Friday, November 12, 2010

पारसी रंगमंच पर व्याख्यान का आयोजन




विवेचना द्वारा 23 मई 2010 को रानी दुर्गावती संग्रहालय कला वीथिका में देश के प्रख्यात रंगकर्मी, नाटककार और नाट्यविद् रणवीर सिंह ने पारसी रंगमंच: इतिहास और योगदान विषय पर व्याख्यान दिया। श्री रणवीर सिंह के द्वारा पारसी रंगमंच पर व्यापक शोध किया गया है। पारसी रंगमंच पर उनकी किताब बहुत महत्वपूर्ण है। श्री रणवीर सिंह ने अनेक नाटक लिखे हैं। सराये की मालकिन, एन्टीगनी आदि उनके नाट्य रूपांतर हैं जो प्रसिद्ध हैं। उनकी दो नई किताबें कुछ दिनों में आ रही हैं। श्री रणवीर सिंह ने विदेशों का व्यापक दौरा किया है और विदेशों में नाटकों का अध्ययन किया है। वे इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट से जुड़े हुए हैं। वे वयोवृद्ध होने के बावजूद आज भी सक्रिय हैं और आज भी जयपुर विश्वविद्यालय में नाट्य विभाग में थियेटर पर कक्षाएं लेते हैं। इब्सन, गोल्दोनी, मोलियर और ओ नील जैसे चार नाटककारों पर उनकी एक नई किताब प्रकाशित होने जा रही है।
अपने व्याख्यान में रणवीर सिंह जी ने कहा कि पारसी रंगमंच हमारे देश में न केवल मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है वरन् उस दौर में देश की राजनीति से जुड़कर पारसी रंगमंच ने देश के स्वाधीनता आंदोलन में योगदान दिया है। पारसी रंगमंच के बनाव के बारे में न जाने कितनी कहानियां प्रचलित हैं। पारसी रंगमंच समय के साथ पैदा हुआ और अंततः समय के साथ खत्म हो गया पर अपने समय का यह अद्भुत दौर रहा।
इतिहास पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सन् 1840 में ईरान से भारत आनेपर पारसी कम्पनी बनाई गई, जो सूरत में स्थापित अंग्रेजों की फैक्टियों में कार्यरत् विलायत से आए अंग्रेजों का मनोरंजन किया करती थी। कम्पनी का पहला नाटक पारसियों की रूचि और आदर्श रूस्तम सोहराब था जो गुजराती भाषा में लिखा गया था। सन् 1870 में थियेटर कम्पनी बनना शुरू हुईं जिसमें काम करने वाले मुसलमान और हिन्दू थे जिन्होंने नाटक हिन्दी और उर्दू में लिखे। चूंकि कम्पनी के मालिक पारसी थे इसीलिये इसे पारसी थियेटर कहा जाने लगा। लेकिन बाद में इनके मालिक हिन्दू मुसलमान सभी होते रहे। पुरानी फिल्मी कम्पनियां पारसी थियेटर के ढ़र्रे पर ही स्थापित हुईं जिसमें मालिक के बाद सभी लोग एक बंधी तनखाह में काम करते थे। पारसी थियेटर के नाटक सामाजिक, धार्मिक होने के साथ ही अंग्रेजों के विरूद्ध राजनीतिक भी लिखे जाते थे।
अपने लिखित व्याख्यान में श्री रणवीर सिंह ने विभिन्न पारसी नाटकों के अंश और गीत सुनाकर अपनी बात को स्पष्ट किया। विवेचना के इस शैक्षणिक आयोजन में बड़ी संख्या में युवा रंगकर्मी और साहित्यकार उपस्थित हुए।

बनारस में 'सूपना का सपना'


विवेचना जबलपुर को बनारस में आयोजित 11 दिवसीय सांस्कृतिक आंदोलन में 13 अपै्रल 2010 को ’सूपना का सपना’ का मंचन करने हेतु आमंत्रित किया गया। सेतु सांस्कृतिक केन्द्र के सचिव डा सलीम राजा बनारस में कई सालों से राष्टीय नाट्य समारोह का आयोजन करते हैं। इस समारोह में जिसे आन्दोलन का नाम दिया गया है, कलाकारों की रैली, भारतेन्दु और जयशंकर प्रसाद के निवास स्थानों पर गोष्ठियां आदि भी आयोजित की जाती हैं। 4 अप्रैल से 13 अप्रैल तक आयोजित इस समारोह में उषा गांगुली और अनिल भौमिक भी अपनी प्रस्तुतियों के साथ शामिल हुए। विवेचना के नाटक सूपना का सपना के लेखक शाहिद अनवर हैं। निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। प्रमुख भूमिका विवेचना के वरिष्ठ कलाकार सीताराम सोनी और संजय गर्ग निबाहते हैं। नाटक में इन्दु सूर्यवंशी के अभिनय को बहुत पसंद किया गया। बनारस के श्री नागरी नाटक मंडली के ऐतिहासिक रंगमंच पर सूपना का सपना की प्रस्तुति को दर्शकों ने बहुत सराहा। विवेचना से हिमांशु राय और वसंत काशीकर भारतेन्दु के घर जाकर उनके परिजनों से भी मिले।

जबलपुर में राजेश जोशी और अशोक भौमिक

जबलपुर में प्रगतिशील लेखक संघ और विवेचना ने मिलकर 13 व 14 फरवरी 2010 को दो दिवसीय आयोजन किया जिसमें पहले दिन राजेश जोशी, वीरेन डंगवाल और राजकुमार केसवानी का काव्यपाठ आयोजित हुआ। काव्यपाठ को सुनने के लिए रानी दुर्गावती संग्रहालय की कला वीथिका खचाखच भरी थी। शहर के साहित्यप्रेमियों में यह आयोजन बहुत सराहा गया। इस अवसर पर स्थानीय चित्रकारों की कविता पोस्टर प्रदर्शनी भी आकर्षण का केन्द्र रही। दूसरे दिन प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक ने ’समकालीन भारतीय चित्रकला में जनवादी प्रवृत्तियां’ विषय पर व्याख्यान दिया। व्याख्यान का विशिष्टता दुनिया में चित्रकला के इतिहास पर पावर पाइ्रंट प्रस्तुति थी। इसके बहाने अशोक भौमिक ने भारतीय चित्रकला के इतिहास और महत्वपूर्ण चित्रकारों के चित्रों के बारे में बातचीत की। श्री अशोक भौमिक के व्याख्यान को श्रोताओं ने बहुत महत्वपूर्ण बताया।

Thursday, November 11, 2010

रंगआधार समारोह भोपाल में ’मित्र’


राकेश सेठी की संस्था ’रंगआधार’ हर सालत विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर राष्टीय नाट्य समारोह का आयोजन करती है। इसमें अधिकांश नाटक भोपाल की संस्थाओं के होते हैं साथ ही भोपाल के बाहर की संस्थाओं के नाटक भी आमंत्रित किये जाते हैं। पिछले तीन सालों से विवेचना को रंगआधार नाट्य समारोह में निरंतर आमंत्रित किया जा रहा है। विवेचना द्वारा पिछले समारोहों में मानबोध बाबू, सूपना का सपना नाटक मंचित हो चुके हैं। इस बार विवेचना जबलपुर ने रंगआधार समारोह में 30 मार्च को ’मित्र’ नाटक मंचित किया। नाटक में मुख्य भूमिका और निर्देशन की जिम्मेदारी विवेचना के कला निर्देशक वसंत काशीकर ने सम्हाली। वसंत काशीकर अनुभवी अभिनेता और निर्देशक हैं। लगभग 30 पूर्णकालिक नाटकों का निर्देशन उन्होंने किया है। मित्र नाटक में केवल पांच पात्र हैं। कहानी बहुत रोचक और भावनात्मक है। इस नाटक का मंचन विवेचना के सोलहवें राष्टीय नाट्य समारोह के पहले दिन हुआ था। वसंत काशीकर के निर्देशन में एक व्यवस्थित अनुशासन देखने को मिलता है। नाटक में हर अतिरेक को वो बरकाते हैं। सैट, लाइट, साउंड संगीत सभी को अपनी सीमा में उपयोग करते हुए अभिनय और दृश्य को केन्द्र में रखते हैं। इसीलिए उनके नाटक उपकरणों पर आधारित नहीं होते। मित्र में सधे अभिनय से उन्होंने प्रभावित किया लेकिन पहली बार मंच पर उतरी शैली कक्कड़ ने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। नाटक मित्र नाटक का प्रमुख पात्र दादा साहब बहुत ही स्वाभिमानी एवं कर्मठ व्यक्ति है। एक दिन रास्ते में चल रही लड़ाई में बीच बचाव करने पर कुछ उपद्रवी तत्व उस पर हमला कर देते हैं। उसके चेहरे पर चोट आती है और टांके लगाते समय उस पर पक्षाघात जैसी बीमारी हो जाती है। वे चल नहीं पाते। उनके इलाज के लिए एक नर्स रखी जाती है। दादा साहेब उस नर्स से बहुत चिढ़ते हैं और उससे दुश्मनों सा व्यवहार करते हैं। उनका बेटा बंगलोर में है और बेटी अमेरिका में। बेटी उन्हें अमेरिका ले जाना चाहती है पर वे जाना नहीं चाहते। उन्हें अपनी बेबसी बहुत परेशान करती है। नर्स मिसेस रूपवते की मेहनत से वे ठीक हो जाते हैं। दोनेां अच्छे मित्र बन जाते हैं।
इस सारे घटनाक्रम में बहुत रोचक उतार चढ़ाव आते हैं। जिससे मानवीय संबंधों की नर्इ्र नई परतें खुलती हैं। धर्म जाति लिंग उम्र आदि बाह्य बातों को बरकाकर दो इंसानों के बीच कैसे मित्रता पैदा होती है और पनपती है ये इस नाटक में दिखाया गया है। अकेले रहने वाले अलग अलग शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अवस्थाओं में रहने वाले कई दादा साहेब पुरोहित समाज में संघर्षपूर्ण जीवन जी रहे हैंं। जिनका सोचना है कि आजकल बूढ़े मरने से नहीं घबराते उन्हें जीने से डर लगता है। मिसेज रूपवते की भूमिका में शैली ने यह एहसास नहीं होने दिया कि वे पहली बार मंच पर उतरी हैं। मंच पर उनकी उपस्थिति पूरी सार्थकता देती है। वे मानों इसी पात्र के लिये बनी हैं। बेटे माधव की भूमिका में अभिषेक काशीकर, बेटी की भूमिका में अर्चना बिलथरिया और डाक्टर की भूमिका में संजय गर्ग ने अपने पात्रों के साथ पूरा न्याय किया। मित्र को देखना एक अच्छे नाटक को पूर्णता में देखने के अनुभव से गुजरना है। नाटक में घर का पूरा सैट परंपरागत तरीके से लगाया गया। संगीत और प्रकाश संयोजन ने नाटक को बहुत उंचाई दी।

Wednesday, November 10, 2010

हरदा में 'सूपना का सपना'

विवेचना को लगभग प्रतिवर्ष इप्टा हरदा द्वारा नाट्य मंचन हेतु आमंत्रित किया जाता है। हरदा म प्र का एक छोटा जिला है और छोटा सा शहर। यहां संजय तेनगुरिया और उनके साथियों ने अथक परिश्रम से एक बड़ा दर्शक वर्ग तैयार किया है। हरदा में अरविंद गौड़, बलवंत ठाकुर जैसे निर्देशक आकर अपनी प्रस्तुतियां कर चुके हैं। विवेचना के अनेक नाटक और कार्यशालाएं हरदा में हुई हैं। विवेचना ने और हरदा के दर्शकों ने यहां एक इतिहास बनाया है जब विवेचना के नाटक ’मायाजाल’ के एक शाम दो शो आयोजित हुए। पहला शो खत्म होने के बाद उसी स्थान पर आधे घंटे के अंतराल में दूसरा मंचन प्रारंभ हुआ। दोनों शो में हॉल दर्शको से ठसाठस भरा हुआ था। इसी हॉल में विवेचना के नाटक ’सूपना का सपना’ का मंचन हुआ। सूपना का सपना शाहिद अनवर का नाटक है जो विवेचना ने देश के प्रतिष्ठित मंचों पर किया है। ’सूपना का सपना’ हरदा मंे बहुत पसंद किया गया। हरदा में विवेचना का अपना दर्शक वर्ग है जो पिछले कई नाटकों में मंचनों से बना है। विवेचना का यह मंचन विगत 31 जनवरी 2010को हरदा में आयोजित हुआ।

मानबोध बाबू अलवर में सराहा गया


मानबोध बाबू अलवर में सराहा गया
इप्टा अलवर राजस्थान द्वारा एक राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन अनेक वर्षांें से किया जा रहा है। फरवरी 2009 में विवेचना को अलवर में ’सूपना का सपना’ का मंचन करने के लिये आमंत्रित किया गया था। ’सूपना का सपना’ का मंचन अलवर में बहुत सराहा गया। सन् 2009 में ही इप्टा अलवर ने राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन किया। इसमें 26 दिसंबर 2009 को विवेचना ने अपना प्रसिद्ध नाटक ’मानबोध बाबू’ किया। मानबोध बाबू चन्द्रकिशोर जायसवाल की एक कहानी है। इस कहानी का नाट्य रूपांतर कर विवेचना ने मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत एक मनमोहक नाटक तैयार किया है। इस नाटक के मंचन पूरे देश में हुए हैं। एक रेल के डिब्बे में मानबोध बाबू सफर करते हैं। साथ मिल जाते हैं मोहनलाल जी। दोनों की बातचीत में से व्यंग्य, हास्य और मानव मन की गुत्थियां खुलती जाती हैं। ये सफर एक रहस्यपूर्ण अंत में बदल जाता है लेकिन दर्शकों को सिखा जाता है जीवन जीने की कला। अलवर मं मानबोध बाबू बहुत पसंद किया गया।

Sunday, December 6, 2009

आदिविद्रोही नाट्य समारोह भोपाल में विवेचना का नाटक ’आंखों देखा गदर’ सराहा गया

स्वराज संस्थान, भोपाल द्वारा प्रतिवर्ष आदि विद्रोही नाट्य समारोह का आयोजन भोपाल में किया जाता है। इस समारोह में आदिवासी जननागरण के नायकों और विद्रोह की परंपरा में सदियों से अपनी आहुति देने वाले चरित्रों पर केन्द्रित नाटकों का मंचन किया जाता है। इस वर्ष विवेचना, जबलपुर को समारोह में आमंत्रित किया गया। 4 दिसंबर 2009 को विवेचना ने वसंत काशीकर के निर्देशन में ’आंखो देखा गदर’ नाटक का मंचन किया। आंखो देखा गदर स्व अमृतलाल नागर की रचना है। यह मराठी पुस्तक माझा प्रवास का हिन्दी रूपांतर है। सन् 1857 के विद्रोह के समय पुणे का एक ब्राह्मण विद्रोह के इलाके में घूम रहा था। उसने गदर आंखों से देखा। पुणे लौटकर उसने आंखों देखा गदर लिपिबद्ध किया और इस तरह ’माझा प्रवास’ अस्तिस्त में आया। इस पुस्तक में इन्दौर, महू, धार, उज्जैन, ग्वालियर, झांसी, कानपुर, लखनऊ और बनारस का बहुत विस्तृत और रोचक विवरण है। पुस्तक के लेखक विष्णुभट्ट गोडशे वरसईकर झांसी में रानी लक्ष्मीबाई को साक्षात देखा उनसे कई बार मिले, झांसी नगरी को घूमा। रानी झांसी का शासन और न्याय करने का तरीका, उनका रहन सहन बोलचाल और वेशभूषा उनकी सवारी सबकुछ का विवरण इस पुस्तक में है। इस पुस्तक के रानी झांसी के अंश को आंखो देखा गदर नाटक में प्रस्तुत किया गया है। महाराष्ट्र के सांगली जिले के बुधगांव की मंडली को पोवाड़ा शैली में नाटक को मंचित करने के लिए आमंत्रित किया गया। शाहीर अवधूत बापूराव विभूते और उनके साथियों की मंडली ने बहुत ही दमदार संगीत और आवाज के साथ जो पोवाड़ा शैली की ख़ासियत है आंखो देखा गदर हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया। नाटक का इतना सशक्त प्रस्तुतिकरण था कि दर्शक अभिभूत हो गये। दर्शकों ने कहा कि उन्हें शाहीर अमरशेख की याद आई। नाटक में सूत्रधार का किरदार संजय गर्ग ने निभाया। निर्देशक वसंत काशीकर ने बताया कि इस नाटक के अगले मंचनों में कई नए चरित्रों, घटनाओं को जोड़ा जाएगा। नाटक के डिज़ायन में परिवर्तन किये जाएंगे। है।
निर्देशकीय
सन् 1857 के गदर के 150 साल पूरे हो चुके हैं। आज का समय घटनाओं के विश्लेषण का समय है। यह समय 1857 की घटनाओं के विश्लेषण का समय है। इसीलिये आज 1857 एक बार फिर जाग उठा है। उसका पुनरावलोकन हो रहा है। बहुत से ऐतिहासिक तथ्य सामने हैं। पर आंखो देखा हाल विरल है। कुछ अंगे्रजों ने आंखों का देखा लिखा है। पर हिन्दी और भारतीय भाषाओं में यह दुर्लभ है। जब हम 1857 के बारे में जानना चाहते हैं तो बहुत कम जान पाते हैं। ऐसे समय में विष्णु भट्ट गोडशे वरसईकर की मराठी पुस्तक ’माझा प्रवास’ का हिन्दी रूपांतर आंखों देखा गदर के रूप में जब हाथ आता है तो अचानक ही हम धनवान हो उठते हैं। लगता है कि जैसे हम कोई फिल्म देख रहे हैं। पुस्तक चित्रपट के रूप में एक सूत्र में बंधी हुई चलती है। हर दृश्य, हर घटना का वर्णन बहुत सजीव और मार्मिक है। लक्ष्मीबाई के शौर्य, झांसी की लड़ाई और गदर का इतना सुंदर वर्णन शायद की कहीं पढ़ने को मिल सकेगा। इस किताब का अनुवाद अमृतलाल नागर ने किया है। नागर जी ने कहा भी है कि मूल किताब की भाषा इतनी सरल और रोचक है कि उन्हें अनुवाद में इसे बरकरार रखना एक चुनौती रहा।
’माझा प्रवास’ की मराठी पृष्ठभूमि के कारण इसके मंचन के लिये ऐसा तरीका तलाश किया जाना था जो बेहतर संप्रेषण कर सके, कृति के साथ न्याय भी कर सके और इसी तलाश में महाराष्ट्र की प्रख्यात लोकशैली पोवाड़ा सहायक बनी। ऐतिहासिक और राष्ट्रीय नायकों के चरित्र का वीर रस पूर्ण गायन पोवाड़ा महाराष्ट्र की लोकप्रिय और प्रभावी शैली है। लोकजागरण हेतु इसका ऐतिहासिक प्रयोग हुआ है। अन्नाभाउ साठे, अमर शेख संजीवन, शंकरराव निकम आत्माराम पाटिल जैसे पोवाड़ा के महान प्रस्तोता हुए हैं।
पोवाड़ा का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है। समाज के गुण दोष दिखाने और लोक जागरण के लिए पोवाड़ा का जन्म हुआ। वीररस पोवाड़ा की आत्मा है। यह इसका स्थायी भाव है। साथ ही श्रंृगार, हास्य, करूणा इसके पूरक तत्व हैं। वीर रस का पोवाड़ा और श्रृंगार रस की लावणी ये एक ही शरीर के दो हाथ हैं। पोवाड़ा का प्रमुख विषय शिवाजी रहे हैं।
मराठी काव्यधारा को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। संत कवि जो इहलौकिक विषयों पर लिखें, पंत कवि जो बौद्धिक विषयों पर लिखें और तंत कवि जो लोक विषयों पर लिखें। पोवाड़ा गायक को गांेधाली या शाहीर कहा जाता है। सन् 1857 के गदर का जो आंखो देखा हाल विष्णु भट्ट गोडसे वरसईकर ने माझा प्रवास में लिखा उसे दर्शकों तक पंहुचाने के लिए सांगली जिले के बुधगांव के शाहीर अवधूत बापूराव विभूते और उनके साथियों का सहयोग मिला और पोवाड़ा जैसी सशक्त लोकशैली के माध्यम से यह संभव होने से वह रोचक और ऐतिहासिक बना।
कथ्य
मुम्बई के ठाणे जिले के वरसई के निवासी वेदशास्त्र संपन्न विष्णुभट्ट शास्त्री गोडशे पेशे से पुरोहित भिक्षुक ब्राह्मण थे। गरीबी और कर्ज से मजबूर होकर उन्होंने ग्वालियर की रानी द्वारा मथुरा में आयोजित एक महायज्ञ में भाग लेकर मोटी दक्षिणा पाने के लिए लंबी यात्रा की। यात्रा काल वही था जब देश गदर के दौर से गुजर रहा था। उन्होंने यात्रा के दौरान जो गदर देखा उसका बहुत सटीक वर्णन किया है। उन्होंने वरसई से पुणे, नगर, सतपुड़ा वन्य प्रदेश, इंदूर, मउ, उज्जैन, धार, सारंगपुर, ग्वालियर, झांसी, कानपुर लखनऊ, काशी और फिर वापस वरसई तक की यात्रा की। दृव्यार्जन की लालसा से गदर के ही क्षेत्र में उन्हें पैदल सफर करना पड़ता था। गोरों की बंदूकों से बार बार उनका सामना हुआ करता था। उन्होंने मानवता और दानवता के दृश्य साथ साथ देखे थे। आम जनता अंग्रेजों से भय और घृणा करती थी और दिल से चाहती थी कि अंग्रेज इस देश को छोड़कर चले जाएं। आंखों देखा गदर आम जन की आंख से इस घटना को देखता है। इस प्र्रस्तुति में ’माझा प्रवास’ का वो अंश लिया गया है जो रानी झांसी लक्ष्मीबाई और उनके क्षेत्र में हुए गदर से संबंधित है। पूरी पुस्तक का दायरा बहुत बड़ा है और कई खंडों में काम की मांग करता है।

मंच पर
सूत्रधार वसंत काशीकर/संजय गर्ग
प्रमुख गायक/शाहीर अवधूत बापूराव विभूते
सहायक मार्शल सज्जन मोरे
बजरंग बापूसो अब्दागीरे
बालासाहेब पाटील
शुभम अवधूत विभूते
नारायण दादू पाटील
ओंकार अवधूत विभूते
मंच परे
ध्वनि प्रकाश हिमांशु राय
मूल पुस्तक माझा प्रवास
लेखक विष्णुभट्ट गोडशे वरसईकर
हिन्दी रूपांतर अमृतलाल नागर
नाट्य रूपांतर वसंत काशीकर, अवघूत बापूराव विभूते
प्रस्तुति प्रबंधन बांकेबिहारी ब्यौहार
प्रस्तुति परिकल्पना एवं निर्देशन वसंत काशीकर
नाट्य दल 13 कलाकारों का है और अवधि 1 घंटा 15 मिनिट है।