Wednesday, October 22, 2014

विवेचना द्वारा ’मिला तेज से तेज’ का मंचन


विवेचना संस्था द्वारा नाटकों के निरंतर मंचन के अंतर्गत 2 सितंबर 2013 सोमवार को संध्या 7.30 बजे नाटक मिला तेज से तेज का मंचन गया। नाटक का निर्देशन व आलेख संजय गर्ग का था। इसमें किशोर वय के कलाकारों ने सराहनीय कार्य किया। मंच पर पूरे समय उर्जा का संचार होता दिख रहा था।
यह नाटक सुभद्राकुमारी चौहान के जीवन पर आधारित है। सुभद्रा जी न केवल एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं वरन् इस शताब्दी की महत्वपूर्ण कवियत्री थीं। इससे कवि विरल हैं जिनकी कविताएं हर एक की जबान पर होती हों। हर हिंदी भाषी के लिए ’खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ बचपन मंे कविता शब्द से परिचय कराने वाली पहली पंक्ति हुआ करती है।
संजय गर्ग ने सुभद्रा जी के बचपन, फिर विवाह और विवाह के बाद बच्चों के लालन पालन के बीच विकसित होती हुई एक कवियत्री को अपनी प्रस्तुति में आकार दिया है। नाटक में बचपन के दृश्य बहुत भावनात्मक हैं। आज के यांत्रिक समय में ये दृश्य एक अलग ही प्रभाव पैदा करते हैं जिसमें भावनाओं और सादगी का अद्भुद सम्मिश्रण दिखता है। स्कूल के बच्चे इकठ्ठे होकर अपनी पाठ्यपुस्तक के गीत गाते हैं जो सभी सुभद्रा जी द्वारा लिखे गये हैं। नाटक में ’ कोयल काली काली है पर मीठी है इसकी बोली’, वो देखो मां आज खिलौने वाला फिर से आया है’, आओ प्रिय ऋतुराज मगर धीरे से आना, मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी, सभा सभा का खेल आज हम खेलेंगे दीदी आओ, ये कदम्ब का पेड़ अगर मां होता जमुना तीरे, नीम का पेड़ यद्यपि तू कड़ू , नहीं रंचमात्र मिठास, आदि कविताओं का सस्वर गायन बहुत रोचक है। इससे यह नाटक कहीं संगीत नाटक के पास जा बैठता है।
नाटक में जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम विशेष रूप से झंडा सत्याग्रह और सुभद्रा जी व उनके पति का बच्ची सहित जेल जाने के दृश्य हैं। उल्लेखनीय है कि सुभद्रा जी को पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है। वे केन्ट बोर्ड जबलपुर में झंडा फहराते गिरफ्तार हुर्इ्रं थीं। नाटक में गांधी जी के जबलपुर प्रवास का भी दृश्य है जो अनोखा है और बहुत प्रभावशाली है। गांधी जी 3 दिसंबर 1933 को अछूतोद्धार आंदोलन के सिलसिले में जबलपुर  आए थे।
सुभद्रा कुमारी चौहान का गीत ’बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी। दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। जैसी पंक्तियां हमेशा हमारे कानों में गंूजती रहती है। पाठ्यपुस्तकों में जो गीत है वो संपादित है जबकि दरअसल यह गीत बहुत बड़ा है। इतिहास को इतने सरल शब्दों में पिरोया गया है कि बचपन में पढ़ा यह गीत आज भी कंठस्थ है। जिन लोगों ने सुभद्रा जी को केवल इस गीत के माध्यम से जाना है उनके लिए सुभद्रा जी का संघर्षपूर्ण जीवन और साहित्यिक जीवन दोनों ही बहुत कुछ समझने की मांग करते हैं। ये गांधी का आंदोलन ही था जिसने लाखों महिलाओं को आजादी के आंदोलन में समेटा और उन्हें घर से बाहर निकालकर देश के लिए मरमिटने का संदेश दिया।
नाटक में सुभद्रा जी के पति लक्ष्मण सिंह चौहान का जब्तशुदा नाटक ’गुलामी का नशा’ से भी एक कविता ’चल दिये माता के बंदे जेल बंदे मातरम’ का गायन भी किया गया है।
नाटक में विभिन्न भूमिकाओं में आशीष नेमा, अली फैजल खां, अंशुल साहू, शेखर मेहरा, अक्षय ठाकुर, आयुष राय, संजीव विश्वकर्मा, ब्रजेन्द्र राजपूत, शिवेन्द्र सिंह, इंदु सूर्यवंशी, मुस्कान सोनी, शालिनी अहिरवार, श्रुति गुप्ता, श्रेया गुप्ता, सुजाता केसरवानी, मनीषा तिवारी, मनु कौशल ने अभिनय किया। तबले पर अक्षय ठाकुर, ढोलक पर अंकुश पसेरिया, हारमोनियम पर मुस्कान सोनी, रिज़वान अली खां रहे। इंदु सूर्यवंशी ने सुभद्रा जी के रोल में प्रभावशाली अभिनय किया। प्रकाश व्यवस्था जगदीश यादव की थी। नाटक के अंत में संजय गर्ग ने दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुए जॉय स्कूल का आभार व्यक्त किया जहां इस नाटक का पूर्वाभ्यास हुआ।






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