Friday, November 25, 2011

22 अगस्त परसाई जी का जन्मदिवस


विवेचना और पहल ने मिलकर जबलपुर में स्व हरिशंकर परसाई का जन्मदिवस मनाया। 22 अगस्त को आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में जबलपुर के परसाई प्रेमीजन इकठ्ठे हुए। जबलपुर में प्रतिवर्ष 22 अगस्त को परसाई जी का जन्मदिवस विवेचना द्वारा मनाया जाता रहा है। नाटक नाट्य पाठ रचना पाठ और व्याख्यान आदि इस दिन होते रहे हैं। इस वर्ष इसमें एक नई कड़ी जुड़ी जब आज के समय के दो ऐसे कवि इस आयोजन में शामिल हुए जिनका परसाई जी से निकट का संबंध रहा है।
कार्यक्रम की शुरूआत परसाई जी के चित्र पर माल्यार्पण से हुई। पहले वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो ज्ञानरंजन ने कहा कि परसार्इ्र का संघर्ष दुहरा था। एक ओर उन्होंने एक नई शैली में लिखना शुरू किया। दूसरे उनके लेखन में विचारों की तीव्र आवेग के कारण बहुत सारे पत्रकार, समीक्षक और आलोचक उनसे अलग अलग रहे और उनकी उपेक्षा करते रहे। बहुत बाद में सुरेन्द्र चौधरी और डा विश्वनाथ त्रिपाठी ने परसाई जी के लेखन पर गहराई से विचार किया और बहुत कुछ लिखा। बहुत लंबे समय तक परसाई जी के लेखन को बहुत से आलोचकों ने जानबूझकर नजरअंदाज किया। परसाई ने एक संघर्षपूर्ण जीवन जिया। उनका लेखन उनके जीवन संघर्ष को प्रतिबिम्बित करता है। उनका व्यंग्य गुदगुदाने के लिए नहीं वरन् अंदर तक हिला देने के लिए होता था।
कवि लीलाधर मंडलोई ने ’’परसाई का जीवन’’ विषय पर बोलते हुए कहा कि परसाई जी ग्रामीण और कस्बाई परिवेश के व्यक्ति थे। वे परिवार का बोझ उठाना जानते थे। बहन और उनके बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने अपना व्यक्तिगत जीवन कुर्बान कर दिया। पर परसाई जी ने अपनी यंत्रणाओं को अपने लेखन का विषय नहीं बनाया। उनके अपने जीवन संघर्ष की छाया उनके लेखन में दिखाई देती है। उन्हें जबलपुर में भवानी प्रसाद तिवारी, रामानुजलाल श्रीवास्तव, रामेश्वर प्रसाद गुरू जैसे साहित्यकारों का साथ मिला। मंडलोई जी ने कहा कि हम परसाई के साथ रहे हैं यह गौरव की बात है।
कवि नरेश सक्सेना ने परसाई जी के साथ अपने संबंधों को याद किया। उन्होंने कहा कि परसाई जी के कारण ही उन्हें आधुनिक कविता से परिचय हुआ। मुक्तिबोध जी वे परिचय हुआ। नरेश जी ने बताया कि उनकी शादी के समय भी परसाई जी ने बड़े भाई और पिता के समान उनका साथ दिया।
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अरूण कुमार ने कहा कि परसाई जी अपने लेखन के बहाने आंख खोलने का काम करती हैं। परसाई जी का लेखन लोकप्रिय है। वे जनशिक्षक थे। उनकी रचनाएं छोटी होते हुए भी एपिक का काम करती हैं। उनसे जो भी मिलता था उससे एक सी बात होती थी। वो चाहे विद्वान हो या साधारण व्यक्ति।
इस अवसर पर हिमांशु राय ने परसाई जी की रचना ’’साधना का फौजदारी अंत’’ का पाठ किया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्य पाठ हुआ। पहले श्री लीलाधर मंडलोई ने शुरूआत करते हुए कहा
जिनका सिरहाना ताउम्र पत्थर रहा हो,
उन्हें तकिये पर नींद नहीं आती
पत्थर की कोमलता कोई नहीं जानता।
मंडलोई जी की कविताओं को श्रोताओं ने बहुत सराहा। मंडलोई जी के बाद कवि नरेश सक्सेना ने काव्य पाठ किया।
उनकी कविताओं ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
शिशु लोरी के शब्द नहीं
संगीत समझता है।
अभी वे अर्थ नहीं वो
शब्द समझता है।
परसाई जी को याद करते हुए सैकड़ों लोग विवेचना और पहल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आए। कार्यक्रम का संचालन बांकेबिहारी ब्यौहार ने किया। इस अवसर पर राजेश दुबे के कार्टून की प्रदर्शनी भी लगाई गई जो परसाई जी की रचनाओं पर आधारित थी। आभार प्रदर्शन पंकज स्वामी ने किया।

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