Thursday, April 28, 2011
Wednesday, April 27, 2011
विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह बोलियों के रंगमंच का बोलबाला
विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह
बोलियों के रंगमंच का बोलबाला
विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 27 से 31 अक्टूबर 2010 तक संपन्न हुआ। सन् 1994 से निरंतर चल रहे इस नाट्य समारोह के आयोजन में इस बार बोलियों के रंगमंच का प्रस्तुतिकरण विशेष रहा। विवेचना का स्वयं का नाटक जहंा बुन्देली भाषा में था वही ंबलवंत ठाकुर, जम्मू का नाटक ’घुमाई’ डोगरी भाषा में था। वहीं स्व हबीब तनवीर का नाटक छत्तीसगढ़ी में था। नाट्य समारोह की दूसरी विशेषता यह रही कि पांचों नाटकों के लेखक ही उनके निर्देशक थे। यह एक संयोग ही था पर इससे समारोह में एक नया तत्व जुड़ गया।
विवेचना ने इस समारोह को आकर्षक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मध्यप्रदेश विद्युत मंडल के भव्य ऑडीटोरियम को जहां विशेष रूप से सजाया गया वहीं नाट्य समारोह के प्रचार प्रसार के लिए पूरे शहर में बैनर लगाये गये। समारोह के आकर्षक पोस्टर को जबलपुर के गली कूचों से लेकर प्रमुख चौराहों तक लगाया गया। समारोह के शुरू होने से पहले ही समारोह नाटक के दर्शकों के बीच उत्सुकता और उत्साह का कारण बन चुका था। विवेचना का समारोह जबलपुर में एक परंपरा बन चुका है जिसके कारण अक्टूबर माह में समारोह की पहली खबर छपते ही दर्शकों में नाटकों के बारे में चर्चा शुरू हो जाती है। बाकी शहरों के लिए यह बात आश्चर्यजनक हो सकती है कि सात सौ साठ सीट का ’तरंग’ प्रेक्षागृह प्रतिदिन पूरा भरता है और सारी टिकटें केवल काउंटर से ही बिकती हैं। इस बार नादिरा बब्बर और उनकी एकजुट मुम्बई की टीम पांच साल बाद आई तो उसके लिए विशेष उत्सुकता थी। बलवंत ठाकुर जबलपुर में इसके पहले तीन बार आ चुके हैं और उनके नाटकों ने ऐसी धाक जमाई है कि दर्शक उनके नाटकों का इंतजार करते हैं। डोगरी भाषा में होने के बावजूद उनके नाटकों का दर्शक हिन्दी नाटकों के बराबर ही स्वागत करते हैं। हबीब साहब ने विवेचना के पहले राष्ट्रीय नाट्य समारोह का उद्घाटन किया था और उनका नाटक ’देख रहे हैं नैन’ पहले समारोह का पहला नाटक था। विवेचना के पांचवें समारोह में हबीब साहब ’वसंत ऋतु का सपना’ लेकर भी आ चुके हैं। इस समारोह में उनका नाटक ’चरणदास चोर’ होना दर्शकों के लिए उनकी सुखद स्मृतिस्वरूप था। इस समारोह में त्रिपुरारी शर्मा का नाटक पहली बार मंचित हुआ। दर्शकों को एक इस नाटक ने अभिनय और कल्पनाशीलता का अलहदा अहसास कराया।
विवेचना ने इस बार नाट्य समारोह को सम्पूर्णता देने के लिए अनेक नए आकर्षण जोड़े। समारोह के पहले दिन विवेचना के नृत्य प्रकोष्ठ ’तरंग’ की नृत्यांगनाओं ने गणेशवंदना की प्रस्तुति कत्थक में की। इसे बहुत अधिक सराहा गया। यह प्लेटफॅार्म प्रदर्शन का पहला सोपान था। तरंग प्रेक्षागृह के बाहर बने मंच पर इसकी प्रस्तुति ने समा बांध दिया। दूसरे दिन इसी श्रृंखला में युवा शास्त्रीय गायक रिज़वान ने अपने गायन से दर्शकों को लुभाया। तीसरे दिन दीपा की एकल प्रस्तुति थी। दीपा ने अपने एकल कत्थक प्रदर्शन से दर्शकों को मोहित कर दिया। चौथे दिन राकेश कुरेले और साथियों ने आकर्षक लोकनृत्यों की प्रस्तुति की। आकर्षक वेशभूषा में लोकवाद्यों के साथ जब लड़के लड़कियों ने नाचना शुरू किया तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये। शहर के प्रमुख दर्शकों द्वारा इन प्लेटफॉर्म प्रदर्शकों को सम्मानित किया गया।
समारोह का उद्घाटन जबलपुर शहर के प्रथम नागरिक महापौर श्री प्रभात साहू ने किया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश विद्युत मंडल केन्द्रीय कीड़ा व कला परिषद के महासचिव श्री संतोष तिवारी, सुप्रसिद्ध कहानीकार प्रो ज्ञानरंजन, जबलपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री गौरीशंकर यादव, विवेचना के अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव, विवेचना के सचिव हिमांशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, निदेशक वसंत काशीकर, संजय गर्ग आदि उपस्थित थे। महापौर श्री प्रभात साहू ने कहा कि विवेचना के इस आयोजन ने पूरे देश में जबलपुर का नाम रोशन किया है। समारोह के नाटकों के उच्च स्तर से समारोह की गरिमा बढ़ी है। आज जबलपुर के नागरिक गर्व से कहते हैं कि हमारे शहर में हर साल एक शानदार नाट्य समारोह होता है।
इस अवसर पर जबलपुर के वरिष्ठ अभिनेता श्री गौरीशंकर यादव का अभिनंदन किया गया। श्री गौरीशंकर यादव ने रामलीला और बंगला नाटकों से शुरूआत करके विभिन्न नाट्य दलों और निर्देशकों के साथ काम किया। गांव गांव शहर शहर घूमकर नाटकों के प्रदर्शन किए। अलखनंदन के निर्देशन में हुए ’वेटिंग फॉर गोदा’े में उनका अभिनय यादगार रहा। श्री गौरीशंकर यादव ने अपने संबोधन में ’वेटिंग फॉर गोदो’ के एक संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि लंबे जीवन का सफर अब खत्म होने को आ रहा है। जीवन की शाम है। पर संतोष है कि नाटकों में काम करते हुए हमने एक सार्थक जीवन जिया।
उद्घाटन के पश्चात् विवेचना, जबलपुर के नाटक ’मौसाजी जैहिन्द’ का मंचन हुआ। यह उदयप्रकाश की कहानी ’मौसाजी’ पर आधारित है। निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। इस नाटक की खासियत ये रही कि इसमें विवेचना द्वारा सितंबर माह में आयोजित थियेटर वर्कशॉप में शामिल युवाओं और महिलाओं ने काम किया है। इनमें से अधिकंाश ने पहली बार मंच पर कदम रखा। मौसाजी की कहानी मौसाजी नाम के चरित्र के आसपास घूमती है जो आज भी आजादी के पहले के समय में रह रहा है। उन्होंने अपने अंदर एक झूठा संसार रच लिया है। उनके दोस्त महात्मा गांधी भी थे आज के मुख्यमंत्री भी दोस्त हैं। उनके किस्से और गप्पें उनके मोहल्ले वाले बड़े चाव से सुनते हैं और यह भ्रम बनाये रखते हैं कि वे मौसाजी की बातें को सच मानते हैं। मौसाजी के हर किस्से के नायक वे स्वयं हैं। कहानी को सार्थकता और विस्तार देने के लिए ज्ञान चतुर्वेदी और शरद जोशी की कहानियों के कुछ अंश भी बहुत सधे तरीके से इस्तेमाल हुए हैं। नाटक में बहुत शानदार सैट और बहुत अच्छी प्रकाश परिकल्पना देखने को मिली।
नाट्य समारोह के दूसरे दिन शब्दकार, दिल्ली का नाटक ’रूप अरूप’ मंचित हुआ। इसका निर्देशन त्रिपुरारी शर्मा ने किया है। यह नाटक एक दूसरे नाटक ’रंगधूलि’ से उद्भूत है। दरअसल यह एक इम्प्रोवाईजे़शन है। नौटंकी में पहले केवल पुरूष कलाकार होते थे। महिलाओं के रोल भी पुरूष ही निभाते थे। समय के साथ बदलाव हुआ और महिलाएं नौटंकी में काम करने आईं। ये प्रायः बेड़नी जाति की थीं। इनका परंपरागत काम ही महफिलों में नाचना था। मंच इनके लिए एक सपना था। मंच पर पहुचने पर उनका स्वाभाविक अभिनय निखरा और पहले काम कर रहे पुरूषों का अहम आहत हुआ। उसके लिए अस्मिता का संकट पैदा हो गया। पुरूष और महिला कलाकारों के बीच और स्वयं पुरूष के अंदर एक बदलाव का युग शुरू होता है। बदलाव के इस युग में महिला का अभिनय महिला ही करने लगती है और पुरूष अपने अंदर के पुरूष की पहचान खोजने लगता है। गौरी देवल और हैप्पी रंजीत सिंह ने इस दो पात्रीय नाटक को अपने अभिनय से ऐसा संवारा कि दर्शक अभिनय के नए नए रंग खोजने में खो गये। गति करते फ्रेम और उनकी छबियां, अद्भुत प्रकाश परिकल्पना ने नाटक को बहुत ऊंचाई दी।
नाट्य समारोह के तीसरे दिन नटरंग, जम्मू के कलाकारों ने बलवंत ठाकुर के निर्देशन में ’घुमाई’ नाटक का मंचन किया। बलवंत ठाकुर के काम से जबलपुर के दर्शक भली भांति परिचित हैं। इस बार चार साल बाद बलवंत ठाकुर का नाटक जबलपुर में हुआ। जबलपुर में घुमाई के मंचन के समय कुछ लोगों को यह संशय था कि डोगरी भाषा होने के कारण कितने दर्शक इसे ग्रहण कर पायेंगे। पर बलवंत ठाकुर के निर्देशन में तैयार नाटकों में अभिनय और प्रस्तुति के बीच भाषा गौण हो जाती है और दर्शक नाटक से दिल से जुड़ जाता है। घुमाई डोगरी की एक लोककथा पर आधारित है। इसकी शुरूआत शादी की रस्म पूरी होने के बाद विदाई के कार्यक्रम से होती है। बहू की डोली और बाराती ससुराल के लिए चल पड़ते हैं। जैसे ही कठिन चढ़ाई शुरू होती है दुल्हन को प्यास लगती है और वो पानी मांगती है। उस पर कोई ध्यान नहीं देता। उसकी प्यास बढ़ती जाती है और वो बार बार पानी मांगती है। उसे समझाया जाता है कि जहां भी पानी मिलेगा वहां रूक कर पानी पिला दिया जाता है। एक स्थिति ऐसी आती है कि दुल्हन की हालत बहुत खराब हो जाती है और डोली को रोकना पड़ता है। सभी को कहा जाता है कि पानी खोजें। बहुत दूर बहुत गहराई में कहीं पानी दिखता है जहां जाना कठिन है। वहां जाने को कोई तैयार नहीं होता। दुल्हन की परेशानी देखकर एक युवक अंततः तैयार होता है। उसे सब समझाते हैं कि जान का खतरा है पर वो निकल पड़ता है। वो पानी लेकर लौट के आता है दुल्हन की प्यास बुझाता है पर इसी दौरान अधिक थकान से उसकी मौत हो जाती है। दुल्हन घोषणा करती है कि आज से वो विधवा हो गई है क्योंकि केवल शादी की रस्म से कोई पति नहीं हो जाता। जो पत्नी के लिए बजान की बाजी लगाता है वो ही असली पति होता है। नटरंग जम्मू के नाटक में संगीत अभिनय और प्रकाश परिकल्पना ने दर्शकों का दिल जीत लिया।
विवेचना के नाट्य समारोह के चौथे दिन नया थियेटर, भोपाल के कलाकारों ने ’चरणदास चोर’ का मंचन किया। यह पहला अवसर था कि जब हबीब साहब जबलपुर में टीम के साथ नहीं थे। चरणदास चोर के अनगिनत मंचन पूरी दुनिया में हुए हैं और इसकी कहानी सभी को ज़बानी याद है। फिर भी किसी हिट फिल्म की तरह इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं होती। जबलपुर में विवेचना के नाट्य समारोह में चरणदास चोर को देखने के लिए दर्शक टूट पड़े। नाटक को हमेशा की तरह खूब पसंद किया गया। तरंग के भव्य मंच पर पंथी नृत्य ने खूब समा बांधा। चरणदास चोर और सिपाही की भूमिका निभा रहे चेतराम यादव और रविलाल सांगड़े के अभिनय को कभी भूला नहीं जा सकता।
विवेचना के नाट्य समारोह के पांचवें दिन एकजुट मुम्बई के कलाकारों ने ’यार बना बडी’ का मंचन किया। इसमंे जाने माने फिल्म कलाकार यशपाल शर्मा, सज्जाद और राजेश बलवानी मंच पर थे। नाटक में तीन दोस्तों की तिकड़ी में से एक दोस्त अचानक असामान्य होकर बड़ी बड़ी बातें करने लगता है। अपनी जमीन और दोस्तों को भूल जाता है। बाकी के दोनों दोस्त उसे राह पर लाने का बीड़ा उठाते हैं। उससे लगातार संवाद करते हैं। और एक दिन उसे अपनी भूल का अहसास होता है। तीनों दोस्त फिर एक हो जाते हैं। कहानी में अनेक उतार चढ़ाव आते हैं। तीनों अभिनेताओं ने अपने सहज अभिनय, तत्परता और सामंजस्य से नाटक को सफल बनाया। दर्शकों ने नाटक का भरपूर आनंद लिया।
पांच नाटक, पांच प्लेटफॉर्म प्रदर्शन, चित्र प्रदर्शनी, पुस्तक प्रदर्शनी से भरा पूरा यह समारोह विवेचना के यादगार समारोहों में से एक माना जाएगा। दर्शकों ने हर दिन पूरे हॉल को भरकर यह साबित किया कि जबलपुर में विवेचना के नाट्य समारोह पर उन्हें भरपूर विश्वास है। विवेचना के द्वारा आमंत्रित नाट्य दलों ने अपने सुंदर प्रदर्शन और मित्र भाव से समारोह को चार चांद लगाए। प्रत्येक नाटक के अंत में निर्देशक व संस्था को विख्यात चित्रकार हरि भटनागर की पेन्टिंग भेंट कर सम्मानित किया गया। हर नाटक के बाद निर्देशक ने दर्शकों से बात की और इस बात को रेखांकित किया कि हर दर्शक को अच्छा नाटक चाहिए लेकिन हर नाटक को अच्छा दर्शक भी चाहिए। विवेचना के नाट्य समारोह में न केवल हॉल की क्षमता भर दर्शक आए वरन् हर नाटक की अच्छाईयों को उन्होंने विशेष रूप से लक्षित किया और सराहा।
Thursday, March 31, 2011
विवेचना का राष्ट्रीय नाट्य समारोह बन चुका है जबलपुर में एक परंपरा
विवेचना द्वारा सन् 1994 से राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन शुरू किया गया है। विवेचना का नाट्यदल पूरे देश में जाकर नाटकों का मंचन करता है। विवेचना के नाटकों के नियमित मंचन होते रहते हैं पर जबलपुर में ऐसे अवसर कम आते हैं जब दर्शक दूसरी संस्थाओं और निर्देशकों के नाटक देख सकें। विवेचना के द्वारा शुरू किये गये राष्टीय नाट्य समारोह के कारण जबलपुर और आस पास के शहरों कस्बों के रूचिसंपन्न दर्शकों को देश के प्रमुख निर्देशकों के नाटक देखने को मिले। इससे उन्हें देश के नाट्य संसार का परिचय मिला। विवेचना के अब तक आयोजित समारोहों में सर्वश्री हबीब तनवीर, बा.व.कारंत, बंसी कौल, सतीश आलेकर, जुगल किशोर, तनवीर अख्तर, दिनेश खन्ना, नादिरा बब्बर, दर्पण मिश्रा, अरूण पांडेय, उषा गांगुली, देवेन्द्र पेम, अरविंद गौड़, पियूष मिश्रा, रंजीत कपूर, नवीन चौबे, अनिलरंजन भौमिक, संजय उपाध्याय, इप्टा भिलाई, श्रवण कुमार, वेदा राकेश, नजीर कुरैशी, बलवंत ठाकुर, के.जी.त्रिवेदी, भूषण भट्ट, जावेद जैदी, श्रीमती गुलबर्धन, अलखनंदन, लईक हुसैन, कमलेश सक्सेना, पंकज मिश्रा, विजय कुमार, अजय कुमार, विवेक मिश्रा, अशोक राही, वसंत काशीकर, श्यामकुमार, किशोर कुलकर्णी दिनेश ठाकुर, जे पी सिंह अतुल पटेल, मानव कौल, एम सईद आलम महमूद फ़ारूखी के नाटक मंचित हो चुके हैं। विवेचना के विभिन्न समारोहों में नादिरा बब्बर, सरिता जोशी, आशीष विद्यार्थी सुनील सिन्हा, नेहा शरद, टॉम आल्टर जूही बब्बर आदि अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुके हैं।
विवेचना का पहला नाट्य समारोह बहुभाषी था। इसमें हिन्दी के अलावा मराठी और बंगला के नाटक भी आमंत्रित किए गए। पर बंगाली दर्शकों के उत्साहप्रदर्शन में कमी के कारण बंगला नाटकों का मंचन संभव नहीं हुआ। सतीश आलेकर का नाटक महानिर्वाण पूना की टीम के उत्साहवर्धक सहयोग के कारण संभव हो पाया। पहले नाट्य समारोह का उद्घाटन स्व हबीब तनवीर ने किया। समारोह में हबीब साहब ने देख रहे हैं नैन का मंचन किया। यह मंचन आज भी दर्शकों को याद है। दूसरे दिन बंसी कौल के निर्देशन में वह जो अक्सर झापड़ खाता है का मंचन हुआ। नाटक बंसी कौल की डिजायन के कारण यादगार रहा। यह इस नाटक का पहला प्रदर्शन था जो अपेक्षित प्रशंसा नहीं बटोर सका। तीसरे दिन बा व कारंथ के निर्देशन में श्रीराम सेंटर, दिल्ली के कलाकारों ने बाबूजी का मंचन किया। इसमें राजेश तिवारी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उनका अद्भुत अभिनय दर्शकों को बहुत भाया। बाबूजी के मंचन ने धूम मचा दी और पहले समारोह का यह नाटक दर्शकों की भारी उपस्थिति के कारण भी याद किया जाएगा। चौथे दिन महानिर्वाण का मंचन हुआ था। पूना के कलाकारों ने नायाब प्रस्तुति दी। हालांकि मराठी दर्शकों की उपस्थिति बहुत कम थी।
विवेचना के एक साथी ने बंबई में नादिरा बब्बर का एक नाटक बात लात की हालात की देखा। उनका ब्रोशर लाए। नादिरा जी से बात की गई। वो जबलपुर आने को सहर्ष तैयार हो गईं। दूसरे समारोह में उनके दो नाटक हुए। बात लात की और संध्या छाया। इन नाटकों ने जबलपुर में धूम मचा दी। और इसी के साथ नादिरा जी का जबलपुर बार बार आना तय हो गया। तीसरे समारोह के समय विवेचना का गोआ दौरा हुआ। वहां उषा गांगुली अपने दल के साथ आई हुई थीं। उनसे बात हुई। परिणामस्वरूप तीसरे नाट्य समारोह में उषा गांगुली के दो नाटक हुए। रूदाली और कोर्ट मार्शल। इसी समारोह की एक और उपलब्धि थी फिरोजखान निर्देशित नाटक आल द बेस्ट। इस नाटक ने दर्शकों को हंसा हंसा के लोटपोट कर दिया। यह अकेला नाटक तरंग प्रेक्षागृह में हुआ था।
इस दौरान नाट्य समारोह की दर्शक संख्या बढ़ चुकी थी। इसीलिए चौथे समारोह के समय राष्टीय नाट्य समारोह का आयोजन शहीद स्मारक से उठकर मानस भवन आ गया। इस साल सन् 1997 में हबीब तनवीर का नाटक वसंत ऋतु का अपना कामदेव का सपना नाटक मंचित हुआ। इसी साल पहली बार अरविंद गौड़ का नाटक फाइनल साल्यूशंस मंचित हुआ। सन् 1998 में पंाचवें समारोह में अरविंद गौड़ का नाटक एक मामूली आदमी बहुत पसंद किया गया वहीं नादिरा बब्बर के नाटक दिल ही तो है ने अपार प्रशंसा पाई। इसी वर्ष अनिलरंजन भौमिक, इलाहाबाद का नाटक मंथन पहली बार जबलपुर में हुआ। छठवें समारोह में पहले दिन अरूण पांडे निर्देशित नाटक और अंत में प्रार्थना में आर एस एस के लोगों ने हमला कर दिया और बम फोड़े, कुर्सियां चलाईं। इस सबके बावजूद दर्शक रूके रहे और नाटक पूरा हुआ। विवेचना के कलाकारों के इस दमखम और समर्पण की बहुत तारीफ हुई। इसी साल नादिरा बब्बर का बहुत लोकप्रिय नाटक सकुबाई हुआ।
सातवें समारोह की खासियत यह रही कि यह समारोह तरंग में आयोजित हुआ। इसमें बलवंत ठाकुर के बच्चों के नाटक आप हमारे हैं कौन ने अद्भुत रंग जमाया। इस साल नादिरा बब्बर के नाटक संध्या छाया का दूसरा मंचन हुआ। पहली बार सन् 1995 में यह नाटक हो चुका था। इसी साल दयाशंकर की डायरी का मंचन हुआ जिसमें आशीष विद्यार्थी का एकल अभिनय था। इस नाटक की इतनी प्रशंसा हुई कि दूसरे दिन शाम को इस नाटक का दूसरा मंचन आयोजित हुआ। आठवां रा ना समारोह 2001 फिर वापस मानस भवन में आयोजित हुआ। इसमें दो महत्वपूर्ण नाटक मंचित हुए। दर्पण मिश्रा के निर्देशन में शेर अफगन जिसमें सुनील सिन्हा ने कमाल का अभिनय किया था। अरविंद गौड़ का नाटक वारेन हेस्टिंग्ज का सांड़ बहुत सराहा गया। इसे देखने के लिए उच्च न्यायालय के अनेक न्यायाधीश आए। नवमें समारोह में सन् 2002 नाट्य समारोह पुनः तरंग प्रेक्षागृह पंहुच गया और तबसे अब तक वहीं आयोजित हो रहा है। इस समारोह में लिटिल बैले टुप का बैले पंचतंत्र मंचित हुआ। इसी समारोह में नादिरा बब्बर का नाटक बेगम जान मंचित हुआ जो बहुत सराहा गया।
दसवां समारोह 2004 में हुआ जिसमें बलवंत ठाकुर का बच्चों का दूसरा नाटक उसके हिस्से की धूप कहां है के मंचन ने दर्शकों को गहरे तक प्रभावित किया। इसी समारोह में अरविंद गौड़ का नाटक माधवी जिसमें राशि बनी का एकल अभिनय था बहुत सराहा गया। 2005 में हुए ग्यारहवें राष्टीय नाट्य समारोह में विजय कुमार का नाटक ये आदमी ये चूहे मंचित हुआ। अनिल रंजन भौमिक इलाहाबाद का नाटक बाल भगवान आज भी याद किया जाता है। इस समारोह में अजय कुमार का नाटक बड़ा भांड़ तो बड़ा भांड़ प्रभावशाली था। 2006 में हुए बारहवें समारोह में जयपुर का नाटक चंपाकली का राम रूपैया बहुत भाया वहीं देवेन्द्रराज अंकुर का नाटक संक्रमण पहली बार मंचित हुआ। तेरहवें समारोह में सन् 2006 में विवेचना का नाटक मायाजाल मंचित हुआ। इस साल रिकॉर्ड सात नाटक मंचित हुए। इसमें देवेन्द्रराज अंकुर का नाटक हमसे तुमसे प्यार करेगा कौन और अनिल भौमिक का नाटक असमंजस बाबू बहुत चर्चित हुए। असमंजस बाबू का शो रविवार की सुबह 10 बजे रखा गया और भारी संख्या में दर्शक आए।
चौदहवां समारोह 2007 में आयोजित हुआ जिसमें पहले दिन विवेचना का नाटक मानबोध बाबू मंचित हुआ। इस समारोह में पहली बार दिनेश ठाकुर की भागीदारी हुई। उनका नाटक हम दोनों दर्शकों को बहुत पसंद आया। इसी समारोह में जे पी सिंह दिल्ली का नाटक अर्जेंन्ट मीटिंग भी अच्छा जमा। पन्द्रहवां समारोह 2008 में आयोजित हुआ जिसमें विवेचना का नाटक सूपना का सपना मंचित हुआ। पहले और दूसरे दिन मानव कौल के दो नाटक इल्हाम और शक्कर के पांच दाने मंचित हुए। दूसरे दिन अलखनंदन का नाटक चारपाई और चौथे दिन अरविंद गौड़ का नाटक अनसुनी मंचित हुआ। अंतिम दिन सुबह 10 बजे आपरेशन थ्री स्टार का मंचन हुआ। विवेचना का सोलहवां राष्टीय नाट्य समारोह 2009 मंे आयोजित हुआ जिसमें विवेचना का नाटक मित्र पहले दिन मंचित हुआ। दूसरे दिन महमूद फ़ारूखी की दास्तानगोई हुई। तीसरे दिन बंसी कौल का नाटक तुक्के पे तुक्का मंचित हुआ। चौथे दिन टॉम आल्टर का नाटक मिर्जा गालिब मंचित हुआ। पांचवें और अंतिम दिन रंजीत कपूर का नाटक अफवाह मंचित हुआ।
विवेचना का सत्रहवां नाट्य समारोह आगामी 27 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2010 तक आयोजित है। इसमें पहले दिन विवेचना का नया नाटक मौसाजी जैहिन्द मंचित होगा। दूसरे दिन त्रिपुरारी शर्मा के निर्देशन में रूप अरूप का मंचन होगा। तीसरे दिन बलवंत ठाकुर का नाटक घुमाई मंचित होगा। चौथे दिन हबीब तनवीर का नाटक चरण दास चोर मंचित होगा। अंतिम दिन नादिरा बब्बर का नाटक यार बना बडी मंचित होगा।
विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 2010
विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 2010
मध्यप्रदेश की जानी मानी सांस्कृतिक संस्था विवेचना, जबलपुर का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह आगामी 27 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2010 तक आयोजित है। इस समारोह की श्रंखला 1994 से शुरू हुई थी जब स्व हबीब तनवीर ने पहले समारोह का उद््््््घाटन किया था और ’देख रहे हैं नैन’ का मंचन हुआ था। पहले ही समारोह में स्व बा व कारंत का ’बाबूजी’ हुआ जो आज सोलह साल बाद भी दर्शकों को याद है। पहले ही समारोह में बंसी कौल का वह जो अकसर झापड़ खाता है’ और सतीश आलेकर निर्देशित ’महानिर्वाण’ भी मंचित हुए थे। इस सत्रह सालों में देश के अधिकांश जाने माने निर्देशक जबलपुर आ चुके हैं और अपने यादगार नाटकों का मंचन कर चुके हैं। नादिरा बब्बर, दिनेश ठाकुर, मानव कौल, उषा गांगुली, देवेन्द्रराज अंकुर, रंजीत कपूर, सतीश आलेकर, अरविंद गौड़, अलखनंदन, लईक हुसैन, अनिलरंजन भौमिक आदि के नाटक हो चुके हैं। विवेचना के विगत सोलह समारोहों में अब तक 90 नाटक मंचित हो चुके हैं।
विवेचना के सत्रहवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह में इस बार प्रथम दिन विवेचना जबलपुर वसंत काशीकर के निर्देशन में ’मौसाजी जैहिन्द’ मंचित होगा जो उदयप्रकाश की कहानी पर आधारित है। दूसरे दिन 28 अक्टूबर को त्रिपुरारी शर्मा के निर्देशन में ’रूप अरूप’ का मंचन होगा जो नौटंकी में काम करने वाले स्त्री और पुरूष के बीच के द्वंद्व पर आधारित है। तीसरे दिन बलवंत ठाकुर जम्मू के निर्देशन में ’घुमाई’ नाटक मंचित होगा। डोगरी भाषा का यह लोकनाटक अभी अभी यूरोप के अनेक देशों में मंचित हुआ है। चौथे दिन स्व हबीब तनवीर का नाटक ’चरणदास चोर’ मंचित होगा। पांचवें दिन 31 अक्टूबर को एकजुट मुम्बई द्वारा नादिरा बब्बर के निर्देशन में ’यार बना बडी’ मंचित होगा। इस पंाच दिवसीय नाट्य समारोह में पंकज दीक्षित के कोलाज, रेखाचित्रांे और कविता-कहानी पोस्टर की प्रदशनी भी लगेगी। त्रिपुरारी शर्मा, बलवंत ठाकुर और नादिरा बब्बर अपने रंग अनुभव और रंगकर्म पर बातचीत करेंगे। प्रतिदिन नाटक से पहले प्लेटफॉर्म प्रस्तुतियों में माइम, नुक्कड़ नाटक, एकल प्रस्तुतियां और लोकनृत्य भी मंचित होंगे। पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित किए जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश की जानी मानी सांस्कृतिक संस्था विवेचना, जबलपुर का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह आगामी 27 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2010 तक आयोजित है। इस समारोह की श्रंखला 1994 से शुरू हुई थी जब स्व हबीब तनवीर ने पहले समारोह का उद््््््घाटन किया था और ’देख रहे हैं नैन’ का मंचन हुआ था। पहले ही समारोह में स्व बा व कारंत का ’बाबूजी’ हुआ जो आज सोलह साल बाद भी दर्शकों को याद है। पहले ही समारोह में बंसी कौल का वह जो अकसर झापड़ खाता है’ और सतीश आलेकर निर्देशित ’महानिर्वाण’ भी मंचित हुए थे। इस सत्रह सालों में देश के अधिकांश जाने माने निर्देशक जबलपुर आ चुके हैं और अपने यादगार नाटकों का मंचन कर चुके हैं। नादिरा बब्बर, दिनेश ठाकुर, मानव कौल, उषा गांगुली, देवेन्द्रराज अंकुर, रंजीत कपूर, सतीश आलेकर, अरविंद गौड़, अलखनंदन, लईक हुसैन, अनिलरंजन भौमिक आदि के नाटक हो चुके हैं। विवेचना के विगत सोलह समारोहों में अब तक 90 नाटक मंचित हो चुके हैं।
विवेचना के सत्रहवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह में इस बार प्रथम दिन विवेचना जबलपुर वसंत काशीकर के निर्देशन में ’मौसाजी जैहिन्द’ मंचित होगा जो उदयप्रकाश की कहानी पर आधारित है। दूसरे दिन 28 अक्टूबर को त्रिपुरारी शर्मा के निर्देशन में ’रूप अरूप’ का मंचन होगा जो नौटंकी में काम करने वाले स्त्री और पुरूष के बीच के द्वंद्व पर आधारित है। तीसरे दिन बलवंत ठाकुर जम्मू के निर्देशन में ’घुमाई’ नाटक मंचित होगा। डोगरी भाषा का यह लोकनाटक अभी अभी यूरोप के अनेक देशों में मंचित हुआ है। चौथे दिन स्व हबीब तनवीर का नाटक ’चरणदास चोर’ मंचित होगा। पांचवें दिन 31 अक्टूबर को एकजुट मुम्बई द्वारा नादिरा बब्बर के निर्देशन में ’यार बना बडी’ मंचित होगा। इस पंाच दिवसीय नाट्य समारोह में पंकज दीक्षित के कोलाज, रेखाचित्रांे और कविता-कहानी पोस्टर की प्रदशनी भी लगेगी। त्रिपुरारी शर्मा, बलवंत ठाकुर और नादिरा बब्बर अपने रंग अनुभव और रंगकर्म पर बातचीत करेंगे। प्रतिदिन नाटक से पहले प्लेटफॉर्म प्रस्तुतियों में माइम, नुक्कड़ नाटक, एकल प्रस्तुतियां और लोकनृत्य भी मंचित होंगे। पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित किए जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
विवेचना का नाट्य शिविर
विवेचना जबलपुर द्वारा 11 सितंबर 2010 से नाट्य शिविर का आयोजन किया। यह कई मायनों में अनोखा नाट्य शिविर है। इसमें अखबारों के माध्यम से शिविर में शामिल होने के लिए नाम आमंत्रित किए गए। विशेषता यह थी कि इस शिविर में शामिल होने के लिए छोटे बच्चों को छोड़कर हर उम्र के व्यक्ति को आमंत्रित किया गया। परिणामस्वरूप 14 वर्ष के किशोर से लेकर 71 वर्षीय बुजुर्ग ने भी इस शिविर में शामिल होने के लिए आवेदन दिया। इस शिविर में शामिल होने के लिए पांच घरेलू महिलाएं भी आईं।
शिविर का उद्घाटन सिद्धिबाला बोस लाइब्रेरी एसोसियेशन के अध्यक्ष सुब्रत पॉल द्वारा किया गया। श्री पॉल ने प्रशिक्षणार्थियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जबलपुर में नाटकों के संवर्धन में सिटी बंगाली क्लब की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने विवेचना के वर्कशॉप हेतु यथासंभव सहयोग का आश्वासन दिया। यह शिविर सिटी बंगाली क्लब के कक्ष में आयोजित किए। श्रीमती रूपांजलि बैनर्जी ने सभी प्रशिक्षणार्थियों से नाटक के बारे में अधिकाधिक पढ़ने और सीखने का अनुरोध किया।
विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने शिविर के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि पिछले दो वर्षाें में विवेचना ने राष्टीय नाटय विद्यालय के सहयोग से नाट्य शिविर आयोजित किए हैं। इस वर्ष यह शिविर आयोजित नहीं किया जा सका। इसीलिए इस शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस शिविर की विशिष्टता यह है कि इसमें हर उम्र का व्यक्ति हिस्सा ले सकता है। जबलपुर शहर में लाखों लोग रहते हैं लेकिन रंगकर्म से बहुत कम लोग जुड़े हैं। हम चाहते हैं कि वो तमाम लोग जो अभिनय गायन वादन या थियेटर की किसी भी विधा में रूचि रखते हैं थियेटर से जुड़ें। इसीलिए इस शिविर में शामिल होने के लिए कोई शर्त नहीं रखी गई है। बहुत से लोग जो गायन वादन या नृत्य आदि सीखे हुए होते हैं पर मंच पर उतरने का मौका नहीं हासिल कर पाते। विवेचना के इस शिविर के बहाने बहुत से लोगों ने यह अवसर हासिल किया कि वे प्रशिक्षण भी प्राप्त करें और मंच पर भी उतरें।
विवेचना के इस निःशुल्क शिविर में 37 प्रतिभागी शामिल हुए। इनमें 7 छात्राएं और घरेलू महिलाएं थीं। एक महिला गायन में विधिवत प्रशिक्षित हैं। शिविर का समय ऐसा रखा गया कि नौकरी पर जाने वाले लोग बिना छुट्टी लिये शिविर में हिस्सा ले सकें। शिविर में प्रतिदिन थियेटर व्यायाम, थियेटर गेम्स और इम्प्रोवाइजेशन के सत्र रखे गये जिनके बाद नाट्य विधा पर कक्षा होती थी जिसमें प्रतिभागियों को नाटक की जरूरी बारीकियां, लाइट साउंड, संगीत, नृत्य, मेकअप आदि की जानकारी दी गई। कुछ समय बाद जब प्रतिभागी खुलने लगे और नाट्य संसार से उनका परिचय हो गया तो नाट्य पाठ का सिलसिला शुरू किया गया। अनेक नाटकों का पठन किया गया। यह शिविर प्रारंभ होने पर ही घोषित कर दिया गया था कि इस शिविर में एक नाटक भी तैयार किया जाएगा जिसे विवेचना के सत्रहवें राष्टीय नाट्य समारोह में मंचित किया जाएगा। इसके लिये निर्देशक वसंत काशीकर ने उदयप्रकाश की कहानी मौसाजी का नाट्य रूपांतर किया। और मौसाजी जैहिन्द के नाम से नाटक तैयार हुआ। इस नाटक की तैयारी के दौरान नाटक की बारीकियों का ज्ञान प्रतिभागियों को दिया गया। नाटक में युवाओं और महिलाओं ने विशेष उत्साह से काम किया।
विवेचना द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित नाट्य शिविरों की श्रृंखला में यह शिविर सर्वाधिक सफल शिविर माना जा सकता है। इस शिविर के परिणाम उत्साहवर्धक रहे और शामिल प्रतिभागी विवेचना के नाट्यदल में शामिल हुए।
शिविर का उद्घाटन सिद्धिबाला बोस लाइब्रेरी एसोसियेशन के अध्यक्ष सुब्रत पॉल द्वारा किया गया। श्री पॉल ने प्रशिक्षणार्थियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जबलपुर में नाटकों के संवर्धन में सिटी बंगाली क्लब की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने विवेचना के वर्कशॉप हेतु यथासंभव सहयोग का आश्वासन दिया। यह शिविर सिटी बंगाली क्लब के कक्ष में आयोजित किए। श्रीमती रूपांजलि बैनर्जी ने सभी प्रशिक्षणार्थियों से नाटक के बारे में अधिकाधिक पढ़ने और सीखने का अनुरोध किया।
विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने शिविर के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि पिछले दो वर्षाें में विवेचना ने राष्टीय नाटय विद्यालय के सहयोग से नाट्य शिविर आयोजित किए हैं। इस वर्ष यह शिविर आयोजित नहीं किया जा सका। इसीलिए इस शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस शिविर की विशिष्टता यह है कि इसमें हर उम्र का व्यक्ति हिस्सा ले सकता है। जबलपुर शहर में लाखों लोग रहते हैं लेकिन रंगकर्म से बहुत कम लोग जुड़े हैं। हम चाहते हैं कि वो तमाम लोग जो अभिनय गायन वादन या थियेटर की किसी भी विधा में रूचि रखते हैं थियेटर से जुड़ें। इसीलिए इस शिविर में शामिल होने के लिए कोई शर्त नहीं रखी गई है। बहुत से लोग जो गायन वादन या नृत्य आदि सीखे हुए होते हैं पर मंच पर उतरने का मौका नहीं हासिल कर पाते। विवेचना के इस शिविर के बहाने बहुत से लोगों ने यह अवसर हासिल किया कि वे प्रशिक्षण भी प्राप्त करें और मंच पर भी उतरें।
विवेचना के इस निःशुल्क शिविर में 37 प्रतिभागी शामिल हुए। इनमें 7 छात्राएं और घरेलू महिलाएं थीं। एक महिला गायन में विधिवत प्रशिक्षित हैं। शिविर का समय ऐसा रखा गया कि नौकरी पर जाने वाले लोग बिना छुट्टी लिये शिविर में हिस्सा ले सकें। शिविर में प्रतिदिन थियेटर व्यायाम, थियेटर गेम्स और इम्प्रोवाइजेशन के सत्र रखे गये जिनके बाद नाट्य विधा पर कक्षा होती थी जिसमें प्रतिभागियों को नाटक की जरूरी बारीकियां, लाइट साउंड, संगीत, नृत्य, मेकअप आदि की जानकारी दी गई। कुछ समय बाद जब प्रतिभागी खुलने लगे और नाट्य संसार से उनका परिचय हो गया तो नाट्य पाठ का सिलसिला शुरू किया गया। अनेक नाटकों का पठन किया गया। यह शिविर प्रारंभ होने पर ही घोषित कर दिया गया था कि इस शिविर में एक नाटक भी तैयार किया जाएगा जिसे विवेचना के सत्रहवें राष्टीय नाट्य समारोह में मंचित किया जाएगा। इसके लिये निर्देशक वसंत काशीकर ने उदयप्रकाश की कहानी मौसाजी का नाट्य रूपांतर किया। और मौसाजी जैहिन्द के नाम से नाटक तैयार हुआ। इस नाटक की तैयारी के दौरान नाटक की बारीकियों का ज्ञान प्रतिभागियों को दिया गया। नाटक में युवाओं और महिलाओं ने विशेष उत्साह से काम किया।
विवेचना द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित नाट्य शिविरों की श्रृंखला में यह शिविर सर्वाधिक सफल शिविर माना जा सकता है। इस शिविर के परिणाम उत्साहवर्धक रहे और शामिल प्रतिभागी विवेचना के नाट्यदल में शामिल हुए।
बंगाल में होता है राजनैतिक चेतना का रंगमंच - उषा गांगुली
विवेचना, जबलपुर और जबलपुर बंगाली एसोसियेशन के तत्वावधान में पश्चिम बंग नाट्य अकादमी कोलकाता के सहयोग से आयोजित चार दिवसीय बांगला नाट्य समारोह के अंतिम दिन 19 सितंबर 2010 को प्रातः 10 बजे विवेचना द्वारा ’’ बंगाल का रंगपरिदृश्य’’ विषय पर एक गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी को प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक उषा गांगुली और चंदन सेन ने संबोधित किया।
उषा जी ने कहा कि बंगाल मंे छोटे छोटे गांवों और कस्बों में बहुत गंभीरता से रंगकर्म होता है। नौजवान लोग नए नए प्रयोग करते हैं। बंगाल में करीब 3500 नाट्य संस्थाएं हैं। करीब एक लाख रंगकर्मी नाटक से जुड़े हुए हैं। भारत में महाराष्ट और बंगाल का रंगमंच सबसे पुराना और स्थापित है। महाराष्ट में रंगमंच सामाजिक समस्याओं को बहुत अच्छे से उठाता है। वहीं बंगाल का रंगमंच राजनैतिक रूप से बहुत जाग्रत है। महाराष्ट का रंगमंच प्रोड्यूसर केन्द्रित है। प्रोड्यूसर जैसा चाहता है वैसा नाटक होता है। नवंबर से जनवरी माह तक बंगाल में सैकड़ों नाट्य उत्सव और मंचन होते हैं। छोटे छेाटे ग्रुप मंे भी अद्भुत मैनेजमेंट, अभिनय, रिहर्सल और मंचन की व्यवस्थाएं होती हैं। उन्होंने विवेचना के नाट्य शिविर में शामिल प्रशिक्षुओं से कहा कि वे पूरे समर्पण से नाटक सीखें। नाटक सचाई सामने लाता है इसीलिए नाटक खबर नहीं बनता। नए लोग नाटक में शामिल होते हैं यह जानते हुए भी कि नाटक से कुछ नहीं मिलता। पर सीखना चाहते हैं। पूरे देश में करीब 1 करोड़ रंगकर्मी हैं। ये रोज कुछ नया रचते हैं। उनके काम में ताजगी होती है। नई पौध में नई चेतना होती है। एक साजिश के तहत यह खबर नहीं बनती क्योंकि थियेटर उधेड़ता है। सच्चाई को पेश करता है। आज बाजार हर जगह हावी है। लेकिन नाटक बाजार से हटकर है। जो नाटक और नाटक करने वाले बाजार का हिस्सा बनते हैं उनका कोई रचनात्मक योगदान नहीं रहता। थियेटर बाजार के साथ समझौता नहीं करता। उन्होंने किरण बेदी नाम लेकर कहा कि उनके काम के लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है पर उन्हें साबुन पाउडर बेचने की क्या जरूरत है? यह बाजार से समझौता है।
प्रसिद्ध नाट्य लेखक और निर्देशक चंदन सेन ने कहा कि थियेटर का संपर्क जीवन और समाज की सच्चाई से है इसीलिए थियेटर हमेशा जीवित है। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंग नाट्य अकादमी जैसी अकादमी कहीं नहीं है जो कला के हर क्षेत्र में कार्य करती है। उत्सव आयोजित करती है। प्रशिक्षण शिविर आयोजित करती है। यह वर्ष रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती का है। इस अवसर पर पूरे देश में आयोजन हो रहे हैं। बंगाल मंे हर वर्ष सैकड़ों नए नाटक लिखे जा रहे हैं। नए नए प्रयोग हो रहे हैं। गौतम हालदार, सपन मुकर्जी, कौशिक सेन, सुरंजना, सीबा मुकर्जी जैसे अनेक युवा नाटककार और निर्देशक सामने आए हैं जिनके काम को सराहा गया है। राष्टीय नाट्य विद्यालय दिल्ली द्वारा आयोजित भारत रंग महोत्सव में केवल कलकत्ता से ही 7-8 नाटकों का चयन हो रहा है।
पश्चिम बंग नाट्य अकादमी के सदस्य सचिव सौरव कुमार वासु ने कहा कि कलाकार बाजार से प्रभावित न हों इसीलिए अकादमी द्वारा कलाकारों के प्रशिक्षण और मंचन की सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। नाटकों के लिए पूर्ण सुसज्जित प्रेक्षागृह केवल चार सौ रूपयें में उपलब्ध कराया जाता है। किताबें प्रकाशित की जाती हैं। अकादमी के सभी कार्यकारिणी सदस्य नाटक के क्षेत्र से हैं।
गोष्ठी का संचालन सचिव हिमांशु राय व वसंत काशीकर ने किया। आभार प्रदर्शन बांके बिहारी ब्यौहार ने किया।
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