Friday, November 25, 2011

नरसिंहपुर में ’मानबोध बाबू’

पुनीत त्रिवेदी रानावि के 1996 के स्नातक हैं और जबलपुर से लगे हुए जिले नरसिंहपुर में रंगकर्म कर रहे हैं। विगत तीन वर्षों से नरसिंहपुर में नाट्य समारोह हो रहा है। नरसिंहपुर में रानावि के सहयोग से सन् 2008 में एक नाट्यशिविर हुआ जिसके बाद से नाटकों के मंचन निरंतर जारी हैं। इसके परिणामस्वरूप छोटे शहर की सीमाओं और नाट्यगृह के अभाव के बीच अच्छे नाटक विभिन्न शहरों से आमंत्रित किए जा रहे हैं। 20 व 21 फरवरी 2011 को आयोजित नरसिंह रंग महोत्सव में तीन नाटक मंचित हुए। पहले दिन जयपुर से आए नाट्यदल ने अशोक राही के निर्देशन में शरद जोशी के नाटक ’एक था गधा’ का मंचन किया। अपने विषय के अनुरूप इस व्यंग्य नाटक को बहुत सराहा गया। दूसरे दिन विवेचना, जबलपुर ने चन्द्रकिशोर जायसवाल की कहानी ’मानबोध बाबू’ का मंचन किया। इसका निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। नाट्य रूपांतर संजय गर्ग ने किया है। यह नाटक देश के विभिन्न मंचों पर हुआ है और बहुत सराहा गया है। यह दो बुजुर्गों की कहानी है जो मुम्बई से कलकत्ता तक की यात्रा साथ साथ कर रहे हैं। पूरा नाटक एक रेल की डिब्बे में होता है। नाटक का सैट बहुत आकर्षक है। प्रमुख अभिनेता सीताराम सोनी और संजय गर्ग की जोड़ी अभिनय के नए प्रतिमानों को छूती प्रतीत होती है। यह नाटक दरअसल जीवन जीने की कला सिखाता है। दर्शक नाटक में बार बार अपनी घर की कहानी को मंच पर घटित होता पाता है। नाटक में मानबोध बाबू और मोहन बाबू के दो अलग निराले मगर प्यारे चरित्र उभर कर आते हैं। नाटक रेलगाड़ी के शुरू होने के साथ शुरू होता है और पड़ाव पर पंहुचने के साथ खत्म होता है। ये यात्रा वस्तुतः जीवन की यात्रा है जिसमें हंसी भी है तो रूदन भी। खुशियां भी हैं तो शोक और अवसाद भी। नाटक का अंत चौंकानेवाला है और एक ऐसे रहस्य को जन्म देता है जिसे दर्शक को अपने साथ ले जाना है और लगातार सोचना है। नाटक में तीन मौकों पर चुनिंदा फिल्मी गीतों का प्रयोग है जो दिलों को छू जाते हैं। समारोह का अंतिम नाटक के.जी. त्रिवेदी के निर्देशन में मंचित हुआ। श्रीकांत आप्टे के लिखे इस नाटक ’बस इतना सा ख्वाब है’ के मध्यप्रदेश के विभिन्न नगरों में अनेक शो हुए हैं। यह नाटक मध्यमवर्गीय परिवारों की स्थितियों के इर्द गिर्द घूमता है। जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने में आम आदमी के जीवन की शाम हो जाती है।

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