Tuesday, November 4, 2014

विवेचना के इक्कीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह का भव्य उद्घाटन



ठहाकों के बीच संपन्न हुआ कंजूस नाटक का मंचन
विवेचना के नाट्य समारोह का यह 21 वां साल था। नाट्यगृह तरंग को रोशनी और रंगारंग बोर्ड से सजाया गया था जो अपनी भव्यता के कारण सभी को आकर्षित कर रहा था। विवेचना के इक्कीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह का उद्घाटन जाने माने अभिनेता व निर्देशक श्री अशोक बांठिया ने किया। श्री  अशोक बांठिया 9 अक्टूबर को होने जा रही प्रस्तुति नियति के निर्देशक हैं। इस अवसर पर विवेचना के हिमांशुु राय, वसंत काशीकर, बांके बिहारी ब्यौहार, अनिल श्रीवास्तव उपस्थित थे। मध्यप्रदेश विद्युत मंडल परिवार की ओर से  श्री मनु श्रीवास्तव सी एम डी, श्री डी के गुप्ता महासचिव क्रीड़ा परिषद व श्री शैलेन्द्र महाजन, एस पी हरिनारायणाचारी मिश्र, कलेक्टर शिवनारायण रावला उपस्थित थे।
इस अवसर पर श्री अशोक  बांठिया ने कहा कि विवेचना का यह समारोह और इसी कारण जबलपुर पूरे देश में जाना जाता है। हिमांशु राय ने नाट्य समारोह और इसमें आमंत्रित नाटकों व निर्देशकों के बारे में बताया। श्री बांकेबिहारी ब्यौहार ने संचालन किया।
नाट्य समारोह के उद्घाटन के पश्चात् विवेचना के कलाकारों ने  ’कंजूस’ नाटक का मंचन किया। यह नाटक  फ्रेंच नाटक कार का लिखा  350 साल पुराना हास्य नाटक है जिसके मंचन पूरी दुनिया में होते रहे हैं। हजरत आवारा के द्वारा किए गए इस रूपांतर के  मंचन  एन एस डी रिपर्टरी ने भी किए हैं।
मिर्ज़ा सख़ावत बेग बुजुर्ग हैं पर दूसरी शादी की ख़्वाहिश रखते हैं। मगर वो चाहते हैं कि लड़की कमउम्र हो, कमखर्च हो और साथ में दहेज भी लाए। उनके पास बहुत पैसा भी है और वो उसे छुपा कर रखते हैं। उनका लड़का फरूख और लड़की अजरा भी शादी लायक हैं उनके भी अपने सपने हैं। पर मिर्जा सखावत बेग की उनकी शादियों के लिए भी अपनी चालें हैं। वो पैसा बचाने के लिए अपनी लड़की अजरा की शादी एक बुजुर्ग असलम से करने की तैयारी में हैं। और एक गरीब लड़की मरियम से खुद शादी करने की फिराक में हैं जो उनके लड़के फरूख की मंगेतर है। इसी बीच नाटकों में संयोगों और गड़बड़ियों की बारिश शुरू हो जाती है। ऐसे ताने बाने और जोड़ तोड़ बनते हैं दर्शक लोट पोट हो जाते हैं।
नाटक में मिर्जा बने आशीष नेमा, फरजीना बनी दीपा सिंह और अल्फू के रोल में विनय शर्मा ने खूब प्रभावित किया। अजरा के रोल में दीप्ति सिंह, फरूख बने ब्रजेन्द्र सिंह, नम्बू के रोल अक्षय ठाकुर नासिर बने आयुष राय मरियम बनी खूशबू जेठवा, हवलदार बने सीताराम सोनी और असलम के रोल में संजय जैन दलाल बने सौरभ पाठक खूब जमे। आशीष नेमा मुख्य किरदार में थे और उन्होंने अपने अभिनय का जलवा खूब दिखाया।
नाटक में तपन बैनर्जी का निर्देशन चुस्त था। दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहे। संजय गर्ग की मंच व्यवस्था अनुकूल थी। वेशभूषा और मेकअप नाटक के अनुरूप था।





भव्य नाटकों का है दर्शकों को इंतजार: विवेचना का 21 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह



विवेचना का इक्कीसवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह आगामी 08 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2014 तक तरंग प्रेक्षागृह में आयोजित है। इस समारोह की विशेषता यह है कि इस समारोह में जबलपुर के बाहर से आमंत्रित सभी नाटक राष्ट्रीय  नाट्य विद्यालय ( एन एस डी) से शिक्षित निर्देशकों द्वारा निर्देशित हैं। इस नाट्य समारोह की दूसरी खासियत यह है कि इसमें आज के समय के सर्वाधिक चर्चित नाटक मंचित होने जा रहे हैं।
पहले दिन 08 अक्टॅूबर को आयोजक संस्था विवेचना के नाटक ’कंजूस’ का मंचन होगा। फ्रंेच नाटककार मोलियर का यह नाटक पिछले 400सौ सालों से पूरी दुनिया को गुदगुदा रहा है। ये एक कंजूस बुजुर्ग की कहानी है जो बुढ़ापे में दूसरी शादी करने पर आमादा हैं पर पैसा भी नहीं खर्च करना चाहते और लड़की की उम्र भी ज्यादा होना पसंद नहीं है। साथ में दहेज भी चाहते हैं। इसका निर्देशन तपन बैनर्जी ने किया है।
समारोह का दूसरा नाटक जयपुर की संस्था नाट्यकुलम् द्वारा अशोक बांठिया के निर्देशन में मंचित होगा। ’नियति’ नामक यह नाटक सुप्रसिद्ध ग्रीक त्रासदी नाटक ’इडिपस’ का भारतीय परिवेश में किया गया रूपांतर है। इस नाटक की कहानी विश्वप्रसिद्ध है और इडिपस काम्पलेक्स शब्द इसी नाटक से बना है। इस नाटक का इंतजार जबलपुर के दर्शक वर्षों से कर रहे हैं।  
तीसरे दिन मुखातिब, मुम्बई द्वारा इश्तियाक आरिफ खान के लेखन और निर्देशन मेें मुम्बई के कलाकारों द्वारा ’सार्थक बहस’ का मंचन किया जाएगा। यह नाटक टी वी में होने वाली बहसों के बहाने नाटक वालों और देशवासियों की व्यथा कथा कहता है। नाटक का अंदाज बहुत रोचक है और युवा कलाकारों ने बहुत अच्छा अभिनय किया है।
चौथे दिन आज के समय का सर्वाधिक प्रशंसित नाटक ’औरंगज़ेब’ का मंचन दिल्ली के कलाकार करेंगे। नाटक का निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रो के एस राजेन्द्रन ने किया है। इंदिरा पार्थसारथी के तमिल नाटक का हिन्दुस्तानी रूपांतर शाहिद अनवर ने किया है। यह नाटक शाहजहां के अंतिम दिनों में शाही महल में शाहजहां के बेटों में
उत्तराधिकार  के लिए हुए संघर्ष की कहानी है जिसमें औरंगजेब और उसके भाई बहनों के बीच सत्ता के लिए चली लड़ाई के साथ ही सभी पात्रों के चरित्र भी प्रदर्शित होता है। इस नाटक के मंचन देश और विदेश में बहुत सराहे गए हैं। इस नाटक को पिछले 10 वर्षों का सर्वश्रेष्ठ नाटक माना जाता है।
पांचवें और अंतिम दिन नादिरा बब्बर का प्रसिद्ध नाटक ’ये है बाम्बे मेरी जान’ का मंचन एकजुट मुम्बई के कलाकार करेंगे। इस नाटक में मुम्बई के फिल्म टी वी जगत के जाने माने कलाकार शिरकत करेंगे। यह नाटक हिन्दी का बहुत पसंदीदा हास्य नाटक है। मुम्बई की फिल्मी दुनिया में प्रवेश पाने के लिए संघर्षरत युवाओं की कहानी इसमें बहुत मनोरंजक तरीके से कही गई है।  
विवेचना ने यह समारोह केन्द्रीय क्रीड़ा व कला परिषद एम पी पावर मैनेजमेंट कंपनी लि के साथ संयुक्त रूप से आयोजित किया है। प्रतिदिन संध्या 7़.30 बजे से तरंग ऑडीटोरियम में नाटक मंचित होंगे। विवेचना ने सभी नाट्यप्रेमियों से नाटकों का आनंद लेने का अनुरोध किया है। इस हेतु हिमांशु राय 9425387580, बंाकेबिहारी ब्यौहार 9827215749 वसंत काशीकर 9425359290 से संपर्क किया जा सकता है। 

’परसाई के लेखन से भारतीय लोकतंत्र परिमार्जित हुआ’

हिमांशु राय , डॉ विजय बहादुर सिंह , डॉ कुंदन सिंह परिहार 



ज्ञानरंजन जी के साथ मित्र मण्डली 

ज्ञानरंजन जी 

’परसाई के पास कहने को बहुत कुछ था। उनके जीवन के अनुभव बहुत विराट थे। उन्होंने बहुत कष्ट और दुःख झेले थे। उनकी भाषा बहुत सरल थी। उनके वाक्य बहुत छोटे छोट होते थे। वो हर चरित्र के अंदर झांक कर देखने और उसकी सच्चाई व्यक्त करने का सामर्थ रखते थे। बहुत कम उम्र में ही वो रामचरित मानस से लेकर पश्चिमी साहित्य तक सबकुछ पढ़ चुके थे। इसीलिए उनके लेखन में बहुत गहराई थी।’
ये विचार हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक व कवि डा विजय बहादुर सिंह ने विवेचना व पहल द्वारा परसाई जन्मदिवस पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। 22 अगस्त को हर वर्ष विवेचना और पहल द्वारा स्व हरिशंकर परसाई का जन्मदिवस मनाया जाता है। इस वर्ष  ’परसाई और भारतीय लोकतंत्र’ विषय पर डा विजय बहादुर सिंह को आमंत्रित किया गया था। डस विजय बहादुर सिंह ने कहा कि ’परसाई ने अपनी खास पहचान अखबारों में अपने कॉलम से बनाई। ये कॉलम बहुत प्रसिद्ध हुए। इन स्तंभों के जरिये उन्होंने जनता और जनप्रतिनिधियों का शिक्षण किया। जनता उन्हें अपना मार्गदर्शक मानती थी वहीं राजनीतिज्ञ उन्हें अपना कटु आलोचक मानते थे। उन्होंने राजनीतिज्ञों और राजनीति का परिमार्जन किया। राजनेताओं के बारे में आम पाठक हमेशा उनका नाम लिया करता था कि अरे इनके बारे में परसाई जी ने ये लिखा। उनका लेखन भारतीय लोकतंत्र के लिए विशिष्ट रहा है।
कार्यक्रम के शुरू में विवेचना  के सचिव हिमांशु राय ने अपना आलेख पढ़ा। ’परसाई परसाई कैसे बने’ इस आलेख में हिमांशु राय ने कहा कि परसाई जी पर नितांत बचपन से घटी घटनाओं मसलन मंा का बहुत छोटी उम्र में गुजर जाना, स्कूल में पढ़ते समय ही पूरे परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ जाना, स्कूल में बहुत अच्छे शिक्षकों का मिलना, उनका अपना विशिष्ट स्वभाव होना कुछ ऐसे गुण थे जिन्होंने परसाई को परसाई बनाया।
अध्यक्ष की आसंदी से बोलते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष कहानीकार श्री कुंदनसिंह परिहार ने कहा कि जबलपुर के लिए परसाई बहुत अपने थे। उनका पाठक बहुत सामान्य और आम आदमी था। उन्होंने आम पाठकों के लिए जो कुछ लिखा वो आम आदमी को उसके सही स्वरूप का आइना दिखाता है।
कार्यक्रम के शुरूआत में अतिथियों का स्वागत वसंत काशीकर, राजेन्द्र दानी, संजय गर्ग ने किया। कार्यक्रम का संचालन बांकेबिहारी ब्यौहार ने किया। आभार प्रदर्शन पंकज स्वामी ने किया।

परसाई जन्मोत्सव पर डा विजय बहादुर सिंह का व्याख्यान

विवेचना संस्था व पहल द्वारा 22 अगस्त को महान व्यंग्यकार स्व हरिशंकर परसाई का जन्मदिवस मनाया जा रहा है। विवेचना व पहल द्वारा प्रतिवर्ष 22 अगस्त को परसाई जन्मदिवस के अवसर पर एक आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर विवेचना ने हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक डा विजयबहादुर सिहं, भोपाल को आमंत्रित किया है। डा विजयबहादुर सिंह ’परसाई और भारतीय लोकतंत्र’ विषय पर अपना व्याख्यान देंगे। इस अवसर पर अन्य अतिथि वक्ताओं के भाषण भी होंगे।
विवेचना व पहल का यह आयोजन  रानी दुर्गावती संग्रहालय, भंवरताल में संध्या 7 बजे आयोजित है। विवेचना व पहल की ओर से प्रो ज्ञानरंजन, राजेन्द्र दानी, हिमांशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर, संजय गर्ग ने सभी साहित्यप्रेमियों से इस अवसर पर उपस्थिति का अनुरोध किया है।

हिमांशु राय
सचिव

पाखंड के निर्मम आलोचक थे कबीर



भक्तिकाल के कवियों में कबीर अपने किस्म के अलग ही कवि हुए। अपने समय से विपरीत चलते हुए उन्होंनेमठाधीशों को चुनौती दी। उनकी लोकप्रियता के कारण उनके जाने के कारण उनका एक पंथ बन गया। वे आलोचक के रूप में दिखाई देते हैं जब वे धार्मिक पाखंडों पर हमला करते हैं। वे आम जनता का विवेक जगाना चाहते हैं और बार बार तर्क से अपनी बातों को अपने दोहों में कहते हैं। परसाई जी इसी कारण से अपने को कबीर की परंपरा में रखते थे। कबीर के तर्क अकाट्य हैं और तिलमिला देने वाले हैं।
ये विचार हैं डा शिवकुमार शर्मा ’मलय’ के जो उन्होंने विवेचना संस्था द्वारा ’कबीर की प्रासंगिकता’ पर बात करते हुए व्यक्त किए। डा मलय के पूर्व विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने कहा कि कबीर के जाने के चार सौ साल बाद भी कबीर का लिखा हमारा मार्गदर्शन कर रहा है।
विषय पर बात करते हुए जी एस कॉलेज के प्राचार्य डा अरूण कुमार ने कहा कि कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। वे अनहद नाद की बात करते थे। वे अपने को ’हरि मोर पियु मैं राम की बहुरिया कहा करते थे। कबीर ने आज से चार सौ साल पहले एक जुलाहे के यहां पैदा होकर अपने ज्ञान, भक्ति और तर्क से एक नयी बयार बहाई जो आज भी हमें रास्ता दिखाती है। कबीर ने केवल स्थापित परंपराओं और कर्मकांडों पर ही प्रहार नहीं किया बल्कि भक्ति की एक अलग मार्ग भी सुझाया जो श्रेष्ठि वर्ग के मार्ग से बिल्कुल अलग था और समाज के निचले तबकों का प्रतिनिधित्व करता था।
इस अवसर पर संगोष्ठी में उपस्थित श्री हनुमंत शर्मा, बांकेबिहारी ब्यौहार, आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। हिमांशु राय ने बताया कि भविष्य में विवेचना संस्था द्वारा विभिन्न ज्वलंत विषयों पर संगोष्ठियां आयोजित की जाएंगी।

थोड़ी शक्ति थोड़ा तमाशा, लेकिन मतलब के साथ





थोड़ी शक्ति, थोड़ा तमाशा लेकिन मतलब के साथ । जबलपुर के नवोदित रंगकर्मियों को यह सूत्र दिया सुप्रसिद्ध अभिनेता व निर्देशक जुगलकिशोर ने। भारतेन्दु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक श्री जुगलकिशोर ने विवेचना के आयोजन में आज जबलपुर के नवोदित रंगकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि एक अभिनेता को मंच पर अपनी उर्जा, अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन तो करना चाहिए लेकिन उसकी गतियों और भावाभिव्यक्तियों  में अर्थ भी होना चाहिए। इसके लिए कलाकार को केवल अभिनय ही नहीं वरन् अच्छे साहित्य का अध्ययन करना चाहिए। अभिनेता को अपने उच्चारण और बोली पर बहुत ध्यान देना चाहिए। हिन्दी उर्दू के शब्दों का सही उच्चारण हर कलाकार के लिए जरूरी है। चरित्र चित्रण के लिए उन्होंने कहा कि चरित्र की शारीरिक विशेषता, सामाजिक पृष्ठभूमि और उसकी मनोवैज्ञानिक अवस्था का अध्ययन करना आना चाहिए। उन्होंने फिल्म टी वी में जाने के इच्छुक कलाकारों को नाटक, फिल्म और टी वी के लिए अभिनय की अलग अलग तकनीकों को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि नाटक में अभिनेता का मंच पर प्रवेश बहुत मजबूत होना चाहिए। उसी से नाटक का भविष्य तय हो जाता है।
विवेचना द्वारा  दोपहर 2 बजे से भातखंडे सभागार में नवोदित नाट्यकलाकारों के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया। लखनउ से पधारे वरिष्ठ अभिनेता निर्देशक जुगलकिशोर ने वर्कशॉप में कलाकारों को अल्पसमय में ही कई रंग व्यायाम करवाये। कलाकारों से कुछ गतियों और भावाभिव्यक्तियों का अभ्यास कराया गया। विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने जुगलकिशोर जी का परिचय दिया। विवेचना के कला निर्देशक वसंत काशीकर व संजय गर्ग ने इस वर्कशॉप के संचालन में जुगलकिशोर जी का सहयोग किया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में श्री जुगलकिशोर ने गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता ’अंधेरे में’ का पाठ किया। कविता पाठ के पूर्व वरिष्ठ कवि मलय जी ने ’अंधेरे में’ कविता के पृष्ठभूमि और उसके महत्व की चर्चा की। हिमांशु राय ने रंगकर्मियों के लिए ’अंधेरे में’ कविता के महत्व और उसकी मंचीयता के बारे में कहा कि इस कविता के अनेक मंचन देश में हुए हैं। इसमें बिम्बों और विचारों का अद्भुत तालमेल है। जुगलकिशार ने लंबी कविता के चुनिंदा अंशों का पाठ किया।
अब तक क्या किया,
जीवन क्या जिया!!
बताओ तो किस-किसके लिए तुम दौड़ गये,
करुणा के दृश्यों से हाय! मुँह मोड़ गये,
बन गये पत्थर,
बहुत-बहुत ज्यादा लिया,
दिया बहुत-बहुत कम,
मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम!!
लो-हित-पिता को घर से निकाल दिया,
जन-मन-करुणा-सी माँ को हंकाल दिया,
स्वार्थों के टेरियार कुत्तों को पाल लिया,
भावना के कर्तव्य--त्याग दिये,
हृदय के मन्तव्य--मार डाले!
बुद्धि का भाल ही फोड़ दिया,
तर्कों के हाथ उखाड़ दिये,
जम गये, जाम हुए, फँस गये,
अपने ही कीचड़ में धँस गये!!
विवेक बघार डाला स्वार्थों के तेल में
आदर्श खा गये!

अब तक क्या किया,
जीवन क्या जिया,
ज्यादा लिया और दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम...!
कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ अभिनेत्री और साहित्यकार श्रीमती साधना उपाध्याय ने इस आयोजन को बहुत अहम् बताया। श्री बांकेबिहारी ब्यौहार ने आभार प्रदर्शन किया।   

अंधा युग के नाट्य पाठ से दर्शक प्रभावित

जब कोई भी मनुष्य अनासक्त होकर,
चुनौती देता है इतिहास को
उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है।
नियति नहीं है पूर्व निर्धारित
मानव इसे हर क्षण बनाता मिटाता रहता है।
उपरोक्त पंक्तियां हैं हिन्दी के सुप्रसिद्ध काव्य नाटक अंधा युग की जिसकी पाठ प्रस्तुति  विवेचना संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अभिनेता -निर्देशक जुगलकिशोर ने की। उन्होंने कहा कि ’अंधा युग’ नाटक सन् 1954 में रेडियो के लिए धर्मवीर भारती ने लिखा है। तबसे इस नाटक के हजारों मंचन देश और दुनिया में हर भाषा में और हर शैली में हुए हैं। धर्मवीर भारती ने महाभारत का गहराई से अध्ययन कर हर पर्व से घटनाएं और पात्र लेकर इसे रचा है। यह नाटक दूसरे विश्वयुद्ध में हुए विनाश की पृष्ठभूमि में लिखा गया हिन्दी का ही नहीं भारत का प्रथम युद्धविरोधी नाटक है। महाभारत के पात्र इसमें हर कोई अपनी अपनी त्रासदी और अपना अपना पक्ष रखता है।
युद्धोपरांत, ये अंधा युग अवतरित हुआ
जिसमें स्थितियां, मनोवृत्तियां, आत्माएं सब विकृत हैं
एक बहुत पतली डोरी मर्यादी की
पर वो भी उलझी है दोनों ही पक्षों में
धर्मवीर भारती ने अंधा युग के बहाने भूत भविष्य वर्तमान दोनों के बारे में जो टिप्पणियां की हैं वो आश्चर्यजनक हैं। समय का ऐसा विश्लेषण कोई महान कवि ही कर सकता है।
उस भविष्य में
धर्म अर्थ ह्वासोन्मुख होंगे
क्षय होगा धीरे धीेरे सारी धरती का
सत्ता होगी उनकी जिनकी पूंजी होगी
जिनके नकली चेहरे होंगे, केवल उन्हें महत्व मिलेगा
राजशक्तियां लोलुप होंगी, जनता उनसे पीड़ित होकर
गहन गुफाओं में छिप छिप कर दिन काटेगी
जुगलकिशोर जी द्वारा किए गए नाट्यपाठ ने श्रोताओं को गहरे तक प्रभावित किया। संवादों का उतार चढाव, हाव भाव बहुत प्रभावशाली थे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में हिमांशु राय ने कहा कि विवेचना द्वारा समय समय पर नाट्य प्रेमियों और साहित्य प्रेमियों के लिए ऐसे आयोजन किए जाते हैं जिनसे हम नई विधा और नए कलाकारों से मिल सकें। जुगलकिशोर भारत के जाने माने रंगकर्मी भी हैं और शिक्षक, अभिनेता, निर्देशक भी। नवोदित कलाकारों के साथ उनका संवाद बहुत जरूरी है। संजय गर्ग ने जुगलकिशोर जी का परिचय दिया। संजय गर्ग और वसंत काशीकर और अनिल श्रीवास्तव ने उनका गुलदस्ते से स्वागत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जबलपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री महेश गुरू ने की।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में अंधा युग के नाट्य पाठ के पश्चात् ’आज का रंगकर्म’ विषय पर बोलते हुए जुगलकिशोर ने कहा कि आज के अभिनेता को मालूम होना चाहिए कि आज का युग कैसा युग है। ब्रेख्त ने कहा है आज हम सब वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। विज्ञान सर्वोपरि है तो विचारों का आकलन तार्किकता के आधार, वैज्ञानिक दृष्टि से ही होगा। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि अभिनेता देश और व्यक्तियों के इतिहास और उनके कार्यों का मूल्यांकन करे। नाटक करने वाले के लिए जरूरी है कि वह देश के साहित्य से उसकी विविधता से परिचित हो। उन्होंने स्तानिस्लावस्की और जर्मन द्रामातूर का उदाहरण दिया जहां नाटक के पाठ के समय पहले कलाकारों को नाटक की पृष्ठभूमि और साहित्यिक मूल्यों से परिचित कराया जाता है। उन्होंने आज के समय में हिन्दी में आए कुछ नए नाटकों के मंचनों का ब्यौरा दिया और समकालीन थियेटर पर बात की।
कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन बांके बिहारी ब्यौहार ने किया।



प्रसिद्ध अभिनेता जुगलकिशोर जी का व्याख्यान और प्रस्तुति

विवेचना संस्था द्वारा सुप्रसिद्ध अभिनेता.निर्देशक साहित्यकारपूर्व निदेशक, भारतेंदु नाट्य अकादेमी लखनऊ  श्री जुगलकिशोर को जबलपुर में धर्मवीर भारती के नाटक "अंधायुग" के अंशों की सस्वर प्रस्तुति और आज के आधुनिक रंगकर्म के बारे में बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया है। आयोजन 26 जुलाई 2014 को संध्या 7 बजे रानी दुर्गावती संग्रहालय भंवरताल के डा हीरालाल कलावीथिका में आयोजित है। 27 जुलाई को भातखंडे महाविद्यालय के सभागार में दोपहर 2 बजे से जुगलकिशोर नवोदित रंगकर्मियों से संवाद करेंगे और 4 बजे से नगर के साहित्यप्रेमियों के बीच मुक्तिबोध की सुप्रसिद्ध कविता ष्अंधेरे मेंष् का पाठ करेंगे।
 लखनऊ वि वि में अध्ययन के बाद जुगलकिशोर जी ने भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ से अभिनय में विशेषज्ञता के साथ डिप्लोमा हासिल किया। विगत दो दशक से अधिक से वे अभिनय से जुड़े हुए हैं। पहले एक छात्र के रूप में फिर शिक्षक और सक्रिय रंगकर्मी के रूप में उन्होंने परंपरागत और लोकनाटकों के लिए अनथक कार्य किया। लगभग 25 वर्षों तक भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ में अध्यापन करते हुए वे 2008 से 2012 तक उसके निदेशक भी रहे।
वे नाट्य निर्देशकए नाट्य कलाकारए फिल्म कलाकारए मॉडल के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्होंने दबंग.2, पीपली लाइव, बाबर, कॉफी हाउस, मैं मेरी पत्नी और वो, कफन, हमका ऐसन वैसन ना समझा जैसी हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों में काम किया है और बह्म्र का स्वांग, पर्दा ए वसीयत, हल होना एक कठिन समस्या का, आदि टेलिफिल्मों में अभिनय किया है। जी वी अइयर की संस्कृत फिल्म श्रीमद्भगवतगीता, के हिन्दी संस्करण को उन्होंने बनाया जिसे 1993 का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला। उन्होंने मूक बधिर पर, लखनऊ के रंगमंच पर, मृत्यु दंड पर, युवाओं की समस्याओं पर,लखनऊ के हस्तशिल्प पर फीचर लिखे हैं जो अब एक दस्तावेज हैं। उन्होंने भांडों पर और बुन्देलखण्ड  के मार्शल आर्ट "पाई डंडा" पर शोध पत्र लिखे हैं। उन्होंने देश के विभिन्न शहरों में अनेक थियेटर वर्कशॉप का संचालन किया है। नौटंकी के परंपरागत कलाकारों और बी एन ए के छात्रों के साथ उन्होंने ष्सत्यवक्ता हरिशन्द्रष् नाटक तैयार किया।
जुगलकिशोर जी ने 30 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है। उनके नाटकों के चयन और उनके प्रयोगशील निर्देशन से समकालीन रंगमंच के राजनैतिकए सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पक्षों का पता मिलता है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी ब्रह्म का स्वांग या दारियो फो का नाटक एक अराजक की अचानक मौत हो जुगलकिशोर के निर्देशन में इन नाटकों से समाज के पाखंडों का पर्दाफाश होता है। जुगलकिशोर ने रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी "ताशेर  देश" का रूपांतर ताशों का देश अल्बर्ट कामू के नाटक "कालीगुला" भारतेन्दु के नाटक अंधेर नगरी रूसी उपन्यास पर आधारित "खोजा  नसरूद्दीन" कुरासोवा  की फिल्म का नाट्य रूपांतर मटियाबुर्ज, मोलियर के नाटक बिच्छू  अरबी कहानी अली बाबा, मुद्रा राक्षस के नाटक आला अफसर राकेश का नाटक माखनचोर  और होली जो छात्रों के आंदोलन पर आधारित है आदि नाटकों का निर्देशन किया है। वैश्वीकरण की समस्या और पूंजीवादी समाज की विकृतियों को उन्होंने अपने नाटकों का विषय बनाया है।
विवेचना के हिमांशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर, सीताराम सोनी, तपन बैनर्जी, संजय गर्ग, इंदु सूर्यवंशी, ब्रजेन्द्र सिंह, आयुश राय आदि ने नगर के रंगकर्मियों व साहित्यप्रेमियों से तीनों आयोजनों में उपस्थिति का अनुरोध किया है।  

विवेचना द्वारा कबीर जयंती के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन

 भक्तिकाल के महान कवि कबीर की जयंती 13 जून को मनाई जाती है। विवेचना संस्था ने इस अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है।
विवेचना द्वारा 13 जून 2014 शुक्रवार को संध्या 7.30 बजे जबलपुर में जॉय स्कूल राइटटाउन में (मोहनलाल हरगोविन्दास अस्पताल के निकट एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कवि डा मलय व प्रोफेसर डा अरूण कुमार कबीर की प्रासंगिकता पर अपने विचार व्यक्त करेंगे।
विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने सभी साहित्यप्रेमियों व कलाप्रेमियों से इस कार्यक्रम में शामिल होने का
अनुरोध किया है। 

Monday, November 3, 2014

जनसंस्कृति को नए सिरे से परिभाषित करना होगा-रामप्रकाश त्रिपाठी

आज का समय तेज वैज्ञानिक प्रगति और संचार माध्यमों का समय है साथ ही आक्रामक व्यापार का समय है। आज विश्व का कोई स्थान ऐसा नहीं है जहां संचार के माध्यम से संपर्क नहीं किया जा सकता हो। इन माध्यमों का परिणाम यह है कि हम चाहें या न चाहें, हमें पसंद हो या न हो, हर समाचार, संदेश और सूचना घर घर पंहुचाई जा रही है। इस प्रगति का सीधा संबंध संस्कृति से है। जिसे हम लोकसंस्कृति कहते हैं लोककलाएं कहते हैं उनका भी कच्चापन और अनगढ़पन गायब हो गया है और वे एक संश्लेषित रूप में सजधज कर हमें परोसी जाती हैं। इसीलिए इप्टा की स्थापना के समय जनसंस्कृति की जो समझ थी वो अब बदल चुकी है। उसे हमंे नई परिस्थिति में ढाल कर देखना होगा। समाज में बहुत से संसाधन आ गये हैं। मोटर कारें हैं, बहुत बडे बडे भवन हैं हर हाथ में मोबाइल है और हर किसी के पास कोई न र्कोई इंधन से चलने वाला वाहन है। पर फिर भी हमारे ही संचार माध्यम ये भी बताते हैं कि देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और देश में सत्तर करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं। उनकी आय 20 रूपये रोज से कम है। इन तथ्यों की रोशनी में हमें आज की जनसंस्कृति को समझना होगा। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि आज भी फूहड़ नाटक को देखने के लिए दर्शक नहीं जाते और अच्छे नाटक को देखने के लिए दर्शक जाते हैं। अच्छी प्रस्तुति के बारे में दर्शकों में एक सामान्य समझ है और उसका अवमूल्यन वो नहीं करते हैं।
ये विचार हैं लेखक, पत्रकार श्री रामप्रकाश त्रिपाठी के जो उन्हांेने विवेचना द्वारा आयोजित विचारगोष्ठी में ’जनसंस्कृति और आज का समय’ विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए। श्री रामप्रकाश त्रिपाठी भोपाल में प्रखर रंग समीक्षक, लेखक, और पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं।
कार्यक्रम के शुरू में इप्टा के

रामप्रकाश भाषण देते हुए 

इंद्रपाल सिंह जनगीत गाते  हुए 
राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य और विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने ’जनसंस्कृति दिवस’ के बारे में बताया कि इप्टा की स्थापना 25 मई 1943 को हुई थी। मुम्बई में पूरे देश से कलाकार इकठ्ठे हुए थे और इप्टा का गठन हुआ था। इप्टा ने देश के स्वाधीनता आंदोलन मंे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश के गांव गांव में फैले कलाकारों को मंच पर लाकर आम जनता की संस्कृति और आकांक्षाओं को उजागर किया।
विवेचना के इस आयोजन में इन्द्रपाल सिंह व साथियों ने मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत नग्में प्रस्तुत किये। उल्लेखनीय है कि अभी चार दिन पहले दिवंगत हुए कलाकार श्री अनिल पांडे ने इस संगीत के कार्यक्रम का संयोजन किया था मगर आज यह कार्यक्रम उनके बिना ही उनको याद करते हुए संपन्न हुआ। श्रोताओं ने महसूस किया कि पुराने फिल्मी गीत मानवीय मूल्यों को बहुत अच्छे तरीके से अभिव्यक्ति देते हैं।
कार्यक्रम का संचालन बंाके बिहारी ब्यौहार ने किया और आभार प्रदर्शन वसंत काशीकर ने किया।

हरि भटनागर का उपन्यास समकालीन समाज की कहानी कहता है


हरी भटनागर , अरुण कुमार और अलोक गच्च 
हरी भटनागर पाठ करते हुए 

श्रोता 

हिमांशु राय परिचय देते हुए 
 ३ मई २०१४ को विवेचना और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के द्वारा जाने माने कथाकार हरि भटनागर भोपाल का रचना पाठ रानी दुर्गावती संग्रहालय की कलावीथिका में आयोजित हुआ। हिमांशु राय ने हरि भटनागर का परिचय देते हुए कहा कि हरि भटनागर ने अपनी कहानियों से अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनाई है। कहानी कार और सम्पादक दोनों ही रूपों में उन्होंने अपनी योग्यता प्रमाणित की है। ’साक्षात्कार’ के सम्पादन से वे लंबे अर्से  तक जुड़े रहे और ’रचना समय’ के रूप में उन्होंने हिन्दी के पाठकों को अनेक संग्रहणीय अंक दिये हैं।
श्री हरि भटनागर ने अपने नव प्रकाशित उपन्यास ’एक थी मैना एक था कुम्हार’ के कुछ अंशों का पाठ किया। इस उपन्यास की भाषा जनभाषा है। जिसमें एक सतत प्रवाह है जो पाठक को सहज ही अपने साथ बांध लेता है। नाटक के घटनाएं कभी यथार्थवादी हैं तो कभी फेंटेसी में जाती हैं। उपन्यास के बहाने उदारीकरण के बाद के देश का हाल हरि भटनागर कहते दिखाई देते हैं।
पाठ के पश्चात् श्री अरूण कुमार उपन्यास के बारे कहा कि यह आलेख आज की ग्रामीण सच्चाई का आलेख है। जिसमें सर्वहारा श्रमजीवी किन मुसीबतों और किन विरोधाभासों को शिकार हो रहा है इसका अनोखा विवरण है। उपन्यास में फेंटेसी के रूप में कभी मैना और कभी गधा भी बातें करते हैं। यह उपन्यास जल जंगल जमीन की लड़ाई का उपन्यास भी है और उदारीकरण की नीतियों से बदलते समाज का उपन्यास भी है जहां एक कुम्हार अपने गधे पर सामान ढ्रुलाई करता है वहीं उसका पड़ोसी एक ऑटो भी रखता है। नाटक की भाषा बहुत आसान है जो पाठक उपन्यास से जोड़कर रखती है।
 इस अवसर पर प्रख्यात अभिनेता आलोक गच्छ भोपाल हरि भटनागर की कहानी ’माई’ का नाट्य मंचन किया। यह कहानी हरि भटनागर ने सन् 1980 में लिखी थी। 2006 में इसका पुनर्लेखन हुआ। यह कहानी मां की कहानी है। इसका मंचन आलोक गच्छ ने भोपाल और लंदन में किया है। जबलपुर में इसके मंचन को दर्शकों ने बहुत सराहा।
कार्यक्रम का संचालन हिमांशु राय ने किया। आभार प्रदर्शन राजेन्द्र दानी ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में वसंत काशीकर, बांकेबिहारी ब्यौहार, रमाकांत ताम्रकार ने अपना योगदान दियां।


हरि भटनागर का रचना पाठ

हरि भटनागर का रचना पाठ
विवेचना और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के द्वारा जाने माने कथाकार हरि भटनागर भोपाल का रचना पाठ आयोजित है। श्री हरि भटनागर अपने नव प्रकाशित उपन्यास ’एक थी मैना एक था कुम्हार’ के एक अंश का पाठ करेंगे। पाठ के पश्चात् श्री अरूण कुमार उपन्यास के बारे में अपने विचार रखेंगे। इस अवसर पर प्रख्यात अभिनेता आलोक गच्छ भोपाल हरि भटनागर की कहानी ’माई’ का नाट्य मंचन करेंगे। यह नाटक भोपाल के अलावा विदेशों में भी मंचित हुआ है।
कार्यक्रम दिनांक 3 मई शनिवार को रानी दुर्गावती संग्रहालय भंवरताल में संध्या 6.30 बजे आयोजित है। हिमांशु राय, वसंत काशीकर, बांके बिहारी ब्यौहार, राजेन्द्र दानी, रमाकांत ताम्रकार ने सभी साहित्यप्रेमियों से उपस्थिति का अनुरोध किया है।
उत्तर प्रदेश में 1955 में जन्मे हरि भटनागर का प्रारम्भिक जीवन सुल्तानपुर, उ प्र में गुजरा। शुरूआत मेें ’अमर उजाला’, ’हितवाद’ जैसे राष्ट्रीय दैनिकों में काम। ’सगीर और उसकी बस्ती के लोग’, ’बिल्ली नहीं दीवार’, ’नाम में क्या रखा है’, ’सेवड़ी रोटियां’ उनके प्रकाशित कथा संग्रह हैं। उनकी कहानियां उर्दू, मलयालम, मराठी, पंजाबी, के साथ रूसी, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं में अनूदित हुई हैं। 25 वर्षों तक म प्र साहित्य परिषद की पत्रिका ’साक्षात्कार’ के सम्पादन से संबद्ध रहे। रूस के पुश्किन सम्मान समेत देश के राष्ट्रीय श्रीकान्त वर्मा पुरस्कार, दुष्यन्त कुमार सम्मान एवं वागीश्वरी पुरस्कार से पुरस्कृत। हरि भटनागर ने रूस, अमेरिका, ब्रिटेन की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक यात्राएं की हैं व विश्व हिन्दी सम्मेलन 2003 सूरीनाम, 2007 न्यूयार्क में सक्र्रिय हिस्सेदारी। वर्तमान में मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग में डिप्टी डायरेक्टर और पंजाबी अकादमी के सचिव हैं।

विवेचना का स्कूली बच्चों का वर्कशॉप

विवेचना का स्कूली बच्चों का वर्कशॉप
मध्यप्रदेश की सक्रिय नाट्य संस्था विवेचना द्वारा जबलपुर में स्कूली बच्चों की वर्कशॉप ’प्रथम’ का आयोजन आगामी 4 मई से 24 मई तक आयोजित किया जा रहा है। इस वर्कशॉप को पारूल शुक्ला, दिल्ली और तुलना शैरी कक्कड़, वसंत काशीकर संचालित करेंगे। पारूल शुक्ला ने दिल्ली में बच्चों और युवाओं के वर्कशॉप संचालित किए हैं। पारूल दिल्ली में सुप्रसिद्ध नाट्य निर्देशक बैरी जॉन के साथ काम कर चुकी हैं।
यह वर्कशॉप 9 साल से ऊपर के स्कूली बच्चों के लिये आयोजित है। वर्कशॉप यूरो किड्स स्कूल 97, आदर्शनगर, ग्वारीघाट रोड पर प्रतिदिन संध्या 4 बजे से 6 बजे तक संचालित होगा। बच्चों में अभिव्यक्ति की क्षमता, विश्लेषण क्षमता, रचनात्मकता और समूह में कार्य करने की क्षमता विकसित करने के लिये थियेटर एक बड़ा माध्यम है। थियेटर गेम्स, चरित्र अध्ययन, मूवमेन्ट, नृत्य और संगीत  के अलावा सीन इम्प्रोवाइजेशन और वर्कशॉप में तैयार नाटक में अभिनय से व्यक्तित्व विकास के अवसर पैदा होते हैं। आज के स्पर्धा के युग में बच्चों में इन गुणों का विकास होना बहुत आवश्यक है। विवेचना के स्कूली बच्चों के वर्कशॉप को पारूल शुक्ला, दिल्ली, तुलना शैरी कक्कड़ और वसंत काशीकर संचालित करेंगे।
विवेचना के ’प्रथम’ थियेटर वर्कशॉप फार स्कूल चिल्ड्रन हेतु रजिस्ट्रेेशन 3 मई तक प्रतिदिन संध्या 4 से 6 बजे के बीच किया जा सकता है। विवेचना के सचिव हिमांशु राय व बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर ने अभिभावकों से बच्चों को इस वर्कशाप में भेजने का अनुरोध किया है।

कोलकाता में नाटक ’मानबोध बाबू’ का मंचन


पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा 23 मार्च से 27 मार्च 2014 तक राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजनकोलकाता में किया गया। इस समारोह में विवेचना जबलपुर को आमंत्रित किया गया। विवेचना जबलपुर ने 24 मार्च 2014 को कोलकाता में पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के ऑडीटोरियम में अपने मौलिक नाटक ’मानबोध बाबू’ का मंचन किया। यह नाटक श्री चन्द्रकिशोर जायसवाल की इसी नाम की कहानी का नाट्य रूपांतर है। इसका निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। इस नाटक के 25 से अधिक मंचन पूरे देश के प्रतिष्ठित मंचों पर हुए हैं। समारोह के दौरान पूर्व क्षेत्र के रंगकर्मियों का एक वर्कशॉप भी हुआ।  इन युवाओं ने दूसरे दिन नाटक पर गंभीर चर्चा की और कहा कि ऐसा भावनापूर्ण नाटक उनने पहली बार देखा। इस नाटक का कोलकता के लिए विशेष महत्व है क्योंकि इसकी कहानी  इर्द गिर्द घूमती है.