विवेचना का बीसवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह आगामी 23 अक्टूबर से 27 अक्टूबर 2013 तक तरंग प्रेक्षागृह, जबलपुर में आयोजित है। इस समारोह की खासियत यह है कि इस समारोह को खुशनुमा बनाने के लिए हास्य व्यंग्य से भरपूर नाटकों का चुनाव किया गया है। इस नाट्य समारोह की दूसरी खासियत यह है कि इसमें भारत के चार महान नाटककारों के नाटक मंचित होने जा रहे हैं। बादल सरकार, जयंत दलवी, सुरेन्द्र वर्मा और विजय तेंदुलकर जैसे महान नाटककारों के नाटकों से सजा यह नाट्य समारोह दर्शकों को बहुत पसंद आएगा।
पहले दिन 23 अक्टॅूबर को आयोजक संस्था विवेचना के नाटक ’बड़ी बुआजी’ का मंचन होगा। बादल सरकार का लिखा यह नाटक पिछले 30 सालों से दर्शकों को गुदगुदा रहा है। एक घर में नाटक की रिहर्सल चल रही है। घर मालिक की लड़की अनु उसकी मुख्य पात्र है। तभी उसकी बड़ी बुआ जी आ पंहुचती हैं जो नाटकों की घनघोर विरोधी हैं। अब पूरी टीम यह छुपाने में लग जाती है कि यहां नाटक नहीं हो रहा है। और घटनाएं कुछ ऐसी घटती हैं कि बुआजी को पता चलता जाता है।
समारोह का दूसरा नाटक जयंत दलवी का प्रसिद्ध नाटक ’अरे शरीफ लोग’ है। इस नाटक में हास्य के माध्यम से आम आदमी के मन की ग्रंथियों को उघाड़ा है। एक चाल में चार अधेड़ उम्र के पड़ोसी रहते हैं। वहीं एक लड़की नये किरायेदार के रूप में आ पहुँचती है। चारों पड़ोसियों और उनकी पत्नियों की नोंकझोंक के बीच एक युवक तरह तरह की चालें चलता है जिससे सबका चरित्र उजागर होता है।
तीसरे दिन मुखातिब, मुम्बई द्वारा इश्तियाक आरिफ खान के लेखन और निर्देशन मेें मुम्बई के कलाकारों द्वारा ’द शैडो ऑफ ऑथेलो’ का मंचन किया जाएगा। एक गांव के युवक ’ओंकारा’ फिल्म देखकर यह विचार करते हैं कि अपने गांव में यह फिल्म बनाई जाए। उन्हें बताया जाता है कि यह फिल्म शेक्सपियर के नाटक ओथेलो पर आधारित है। तब दिल्ली से निर्देशक बुलाकर गांव के लोग ऑथेलो नाटक करते हैं। इस नाटक की कहानी के अंदर से गांव के लोगों की कहानी बनने लगती है। गांव के युवाओं में सभी फिल्मी अभिनय करना चाहते हैं। निर्देशक उनसे गंभीरता से ऑथेलो नाटक कराना चाहता है। नाटक बहुत रोचक है।
चौथे दिन हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार सुरेन्द्र वर्मा का एक गंभीर उर्दू नाटक ’कैद-ए-हयात’ का मंचन दिल्ली से दानिश इकबाल की टीम करेगी। यह नाटक गालिब के जीवन के अंतिम दिनों की परेशानियों और क़ातिबा के प्रति उनके दुखांत प्रेम की गाथा है। यह नाटक श्रेष्ठ अभिनय, अद्भुत कथानक और उर्दू भाषा के लालित्य के लिए जाना जाता है।
पांचवें और अंतिम दिन विजय तेंदुलकर का प्रसिद्ध नाटक ’जात ही पूछो साधु की’ का मंचन स्व दिनेश ठाकुर के निर्देशन में ’अंक’ मुम्बई की टीम करेगी। पिछड़ी जाति के महीपत नाम के एक बेरोजगार युवक को बड़ी मेहनत के बाद गांव के एक कालेज में पढ़ाने की नौकरी इसलिए मिल जाती है कि उसके अलावा कोई उम्मीदवार ही नहीं था। अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए महीपत तरह तरह के जतन करना पड़ते हैं। हर जगह उसकी जाति उसके आड़े आती है। सारे लोग उसकी नौकरी के पीछे पड़ जाते हैं। कालेज के मालिक की लड़की भी कॉलेज में भरती हो जाती है और महीपत के पीछे पड़ जाती है। इस नाटक में मुम्बई के फिल्म टी वी जगत के जाने माने कलाकार शिरकत करेंगे। यह नाटक हिन्दी का बहुत पसंदीदा हास्य नाटक है।
विवेचना के कलाकार और कला निर्देशक जहां बड़ी बुआ जी के पूर्वाभ्यास में लगे हुए हैं वहीं विवेचना के पदाधिकारी नाट्य समारोह की तैयारियों में जुटे हुए हैं। पिछले बीस सालों में विवेचना के नाट्य समारोह में जो भी दल जबलपुर आए हैं वे बहुत मधुर यादों और स्नेहपूर्ण आतिथ्य के साथ वापस गये हैं। विवेचना के नाट्य समारोह की तैयारी बहुत शिद्दत से की जाती है और सभी व्यवस्थाओं और प्रचार प्रसार का पूरा ध्यान रखा जाता है।
पहले दिन 23 अक्टॅूबर को आयोजक संस्था विवेचना के नाटक ’बड़ी बुआजी’ का मंचन होगा। बादल सरकार का लिखा यह नाटक पिछले 30 सालों से दर्शकों को गुदगुदा रहा है। एक घर में नाटक की रिहर्सल चल रही है। घर मालिक की लड़की अनु उसकी मुख्य पात्र है। तभी उसकी बड़ी बुआ जी आ पंहुचती हैं जो नाटकों की घनघोर विरोधी हैं। अब पूरी टीम यह छुपाने में लग जाती है कि यहां नाटक नहीं हो रहा है। और घटनाएं कुछ ऐसी घटती हैं कि बुआजी को पता चलता जाता है।
समारोह का दूसरा नाटक जयंत दलवी का प्रसिद्ध नाटक ’अरे शरीफ लोग’ है। इस नाटक में हास्य के माध्यम से आम आदमी के मन की ग्रंथियों को उघाड़ा है। एक चाल में चार अधेड़ उम्र के पड़ोसी रहते हैं। वहीं एक लड़की नये किरायेदार के रूप में आ पहुँचती है। चारों पड़ोसियों और उनकी पत्नियों की नोंकझोंक के बीच एक युवक तरह तरह की चालें चलता है जिससे सबका चरित्र उजागर होता है।
तीसरे दिन मुखातिब, मुम्बई द्वारा इश्तियाक आरिफ खान के लेखन और निर्देशन मेें मुम्बई के कलाकारों द्वारा ’द शैडो ऑफ ऑथेलो’ का मंचन किया जाएगा। एक गांव के युवक ’ओंकारा’ फिल्म देखकर यह विचार करते हैं कि अपने गांव में यह फिल्म बनाई जाए। उन्हें बताया जाता है कि यह फिल्म शेक्सपियर के नाटक ओथेलो पर आधारित है। तब दिल्ली से निर्देशक बुलाकर गांव के लोग ऑथेलो नाटक करते हैं। इस नाटक की कहानी के अंदर से गांव के लोगों की कहानी बनने लगती है। गांव के युवाओं में सभी फिल्मी अभिनय करना चाहते हैं। निर्देशक उनसे गंभीरता से ऑथेलो नाटक कराना चाहता है। नाटक बहुत रोचक है।
चौथे दिन हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार सुरेन्द्र वर्मा का एक गंभीर उर्दू नाटक ’कैद-ए-हयात’ का मंचन दिल्ली से दानिश इकबाल की टीम करेगी। यह नाटक गालिब के जीवन के अंतिम दिनों की परेशानियों और क़ातिबा के प्रति उनके दुखांत प्रेम की गाथा है। यह नाटक श्रेष्ठ अभिनय, अद्भुत कथानक और उर्दू भाषा के लालित्य के लिए जाना जाता है।
पांचवें और अंतिम दिन विजय तेंदुलकर का प्रसिद्ध नाटक ’जात ही पूछो साधु की’ का मंचन स्व दिनेश ठाकुर के निर्देशन में ’अंक’ मुम्बई की टीम करेगी। पिछड़ी जाति के महीपत नाम के एक बेरोजगार युवक को बड़ी मेहनत के बाद गांव के एक कालेज में पढ़ाने की नौकरी इसलिए मिल जाती है कि उसके अलावा कोई उम्मीदवार ही नहीं था। अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए महीपत तरह तरह के जतन करना पड़ते हैं। हर जगह उसकी जाति उसके आड़े आती है। सारे लोग उसकी नौकरी के पीछे पड़ जाते हैं। कालेज के मालिक की लड़की भी कॉलेज में भरती हो जाती है और महीपत के पीछे पड़ जाती है। इस नाटक में मुम्बई के फिल्म टी वी जगत के जाने माने कलाकार शिरकत करेंगे। यह नाटक हिन्दी का बहुत पसंदीदा हास्य नाटक है।
विवेचना के कलाकार और कला निर्देशक जहां बड़ी बुआ जी के पूर्वाभ्यास में लगे हुए हैं वहीं विवेचना के पदाधिकारी नाट्य समारोह की तैयारियों में जुटे हुए हैं। पिछले बीस सालों में विवेचना के नाट्य समारोह में जो भी दल जबलपुर आए हैं वे बहुत मधुर यादों और स्नेहपूर्ण आतिथ्य के साथ वापस गये हैं। विवेचना के नाट्य समारोह की तैयारी बहुत शिद्दत से की जाती है और सभी व्यवस्थाओं और प्रचार प्रसार का पूरा ध्यान रखा जाता है।
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