Saturday, May 7, 2016

विवेचना के इक्कीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह का दूसरा दिन


नियति, भाग्य और कर्म की लड़ाई है मानव जीवन



नियति  : द इडिपस का मंचन संपन्न

विवेचना के इक्कीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह के दूसरे दिन 9 अक्टूबर 2014 को जयपुर की संस्था नाट्यकुलम ने अशोक बांठिया के निर्देशन में ’नियति’ नाटक का भव्य मंचन कर दर्शकों को रसविभोर कर दिया। यह नाटक ग्रीक त्रासदी नाटक ’राजा इडिपस’ का हिन्दी रूपांतर है। यह नाटक ग्रीस का हजारों साल पुराना नाटक है परंतु अपनी कथावस्तु और दर्शन के कारण नाट्य जगत में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस नाटक में से यह जाहिर होता है कि कर्म बहुत अच्छा होने के बावजूद नियति किस तरह अपना खेल खेलती है।  भारतीय दर्शन कर्म और भाग्य की बात करता है। क्या इंसान केवल नियति का खिलौना है और कोई अदृश्य शक्ति हमें नियंत्रित करती है ? इसीलिए मनुष्य अपने कर्माें से अपनी आत्मा के उत्थान के लिए प्रयासरत रहता है। सोफोक्लीज+ ने अपनी अमर रचना के माध्यम से नियति को अंतिम सत्य माना है और मनुष्य को मात्र एक अभागा प्राणी।
राजा इंदीवर इडिपस अकाल, महामारी और तबाही से जूझ रही अपनी प्रजा के लिये व्यथित था। करसन सिंह भैरव देवता से यह खबर लाता है कि इस तबाही का कारण एक अभिशप्त आत्मा है। अपराधी को देशनिकाला दिये जाने या फांसी पर लटकाये जाने पर ही विनाश से बचा जा सकता है। भविष्यवक्ता त्रिकाल बाबा इंदीवर को बताता है कि एक व्यक्ति जिसने अपने पिता की हत्या की है, अपनी मां से शादी की है और जो अपने बच्चों का भाई है, वही असल अपराधी है। और जब तक उसे दंड नहीं दिया जाएगा, इस देश को आपदा से कोई नहीं बचा सकता। इंदीवर जो एक दूसरे देश से आया है उस आदमी को पकड़ने की प्रतिज्ञा करता है।
यहां से एक ईमानदार,समर्पित इंदीवर जो एक राजा है उसका संघर्ष नियति के साथ शुरू होता है। उसकी खोज परत दर परत नए नए सत्य उद्घाटित करती है। वो राज्य में उस पापी को खोजने के लिए जमीन आसमान एक कर देता है। फिर धीरे धीरे सत्य उद्घाटित होता है। वो ये कि घटनाओं के उपर उसका कोई बस नहीं था। लेकिन सचाई यही है अपराधी वही है। उसी ने अपने पिता की हत्या की और उसी ने अपनी मां से शादी की। हालांकि अनजाने में कहानी बहुत नाटकीय और रहस्यमयी तरीके से नियति के खेल को सामने लाती है।
नाटक में इंदीवर की प्रमुख भूमिका को अंतरिक्ष नागरवाल ने बहुत दमदारी से निभाया। रानी के रोल में  गरिमा पारिख और करसन सिंह के रोल में योगेन्द्र सिेह ने प्रभावशाली अभिनय किया। नाटक का संगीत पक्ष बहुत मजबूत था। गुरमिंदर सिंह पुरी ने अपने संगीत और गायन से नाटक को बहुत उंचाई पर पंहुचाया। नाटक में पूरे स्टेज पर भव्य सैट लगाया गया था जो नाटक के चरित्र के अनुरूप था। नाटक मंे लाइट और कास्ट्यूम बहुत प्रभावशाली थे। नियति एक पूर्ण नाटक साबित हुआ जिसका हर पक्ष बहुत सशक्त था। इसमें सिद्धहस्त प्रशिक्षित कलाकार नहीं थे परंतु सभी ने बहुत सशक्त अभिनय किया। इंदीवर के रोल में अंतरिक्ष नागरवाल ने अपने अभिनय से हर दर्शक को प्रभावित किया। नाटक का सैट ग्रीक नाटकों की तर्ज पर बहुत भव्य था।
नाटक के अंत में निर्देशक अशोक बांठिया को श्री हरि भटनागर की पेन्टिग स्मृतिचिन्ह के रूप में प्रदान की गई। नाटक के आरंभ में निर्देशक अशोक बांठिया का अभिनंदन श्रीमती गोपाली चन्द्रमोहन और श्रीमती गीता तिवारी ने किया। इस अवसर पर विवेचना से हिमंाशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर उपस्थित थे।

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