Tuesday, October 21, 2014

बहुत कठिन है व्यंग्य लिखना: डा ज्ञान चतुर्वेदी

विवेचना का आयोजन - परसाई जन्मदिवस  
व्यंग्य पढ़ने और लिखने की तमीज़़






विवेचना, जबलपुर द्वारा हर साल की तरह इस साल भी 22 अगस्त को परसाई जन्मदिवस मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डा ज्ञान चतुर्वेदी थे। नईदुनिया के जबलपुर संस्करण के संपादक श्री दिवाकर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
कार्यक्रम के प्रारंभ में विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने परसाई जन्मदिवस के बारे में कहा कि विवेचना द्वारा हर 22 अगस्त को परसाई जी का जन्मदिवस मनाया जाता है। लेखक जिस शहर में रहा हो वहां उसके मित्रों और पाठकों का उसे याद किया जाना जरूरी है।
लेखिका  इंदु श्रीवास्तव  ने परसाई जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक लेख पढ़ा।  इंदु जी ने बताया कि परसाई जी सिर्फ लेखक नहीं थे वरन् एक तरह के समाज सुधारक थे जो अपनी तीखी लेखनी से समाज को बदलने की कोशिश करते थे। वे अपने लेखन के लिए चरित्र आम लोगों में से तलाशते थे और उसी के बहाने वो अपनी बात कह जाते थे। उनकी कही बातें तीर की तरह चुभती थीं। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ झेला था। उनके ये जीवनानुभव ही उन्हें हर चरित्र के अंदर झांक सकने की शक्ति देते थे।
डा ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने भाषण की शुरूआत में कहा कि मुझे मुख्यअतिथि बनने से बहुत डर लगता है। क्योंकि धीरे धीरे मुख्यअतिथि बनने की आदत सी बन जाती है फिर ये लगने लगता है कि भई सबको बुला रहे हो, हमंे भी बुलाओ। कर कमल हो जाते हैं। एक लेखक की सबसे बड़ी विडंबना यही हो सकती है कि उसके कर कमल हो जाएं। जो हाथ उसकी पूंजी हैं वे ही किसी काम के न रहें।
आगे बात करते हुए डा ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि आज मेरा विषय ’व्यंग्य पढ़ने की तमीज़’ है। इससे मेरा तात्पर्य तमीज़ सिखाना नहीं है वरन् मेरा कहना ये है कि यदि मैं कोई बात कहना चाहता हूं और वो मैं अपने शब्दों के माध्यम से कह सका हूं तो मैं सफल हूं। दरअसल ये शीर्षक होना चाहिए ’व्यंग्य पढ़ने और लिखने की तमीज़’। पढ़ने की तमीज़ तो होना ही चाहिए पर साथ ही व्यंग्य लिखने की तमीज़’ भी होना चाहिए।
डा ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि एक अच्छी व्यंग्य रचना किसे कहते हैं ? क्या है जिसके कारण हमें एक रचना अच्छी लगती है। एक पाठक हमारी रचना में अंततः क्या ढंूढता है। पाठक हमारी रचना में विचार तलाशता है। यदि आप व्यंग्यकार हैं तो आपकी रचना में व्यंग्य तो हो। व्यंग्य तो विचार से ही पैदा होता है। यदि आपके पास विचार ही नहीं है तो व्यंग्य कहां से पैदा होगा। इसीलिए जरूरी है कि हम समाज को समझें, समाज में रह रहे लोगों के दुख दर्द को जानें फिर डूब कर लिखें। जिस विचार ने तुम्हें नहीं पकड़ा वो दर्शक या पाठक को क्या पकड़ेगा।
एक अच्छी रचना की पहचान करने के लिए शास्त्र पढ़ना जरूरी नहीं है। व्यंग्य लिखना बहुत कठिन काम है। इसीलिए आप पायेंगे कि हिन्दी, उर्दू में व्यंग्यकार कितने हैं ? उन्होंने पाकिस्तान का जिक्र किया जहां शौकत थानवी की मृत्यु पर राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। उन्होंने ब्रिटेन के हवाई अड्डे का भी उल्लेख किया जहां वे एक सम्मान लेने गये थे और हवाई अड्डे पर उन्हें रोक लिया गया और जब उन्होंने बताया कि वो एक व्यंग्यकार हैं तो उसने उन्हें बहुत सम्मान के साथ विदा किया।
उन्होंने कहा कि वे पेशे से एक डाक्टर हैं। वो दिनभर 100 के करीब मरीज देखते हैं। पर मरीज के इलाज के अलावा उनका उद्देश्य यह भी होता है कि बातों के दौरान मरीज को जाना जाए। वो हर मरीज से उसके मर्ज के अलावा उसके घर परिवार बाल बच्चों के बारे में पूछते हैं। इसीलिए हर रोज उनके पास पचासों कहानियां आती हैं। जीवन से रोज नया सीखना होता है। जब हम रोज नए अनुभवों से गुजरते हैं तब हम रोज नया लिख पाते हैं।
परसाई जी ने बहुत अच्छे कामों के साथ एक बुरा काम ये किया कि लेखकों की एक ऐसी पौध तैयार कर दी जिसे लगता है कि व्यंग्य लिखना बहुत सरल काम है। जिसे व्यंग्य पढ़ने की तमीज़ नहीं है वो व्यंग्य क्या लिखेगा। उन्होंने कहा कि मेरे कद में परसाई और शरद जोशी का कद शामिल है। न तो मैं उनसे अलग हूं और न उनसे बड़ा हूं। आप कुछ नहीं है यदि आपके पूर्वज आप में शामिल नहीं हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्रीवत्स दिवाकर ने कहा कि आज साहित्य का नया पाठक नहीं बन रहा है। समाज एक कुंद समाज में तब्दील हो गया है जहां लोगों का आपस में मिलना जुलना बंद हो गया है। पहले शहर में कुछ अड्डे हुआ करते थे जहां लोग इकठ्ठे होकर गप्पें भी मारा करते थे और विचार विमर्श भी करते थे। यह एक सामाजिक परिवर्तन है जिसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। यह चिंताजनक है।
कार्यक्रम का संचालन बांकेबिहारी ब्यौहार ने किया। आभार प्रदर्शन राजेन्द्र दानी ने किया। आभार प्रदर्शन के बाद विवेचना के कलाकारों ने परसाई जी की रचना ’इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ का मंचन किया। नाटक का निर्देशन तपन बैनर्जी ने किया। वरिष्ठ कलाकार सीता राम सोनी और तपन बैनर्जी ने इस नाटक में अभिनय किया।

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