Thursday, November 11, 2010
रंगआधार समारोह भोपाल में ’मित्र’
राकेश सेठी की संस्था ’रंगआधार’ हर सालत विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर राष्टीय नाट्य समारोह का आयोजन करती है। इसमें अधिकांश नाटक भोपाल की संस्थाओं के होते हैं साथ ही भोपाल के बाहर की संस्थाओं के नाटक भी आमंत्रित किये जाते हैं। पिछले तीन सालों से विवेचना को रंगआधार नाट्य समारोह में निरंतर आमंत्रित किया जा रहा है। विवेचना द्वारा पिछले समारोहों में मानबोध बाबू, सूपना का सपना नाटक मंचित हो चुके हैं। इस बार विवेचना जबलपुर ने रंगआधार समारोह में 30 मार्च को ’मित्र’ नाटक मंचित किया। नाटक में मुख्य भूमिका और निर्देशन की जिम्मेदारी विवेचना के कला निर्देशक वसंत काशीकर ने सम्हाली। वसंत काशीकर अनुभवी अभिनेता और निर्देशक हैं। लगभग 30 पूर्णकालिक नाटकों का निर्देशन उन्होंने किया है। मित्र नाटक में केवल पांच पात्र हैं। कहानी बहुत रोचक और भावनात्मक है। इस नाटक का मंचन विवेचना के सोलहवें राष्टीय नाट्य समारोह के पहले दिन हुआ था। वसंत काशीकर के निर्देशन में एक व्यवस्थित अनुशासन देखने को मिलता है। नाटक में हर अतिरेक को वो बरकाते हैं। सैट, लाइट, साउंड संगीत सभी को अपनी सीमा में उपयोग करते हुए अभिनय और दृश्य को केन्द्र में रखते हैं। इसीलिए उनके नाटक उपकरणों पर आधारित नहीं होते। मित्र में सधे अभिनय से उन्होंने प्रभावित किया लेकिन पहली बार मंच पर उतरी शैली कक्कड़ ने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। नाटक मित्र नाटक का प्रमुख पात्र दादा साहब बहुत ही स्वाभिमानी एवं कर्मठ व्यक्ति है। एक दिन रास्ते में चल रही लड़ाई में बीच बचाव करने पर कुछ उपद्रवी तत्व उस पर हमला कर देते हैं। उसके चेहरे पर चोट आती है और टांके लगाते समय उस पर पक्षाघात जैसी बीमारी हो जाती है। वे चल नहीं पाते। उनके इलाज के लिए एक नर्स रखी जाती है। दादा साहेब उस नर्स से बहुत चिढ़ते हैं और उससे दुश्मनों सा व्यवहार करते हैं। उनका बेटा बंगलोर में है और बेटी अमेरिका में। बेटी उन्हें अमेरिका ले जाना चाहती है पर वे जाना नहीं चाहते। उन्हें अपनी बेबसी बहुत परेशान करती है। नर्स मिसेस रूपवते की मेहनत से वे ठीक हो जाते हैं। दोनेां अच्छे मित्र बन जाते हैं।
इस सारे घटनाक्रम में बहुत रोचक उतार चढ़ाव आते हैं। जिससे मानवीय संबंधों की नर्इ्र नई परतें खुलती हैं। धर्म जाति लिंग उम्र आदि बाह्य बातों को बरकाकर दो इंसानों के बीच कैसे मित्रता पैदा होती है और पनपती है ये इस नाटक में दिखाया गया है। अकेले रहने वाले अलग अलग शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अवस्थाओं में रहने वाले कई दादा साहेब पुरोहित समाज में संघर्षपूर्ण जीवन जी रहे हैंं। जिनका सोचना है कि आजकल बूढ़े मरने से नहीं घबराते उन्हें जीने से डर लगता है। मिसेज रूपवते की भूमिका में शैली ने यह एहसास नहीं होने दिया कि वे पहली बार मंच पर उतरी हैं। मंच पर उनकी उपस्थिति पूरी सार्थकता देती है। वे मानों इसी पात्र के लिये बनी हैं। बेटे माधव की भूमिका में अभिषेक काशीकर, बेटी की भूमिका में अर्चना बिलथरिया और डाक्टर की भूमिका में संजय गर्ग ने अपने पात्रों के साथ पूरा न्याय किया। मित्र को देखना एक अच्छे नाटक को पूर्णता में देखने के अनुभव से गुजरना है। नाटक में घर का पूरा सैट परंपरागत तरीके से लगाया गया। संगीत और प्रकाश संयोजन ने नाटक को बहुत उंचाई दी।
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