुमार और अलोक गच्च 
हरी भटनागर पाठ करते हुए 

श्रोता 

हिमांशु राय परिचय देते हुए 
 ३ मई २०१४ को विवेचना और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के द्वारा जाने माने कथाकार हरि भटनागर भोपाल का रचना पाठ रानी दुर्गावती संग्रहालय की कलावीथिका में आयोजित हुआ। हिमांशु राय ने हरि भटनागर का परिचय देते हुए कहा कि हरि भटनागर ने अपनी कहानियों से अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनाई है। कहानी कार और सम्पादक दोनों ही रूपों में उन्होंने अपनी योग्यता प्रमाणित की है। ’साक्षात्कार’ के सम्पादन से वे लंबे अर्से  तक जुड़े रहे और ’रचना समय’ के रूप में उन्होंने हिन्दी के पाठकों को अनेक संग्रहणीय अंक दिये हैं।
श्री हरि भटनागर ने अपने नव प्रकाशित उपन्यास ’एक थी मैना एक था कुम्हार’ के कुछ अंशों का पाठ किया। इस उपन्यास की भाषा जनभाषा है। जिसमें एक सतत प्रवाह है जो पाठक को सहज ही अपने साथ बांध लेता है। नाटक के घटनाएं कभी यथार्थवादी हैं तो कभी फेंटेसी में जाती हैं। उपन्यास के बहाने उदारीकरण के बाद के देश का हाल हरि भटनागर कहते दिखाई देते हैं।
पाठ के पश्चात् श्री अरूण कुमार उपन्यास के बारे कहा कि यह आलेख आज की ग्रामीण सच्चाई का आलेख है। जिसमें सर्वहारा श्रमजीवी किन मुसीबतों और किन विरोधाभासों को शिकार हो रहा है इसका अनोखा विवरण है। उपन्यास में फेंटेसी के रूप में कभी मैना और कभी गधा भी बातें करते हैं। यह उपन्यास जल जंगल जमीन की लड़ाई का उपन्यास भी है और उदारीकरण की नीतियों से बदलते समाज का उपन्यास भी है जहां एक कुम्हार अपने गधे पर सामान ढ्रुलाई करता है वहीं उसका पड़ोसी एक ऑटो भी रखता है। नाटक की भाषा बहुत आसान है जो पाठक उपन्यास से जोड़कर रखती है।
 इस अवसर पर प्रख्यात अभिनेता आलोक गच्छ भोपाल हरि भटनागर की कहानी ’माई’ का नाट्य मंचन किया। यह कहानी हरि भटनागर ने सन् 1980 में लिखी थी। 2006 में इसका पुनर्लेखन हुआ। यह कहानी मां की कहानी है। इसका मंचन आलोक गच्छ ने भोपाल और लंदन में किया है। जबलपुर में इसके मंचन को दर्शकों ने बहुत सराहा।
कार्यक्रम का संचालन हिमांशु राय ने किया। आभार प्रदर्शन राजेन्द्र दानी ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में वसंत काशीकर, बांकेबिहारी ब्यौहार, रमाकांत ताम्रकार ने अपना योगदान दियां।


हरि भटनागर का रचना पाठ

हरि भटनागर का रचना पाठ
विवेचना और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के द्वारा जाने माने कथाकार हरि भटनागर भोपाल का रचना पाठ आयोजित है। श्री हरि भटनागर अपने नव प्रकाशित उपन्यास ’एक थी मैना एक था कुम्हार’ के एक अंश का पाठ करेंगे। पाठ के पश्चात् श्री अरूण कुमार उपन्यास के बारे में अपने विचार रखेंगे। इस अवसर पर प्रख्यात अभिनेता आलोक गच्छ भोपाल हरि भटनागर की कहानी ’माई’ का नाट्य मंचन करेंगे। यह नाटक भोपाल के अलावा विदेशों में भी मंचित हुआ है।
कार्यक्रम दिनांक 3 मई शनिवार को रानी दुर्गावती संग्रहालय भंवरताल में संध्या 6.30 बजे आयोजित है। हिमांशु राय, वसंत काशीकर, बांके बिहारी ब्यौहार, राजेन्द्र दानी, रमाकांत ताम्रकार ने सभी साहित्यप्रेमियों से उपस्थिति का अनुरोध किया है।
उत्तर प्रदेश में 1955 में जन्मे हरि भटनागर का प्रारम्भिक जीवन सुल्तानपुर, उ प्र में गुजरा। शुरूआत मेें ’अमर उजाला’, ’हितवाद’ जैसे राष्ट्रीय दैनिकों में काम। ’सगीर और उसकी बस्ती के लोग’, ’बिल्ली नहीं दीवार’, ’नाम में क्या रखा है’, ’सेवड़ी रोटियां’ उनके प्रकाशित कथा संग्रह हैं। उनकी कहानियां उर्दू, मलयालम, मराठी, पंजाबी, के साथ रूसी, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं में अनूदित हुई हैं। 25 वर्षों तक म प्र साहित्य परिषद की पत्रिका ’साक्षात्कार’ के सम्पादन से संबद्ध रहे। रूस के पुश्किन सम्मान समेत देश के राष्ट्रीय श्रीकान्त वर्मा पुरस्कार, दुष्यन्त कुमार सम्मान एवं वागीश्वरी पुरस्कार से पुरस्कृत। हरि भटनागर ने रूस, अमेरिका, ब्रिटेन की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक यात्राएं की हैं व विश्व हिन्दी सम्मेलन 2003 सूरीनाम, 2007 न्यूयार्क में सक्र्रिय हिस्सेदारी। वर्तमान में मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग में डिप्टी डायरेक्टर और पंजाबी अकादमी के सचिव हैं।

विवेचना का स्कूली बच्चों का वर्कशॉप

विवेचना का स्कूली बच्चों का वर्कशॉप
मध्यप्रदेश की सक्रिय नाट्य संस्था विवेचना द्वारा जबलपुर में स्कूली बच्चों की वर्कशॉप ’प्रथम’ का आयोजन आगामी 4 मई से 24 मई तक आयोजित किया जा रहा है। इस वर्कशॉप को पारूल शुक्ला, दिल्ली और तुलना शैरी कक्कड़, वसंत काशीकर संचालित करेंगे। पारूल शुक्ला ने दिल्ली में बच्चों और युवाओं के वर्कशॉप संचालित किए हैं। पारूल दिल्ली में सुप्रसिद्ध नाट्य निर्देशक बैरी जॉन के साथ काम कर चुकी हैं।
यह वर्कशॉप 9 साल से ऊपर के स्कूली बच्चों के लिये आयोजित है। वर्कशॉप यूरो किड्स स्कूल 97, आदर्शनगर, ग्वारीघाट रोड पर प्रतिदिन संध्या 4 बजे से 6 बजे तक संचालित होगा। बच्चों में अभिव्यक्ति की क्षमता, विश्लेषण क्षमता, रचनात्मकता और समूह में कार्य करने की क्षमता विकसित करने के लिये थियेटर एक बड़ा माध्यम है। थियेटर गेम्स, चरित्र अध्ययन, मूवमेन्ट, नृत्य और संगीत  के अलावा सीन इम्प्रोवाइजेशन और वर्कशॉप में तैयार नाटक में अभिनय से व्यक्तित्व विकास के अवसर पैदा होते हैं। आज के स्पर्धा के युग में बच्चों में इन गुणों का विकास होना बहुत आवश्यक है। विवेचना के स्कूली बच्चों के वर्कशॉप को पारूल शुक्ला, दिल्ली, तुलना शैरी कक्कड़ और वसंत काशीकर संचालित करेंगे।
विवेचना के ’प्रथम’ थियेटर वर्कशॉप फार स्कूल चिल्ड्रन हेतु रजिस्ट्रेेशन 3 मई तक प्रतिदिन संध्या 4 से 6 बजे के बीच किया जा सकता है। विवेचना के सचिव हिमांशु राय व बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर ने अभिभावकों से बच्चों को इस वर्कशाप में भेजने का अनुरोध किया है।

कोलकाता में नाटक ’मानबोध बाबू’ का मंचन


पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा 23 मार्च से 27 मार्च 2014 तक राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजनकोलकाता में किया गया। इस समारोह में विवेचना जबलपुर को आमंत्रित किया गया। विवेचना जबलपुर ने 24 मार्च 2014 को कोलकाता में पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के ऑडीटोरियम में अपने मौलिक नाटक ’मानबोध बाबू’ का मंचन किया। यह नाटक श्री चन्द्रकिशोर जायसवाल की इसी नाम की कहानी का नाट्य रूपांतर है। इसका निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। इस नाटक के 25 से अधिक मंचन पूरे देश के प्रतिष्ठित मंचों पर हुए हैं। समारोह के दौरान पूर्व क्षेत्र के रंगकर्मियों का एक वर्कशॉप भी हुआ।  इन युवाओं ने दूसरे दिन नाटक पर गंभीर चर्चा की और कहा कि ऐसा भावनापूर्ण नाटक उनने पहली बार देखा। इस नाटक का कोलकता के लिए विशेष महत्व है क्योंकि इसकी कहानी  इर्द गिर्द घूमती है.