विवेचना के युवा कलाकारों के बीच संवाद की दृष्टि से एक विचार गोष्ठी का आयोजन 3 अप्रैल 2013 को हिन्दी रंगमंच दिवस पर हुआ। इसमें बोलते हुए हिमांशु राय ने कहा कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एक अद्भुत व्यक्ति थे। जो केवल 33 वर्ष जिए। लेकिन इन तेंतीस वर्षों में उन्होंने हिन्दी साहित्य और नाटक को जो दिया है वह अमूल्य है। उन्होंने नाटक न केवल लिखे वरन् मंचित भी किए। ये वो समय था जब न मंच था। न नाटक था और न नाटक का कोई इतिहास था। न निर्देशक था न लेखक था। न लाइट थी न मेकअप था। फिर भी भारतेन्दु ने नाटक को अपना अस्त्र बनाया।
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