ये है बाम्बे मेरी जान का शानदार मंचन
विवेचना के इक्कीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह के पांचवें और अंतिम दिन एकजुट मुम्बई द्वारा द्वारा ’ये है बाम्बे मेरी जान’ नाटक का मंचन किया गया। खुशी और गम से भरी यह प्रस्तुति एक यादगार प्रस्तुति थी। नादिरा बब्बर के नाटक पहले भी जबलपुर में हुए हैं। यह प्रस्तुति उनकी सबसे अच्छी प्रस्तुतियों में शुमार होगी। इस नाटक में लेखक और निर्देशक नादिरा बब्बर ने दर्शक को कभी हंसाया है तो कभी भावुक भी बनाया है। इसके पात्र मुम्बई में रहने वाले सभी आम लोग हैं जिनका जीवन सघर्ष, उनके सुख दुख उनकी समस्याएं नाटक की कहानी गढ़ते हैं और इन्हीं के बीच सबके हंसी खुशी के पल भी आते जाते रहते हैं। नाटक की बुनावट ऐसी है कि दर्शक अपने आपको मुम्बई के आम आदमी के बीच घुलामिला पाता है।
नाटक में देवी दा लेखक हैं तो टीकम और लक्ष्मी अभिनेता बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आरिफ अली अभी अभी कश्मीर से आया है और मुम्बई में सबकुछ करने को तैयार है। ये सब एक कमरे में रह रहे हैं जिनकी मकान मालिकन मिसेज नैन्सी हैं। राहिला लक्ष्मी की प्रेमिका है। दोनों एक दूसरे को चाहते हैं मगर शादी नहीं कर सकते क्योंकि भविष्य अनिश्चित है। टीकम और बेला की शादी हो चुकी है पर जाति के चक्कर में घर से निकाले जा चुके हैं। हनीफ पाटनी ने विविध भूमिकाओं में 6 रोल किये। कभी डब्बे वाले का तो कभी पुलिस वाले का। नाटक में डाक्टर कहता है कि मुम्बई में सब लोग आते हैं 30-40 साल रहते हैं फिर भी कोई अपने को मुम्बई का नहीं कहता। सब अपने गांव, शहर का नाम लेते हैं जबकि मुम्बई सबको अपने में समा लेती है। नाटक का अंत बहुत आशावादी है जिसमें संघर्ष कर रहे सभी लोग अब कुछ न कुछ बन गये हैं और सुखी हैं। संगम शुक्ला, मिथिलेश मैहर, मानव पांडे, संदीप मोरे, देवेश कुमार, नेहा शेख, अनुपमा नेगी, गुंजन त्यागी, राधेश्याम ने अपने अपने पात्रों को बखूबी जिया और जीवंत बनाया। हनीफ पाटनी ने तो मानो पूरे मुम्बई का ही प्रतिनिधित्व किया और 6 पात्र निभाकर अपने अभिनय की छाप छोड़ी। आमोद भट्ट का संगीत बहुत कर्णप्रिय था।
नाटक की निर्देशक नादिरा बब्बर ने बताया कि इस नाटक का हर चरित्र उसकी खुशियां और उसके गम सभी मैंने देखे और भोगे हैं। इनमें कुछ भी काल्पनिक नहीं है। मुम्बई एक शहर के रूप में मेरे लिए बहुत महत्व रखता है। मैं लखनऊ में पैदा हुई लेकिन मुम्बई मेरी कर्मभूमि रही है। जहां मैंने अपने आप को पाया है। इस देश के बहुत से लोगों के लिए मुम्बई बहुत मायने रखता है। यहां बहुतेरे लोग अपने सपनों को सच्चा बनाने के लिए आते हैं।दर्शकों के लिए नाटक को रोचक बनाने हेतु मैंने नाटक में दुखद क्षणों में हंसने के मौके निकाले हैं। यह दरअसल रोते हुए हंसना है।
नाटक के अंत में निर्देशक नादिरा बब्बर को श्री हरि भटनागर की पेन्टिग स्मृतिचिन्ह के रूप में प्रदान की गई। सभी कलाकारों का स्वागत शहर के कलाप्रेमियों द्वारा किया गया। इस अवसर पर विवेचना से अनिल श्रीवास्तव, मनु तिवारी हिमांशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर उपस्थित थे।
No comments:
Post a Comment