Saturday, October 25, 2014

विवेचना के नाटकों ने काला घोड़ा फेस्टीवल में मचाई धूम

विवेचना जबलपुर को मुम्बई के सुप्रसिद्ध काला घोड़ा आर्ट्स फेस्टिवल 2014 में आमंत्रित किया गया। यह प्रथम अवसर है जबकि मुम्बई के बाहर की नाट्य संस्था को फेस्टीवल में आमंत्रित किया गया। काला घोड़ा फेस्टीवल सन् 1999 से आयोजित किया जा रहा है। यह उत्सव धीरे धीरे मुम्बई शहर की धड़कन बन गया है। साउथ बाम्बे मुम्बई का ही नहीं विश्व के सबसे मंहगे इलाकों में से एक माना जाता है। साउथ बाम्बे में अंग्रेजों के समय से भी पहले की मुम्बई की संस्कृति और परंपराएं आज भी जीवित हैं। साउथ बाम्बे के नागरिकों ने मिलकर काला घोड़ा फेस्टीवल की शुरूआत की। संस्कृति की रक्षा के अलावा इस फेस्टीवल से होने वाली आय से धरोहरों की रक्षा भी की जाती है। काला घोड़ा फेस्टीवल में नाटक, नृत्य, लोकनृत्य, सुगम व शास्त्रीय गायन, पेन्टिंग, मूर्तिकला, बच्चों के चित्रकला, बच्चों के नाटक, सेमीनार, महिलाओं पर केन्द्रित कार्यक्रम व सेमीनार आदि लगभग 350 आयोजन होते हैं। काला घोड़ा इलाके में लगाया जाने वाला मेले में प्रतिदिन 50 से 70 हजार लोग आते हैं।
विवेचना को दो नाटकों के मंचन हेतु आमंत्रित किया गया। विवेचना की पहली प्रस्तुति ’मानबोध बाबू’ हाउस आॅफ टेल्स, काला घोड़ा में आयोजित थी। इसका समय रात्रि 08.15 का था। 07.15 से ही दर्शक आकर कतार में खड़े हो गये। सुप्रसिद्ध अभिनेता सुनील सिन्हा, अंक की निर्देशक प्रीता ठाकुर, अमन गुप्ता,  एकजुट संस्था के हनीफ पाटनी, अंकुर सी आई डी सीरियल के सुप्रसिद्ध डाक्टर सालुंके जिनका असली नाम नरेन्द्र ह,ै गायक आभास जोशी, रवीन्द्र जोशी सभी ने इस नाटक को देखा। रवीन्द्र जोशी ने नाटक में कबीर गायन भी किया। जब हाॅल पूरा भर गया और तिल भर भी जगह नहीं रही तो दर्शकों का प्रवेश बंद कर दिया गया। दर्शकों से खचाखच भरे हाॅल में मानबोध बाबू का मंचन हुआ। मानबोध बाबू दो यात्रियों की कहानी है जो मुम्बई से कलकत्ता तक की यात्रा साथ साथ करते हैं। मानबोध बाबू अद्भुत चरित्र है। इनने जीवन को बहुत जतन से भोगा है। इसलिए ये कड़वी सच्चाईयों से वाकिफ हैं। मोहनलाल सीधा सादा आदमी है। मानबोध बाबू यात्रा के दौरान उसे भोगे हुए यथार्थ से परिचित कराते हैं।
नाटक के दौरान लगातार तालियां बजती रहीं और नाटक के अंत में दर्शकों ने खड़े होकर कलाकारों का अभिवादन किया। नाटक में मुम्बई में स्थापित और संघर्षरत मध्यप्रदेश के कलाकार बड़ी संख्या में आए।
विवेचना का दूसरा नाटक ’दस दिन का अनशन’ एम सी घिया हाॅल काला घोड़ा में आयोजित था। 7 फरवरी 2014 को आयोजित इस शो में नादिरा बब्बर, प्रीता ठाकुर, सुनील सिन्हा, आदि विशेष रूप से पधारे। मंचन संध्या 5.30 बजे आयोजित था। 5 बजे से ही दर्शकों की कतार लग गई और मंचन के वक्त पूरा हाॅल खचाखच भरा था। दर्शकों ने दस दिन का अनशन का भरपूर आनंद लिया। दस दिन का अनशन परसाई जी की इसी नाम की कहानी का नाट्य रूपांतर है। विवेचना ने इसे 2 वर्ष पूर्व तैयार किया था। इसके 25 से अधिक मंचन हो चुके हैं। नाटक में हास्य और व्यंग्य का अच्छा समायोजन है। एक लफंगा बन्नू राधिका बाबू की पत्नी सावित्री के पीछे पड़ जाता है। उसकी पिटाई होती है तो वो हरिप्रसाद नेता के पास जाता है। वो उसेे बाबा सनकीदास के पास ले जाते हैं जो उन्हें अनशन पर बैठा देता है। इस नाटक की विशेषता यह है कि इसे 50 वर्ष पूर्व लिखा गया पर लगता है जैसे आज की परिस्थितियों पर आज लिखा गया है। नाटक को दर्शकों ने खूब पसंद किया और आयोजकों ने कहा कि विवेचना को प्रतिवर्ष काला घोड़ा फेस्टीवल में अपनी प्रस्तुतियों के साथ आना चाहिए।
काला घोड़ा फेस्टीवल में विवेचना को आमंत्रण और विवेचना के नाटकों का सफल मंचन एक मील का पत्थर साबित हुआ है। विवेचना द्वारा मुम्बई के लिए एक विशेष ब्रोशर छापा गया। जिसे वहंा दर्शकों के बीच वितरित किया गया। विवेचना के नाटकों को काला घोड़ा फेस्टीवल के कार्यक्रम में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। विवेचना के नाटक ’दस दिन का अनशन’ की समीक्षा अंग्रेजी दैनिक ’हिन्दुस्तान टाइम्स’ में प्रमुखता से सचित्र प्रकाशित हुई। 

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