सेतु संस्था द्वारा आयोजित नाट्य समारोह में 10 अपै्रल 2011 को लगातार दूसरे वर्ष विवेचना को आमंत्रित किया गया। विवेचना के कलाकारों ने 10 अपै्रल 2011 अपना सुप्रसिद्ध नाटक मानबोध बाबू मंचित किया जिसकी भूरि भूरि प्रशंसा दर्शकों ने की।
Friday, November 25, 2011
बनारस में मानबोध बाबू
सेतु संस्था द्वारा आयोजित नाट्य समारोह में 10 अपै्रल 2011 को लगातार दूसरे वर्ष विवेचना को आमंत्रित किया गया। विवेचना के कलाकारों ने 10 अपै्रल 2011 अपना सुप्रसिद्ध नाटक मानबोध बाबू मंचित किया जिसकी भूरि भूरि प्रशंसा दर्शकों ने की।
नरसिंहपुर में ’मानबोध बाबू’
पुनीत त्रिवेदी रानावि के 1996 के स्नातक हैं और जबलपुर से लगे हुए जिले नरसिंहपुर में रंगकर्म कर रहे हैं। विगत तीन वर्षों से नरसिंहपुर में नाट्य समारोह हो रहा है। नरसिंहपुर में रानावि के सहयोग से सन् 2008 में एक नाट्यशिविर हुआ जिसके बाद से नाटकों के मंचन निरंतर जारी हैं। इसके परिणामस्वरूप छोटे शहर की सीमाओं और नाट्यगृह के अभाव के बीच अच्छे नाटक विभिन्न शहरों से आमंत्रित किए जा रहे हैं। 20 व 21 फरवरी 2011 को आयोजित नरसिंह रंग महोत्सव में तीन नाटक मंचित हुए। पहले दिन जयपुर से आए नाट्यदल ने अशोक राही के निर्देशन में शरद जोशी के नाटक ’एक था गधा’ का मंचन किया। अपने विषय के अनुरूप इस व्यंग्य नाटक को बहुत सराहा गया। दूसरे दिन विवेचना, जबलपुर ने चन्द्रकिशोर जायसवाल की कहानी ’मानबोध बाबू’ का मंचन किया। इसका निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। नाट्य रूपांतर संजय गर्ग ने किया है। यह नाटक देश के विभिन्न मंचों पर हुआ है और बहुत सराहा गया है। यह दो बुजुर्गों की कहानी है जो मुम्बई से कलकत्ता तक की यात्रा साथ साथ कर रहे हैं। पूरा नाटक एक रेल की डिब्बे में होता है। नाटक का सैट बहुत आकर्षक है। प्रमुख अभिनेता सीताराम सोनी और संजय गर्ग की जोड़ी अभिनय के नए प्रतिमानों को छूती प्रतीत होती है। यह नाटक दरअसल जीवन जीने की कला सिखाता है। दर्शक नाटक में बार बार अपनी घर की कहानी को मंच पर घटित होता पाता है। नाटक में मानबोध बाबू और मोहन बाबू के दो अलग निराले मगर प्यारे चरित्र उभर कर आते हैं। नाटक रेलगाड़ी के शुरू होने के साथ शुरू होता है और पड़ाव पर पंहुचने के साथ खत्म होता है। ये यात्रा वस्तुतः जीवन की यात्रा है जिसमें हंसी भी है तो रूदन भी। खुशियां भी हैं तो शोक और अवसाद भी। नाटक का अंत चौंकानेवाला है और एक ऐसे रहस्य को जन्म देता है जिसे दर्शक को अपने साथ ले जाना है और लगातार सोचना है। नाटक में तीन मौकों पर चुनिंदा फिल्मी गीतों का प्रयोग है जो दिलों को छू जाते हैं। समारोह का अंतिम नाटक के.जी. त्रिवेदी के निर्देशन में मंचित हुआ। श्रीकांत आप्टे के लिखे इस नाटक ’बस इतना सा ख्वाब है’ के मध्यप्रदेश के विभिन्न नगरों में अनेक शो हुए हैं। यह नाटक मध्यमवर्गीय परिवारों की स्थितियों के इर्द गिर्द घूमता है। जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने में आम आदमी के जीवन की शाम हो जाती है।
इलाहाबाद में मित्र
मित्र
विवेचना, जबलपुर के नाटक मित्र का मंचन 12 दिसंबर को इलाहाबाद में हुआ। ’आधारशिला ’ इलाहाबाद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय नाट्य समारोह 2010 में प्रथम दिवस उद्घाटन के दिन बड़ी संख्या में दर्शक नाटक देखने आए। वरिष्ठ साहित्यकार अजित पुष्कल ने नाट्य समारोह का शुभारंभ किया। डा शिरीष आठवले लिखित इस नाटक का विवेचना द्वारा किया गया यह चौथा मंचन था। आधारशिला संस्था के संयोजक अजय केशरी ने बताया कि संस्था द्वारा सन् 2008 राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस समारोह में कलाप्रेमी, कोलकाता द्वारा ’खाली बोतल’, नवरंग, दिल्ली द्वारा कौआ चला हंस की चाल नाटक मंचित हुए।
विवेचना, जबलपुर के नाटक मित्र का मंचन 12 दिसंबर को इलाहाबाद में हुआ। ’आधारशिला ’ इलाहाबाद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय नाट्य समारोह 2010 में प्रथम दिवस उद्घाटन के दिन बड़ी संख्या में दर्शक नाटक देखने आए। वरिष्ठ साहित्यकार अजित पुष्कल ने नाट्य समारोह का शुभारंभ किया। डा शिरीष आठवले लिखित इस नाटक का विवेचना द्वारा किया गया यह चौथा मंचन था। आधारशिला संस्था के संयोजक अजय केशरी ने बताया कि संस्था द्वारा सन् 2008 राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस समारोह में कलाप्रेमी, कोलकाता द्वारा ’खाली बोतल’, नवरंग, दिल्ली द्वारा कौआ चला हंस की चाल नाटक मंचित हुए।
विवेचना के नाटकों का समारोह ’तीन रंग’
भोपाल में रंग आधार ने विवेचना के नाटकों का तीन दिन का उत्सव आयोजित किया। विवेचना ने अपने नाटकों के एक बार में पांच पांच दिनों तक लगातार मंचन किये हैं मगर विवेचना के नाटकों का समारोह पहली बार आयोजित हुआ। ’तीन रंग’ के शीर्षक से आयोजित इस समारोह में विवेचना के कला निर्देशक वसंत काशीकर द्वारा निर्देशित तीन नाटक मंचित हुए। भोपाल में यह समारोह अपनी शुरूआत से पहले ही चर्चा का विषय बन चुका था। रंगआधार के सूत्रधार राकेश सेठी ने वनमाली सृजनपीठ के साथ मिलकर एक कार्यक्रम शुरू किया जिसमें किसी एक निर्देशक के तीन नाटक मंचित हों। शुरूआत हुई स्व हबीब तनवीर के तीन नाटकों से। 7 सितंबर 2009 को जिसने लाहौर नहीं देखा का मंचन हुआ। 8 सितंबर को चरणदास चोर का मंचन हुआ और 9 सितंबर को आगरा बाजार का मंचन हुआ। इसी आयोजन की दूसरी कड़ी में जबलपुर से विवेचना को वसंत काशीकर के द्वारा निर्देशित तीन नाटकों का मंचन करने के लिए आमंत्रित किया गया। विवेचना द्वारा इस समय पांच नाटकों का मंचन किया जा रहा है। हर साल दो नए नाटक तैयार होते हैं। विवेचना के नाटक देश के विभिन्न मंचों पर मंचित होते रहते हैं। मायाजाल, मानबोध बाबू, सूपना का सपना, मित्र और मौसा जी जैहिन्द के मंचन लगातार हो रहे हैं। विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह में हर वर्ष प्रथम दिन विवेचना का स्वयं का नाटक मंचित होता है। उपरोक्त नाटकों के अलावा छोटे छोटे कहानी मंचन और नाट्य पाठ विवेचना के नियमित आयोजनों का हिस्सा हैं।
तीन रंग के प्रथम दिन विवेचना के कलाकारों ने डा शिरीष आठवले लिखित नाटक ’मित्र’ का मंचन किया। यह नाटक रंगआधार के समारोह में पहले मंचित हो चुका था। दर्शकों में इस नाटक के प्रति बहुत अधिक आग्रह था। भोपाल में किसानों द्वारा अचानक सत्याग्रह किए जाने से भारत भवन आने के सारे रास्ते बंद हो गये उसके बावजूद काफी दर्शक पैदल चलकर आए। यह इस नाटक की लोकप्रियता का प्रमाण कहा जा सकता है। इस नाटक में निर्देशन के अलावा वसंत काशीकर ने मुख्य भूमिका का भी निर्वाह किया है। तुलना शैरी कक्कड़, इंदु सूर्यवंशी, रवि शर्मा, संजय गर्ग ने मिसेज रूपवते, मैत्रेयी, माधव और डाक्टर की भूमिकाओं का सुंदर निर्वाह किया।
तीन रंग के दूसरे दिन विवेचना के कलाकारों ने मानबोध बाबू का मंचन किया। यह नाटक चंद्रकिशोर जायसवाल की कहानी पर आधारित है। विवेचना के इस नाटक को पूरे देश में व्यापक सराहना मिली है। मानबोध बाबू की कहानी अद्भुत है और है रोचकता से भरपूर। मानबोध बाबू मेें विवेचना के दो वरिष्ठ कलाकारों सीताराम सोनी और संजय गर्ग की जोड़ी दर्शकों को आनंदित करती है। मानबोध बाबू एक ऐसे मस्तमौला व्यक्ति हैं जो हर राह चलते से दोस्ती करते हैं, हर किसी से तपाक से मिलते हैं और अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर हर किसी को बिना मांगे सलाह देते हैं। मानबोध बाबू उच्च नैतिक मूल्यों पर विश्वास रखते हैं और उन्हीं के आधार पर अपनी बात कहते हैं। नाटक भावुकता, रोचकता और रहस्य का अनोखा मिश्रण है। विवेचना का यह मौलिक नाटक इस समय देश में धूम मचा रहा है। नाटक में रेलवे कम्पार्टमेंट का पूरा सैट लगाया जाता है जो आकर्षक होने के साथ ही दर्शकों में कौतुहल जगाता है। मानबोध बाबू की रोचक बातचीत स्टेशन और रेल के डिब्बे में तरह तरह के यात्री और उनका नाटकीय व्यवहार दर्शकों को बांध लेता है।
मानबोध बाबू का भोपाल में यह दूसरा मंचन था जिसे बहुत सराहा गया। तीन रंग के तीसरे दिन विवेचना के तीसरे नाटक ’मौसाजी जैहिन्द’ का मंचन हुआ। यह नाटक उदयप्रकाश की कहानी मौसा जी पर आधारित है। मौसा जी बुन्देलखंड के एक आम बुजुर्ग हैं जिन्होंने अपने आसपास एक कल्पनालोक सजा रखा है। वो इस भ्रम में हैं कि उनकी बातों को सब सच मानते हैं। लोग उन्हें भ्रम में रखते हैं और कभी उनका मजाक उड़ाते हैं तो कभी उनके प्रति भावुक हो जाते हैं। पर मौसाजी कभी नहीं बदलते। मौसाजी की मानें तो गंाधी जी उनके गहरे दोस्त थे और ये स्वयं बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। मौसाजी की गप्पों का मज़ा पूरा गांव उठाता था और ये भी जानता था कि मौसा जी के पास कभी कभी पेट भरने के लिए अन्न का दाना नहीं रहता। नाटक का अंत बहुत मार्मिक है। इस नाटक का यह तीसरा मंचन था। नाटक की भाषा, प्रवाह और मौसाजी के किरदार में वसंत काशीकर को दर्शकों की भरपूर प्रशंसा मिली। भोपाल में रंगआधार द्वारा आयोजित विवेचना के तीन नाटकों के समारोह को बहुत पसंद किया गया।
तीन रंग के प्रथम दिन विवेचना के कलाकारों ने डा शिरीष आठवले लिखित नाटक ’मित्र’ का मंचन किया। यह नाटक रंगआधार के समारोह में पहले मंचित हो चुका था। दर्शकों में इस नाटक के प्रति बहुत अधिक आग्रह था। भोपाल में किसानों द्वारा अचानक सत्याग्रह किए जाने से भारत भवन आने के सारे रास्ते बंद हो गये उसके बावजूद काफी दर्शक पैदल चलकर आए। यह इस नाटक की लोकप्रियता का प्रमाण कहा जा सकता है। इस नाटक में निर्देशन के अलावा वसंत काशीकर ने मुख्य भूमिका का भी निर्वाह किया है। तुलना शैरी कक्कड़, इंदु सूर्यवंशी, रवि शर्मा, संजय गर्ग ने मिसेज रूपवते, मैत्रेयी, माधव और डाक्टर की भूमिकाओं का सुंदर निर्वाह किया।
तीन रंग के दूसरे दिन विवेचना के कलाकारों ने मानबोध बाबू का मंचन किया। यह नाटक चंद्रकिशोर जायसवाल की कहानी पर आधारित है। विवेचना के इस नाटक को पूरे देश में व्यापक सराहना मिली है। मानबोध बाबू की कहानी अद्भुत है और है रोचकता से भरपूर। मानबोध बाबू मेें विवेचना के दो वरिष्ठ कलाकारों सीताराम सोनी और संजय गर्ग की जोड़ी दर्शकों को आनंदित करती है। मानबोध बाबू एक ऐसे मस्तमौला व्यक्ति हैं जो हर राह चलते से दोस्ती करते हैं, हर किसी से तपाक से मिलते हैं और अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर हर किसी को बिना मांगे सलाह देते हैं। मानबोध बाबू उच्च नैतिक मूल्यों पर विश्वास रखते हैं और उन्हीं के आधार पर अपनी बात कहते हैं। नाटक भावुकता, रोचकता और रहस्य का अनोखा मिश्रण है। विवेचना का यह मौलिक नाटक इस समय देश में धूम मचा रहा है। नाटक में रेलवे कम्पार्टमेंट का पूरा सैट लगाया जाता है जो आकर्षक होने के साथ ही दर्शकों में कौतुहल जगाता है। मानबोध बाबू की रोचक बातचीत स्टेशन और रेल के डिब्बे में तरह तरह के यात्री और उनका नाटकीय व्यवहार दर्शकों को बांध लेता है।
मानबोध बाबू का भोपाल में यह दूसरा मंचन था जिसे बहुत सराहा गया। तीन रंग के तीसरे दिन विवेचना के तीसरे नाटक ’मौसाजी जैहिन्द’ का मंचन हुआ। यह नाटक उदयप्रकाश की कहानी मौसा जी पर आधारित है। मौसा जी बुन्देलखंड के एक आम बुजुर्ग हैं जिन्होंने अपने आसपास एक कल्पनालोक सजा रखा है। वो इस भ्रम में हैं कि उनकी बातों को सब सच मानते हैं। लोग उन्हें भ्रम में रखते हैं और कभी उनका मजाक उड़ाते हैं तो कभी उनके प्रति भावुक हो जाते हैं। पर मौसाजी कभी नहीं बदलते। मौसाजी की मानें तो गंाधी जी उनके गहरे दोस्त थे और ये स्वयं बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। मौसाजी की गप्पों का मज़ा पूरा गांव उठाता था और ये भी जानता था कि मौसा जी के पास कभी कभी पेट भरने के लिए अन्न का दाना नहीं रहता। नाटक का अंत बहुत मार्मिक है। इस नाटक का यह तीसरा मंचन था। नाटक की भाषा, प्रवाह और मौसाजी के किरदार में वसंत काशीकर को दर्शकों की भरपूर प्रशंसा मिली। भोपाल में रंगआधार द्वारा आयोजित विवेचना के तीन नाटकों के समारोह को बहुत पसंद किया गया।
Thursday, May 5, 2011
Wednesday, May 4, 2011
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