औरंगजेब के भव्य मंचन में से दर्शक अभिभूत
विवेचना के इक्कीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह के चौथे दिन 11 अक्टूबर 2014 को न्यू देहली थियेटर वर्कशाॅप ग्रुप के द्वारा ’औरंगजेब’ नाटक का मंचन किया गया। नाटक की भव्य प्रस्तुति वर्षों याद रखी जाएगी। औरंगजेब का किरदार निभा रहे महेन्द्र मेवाती ने अपने अभिनय से दर्शकों को निराला अनुभव दिया। यह नाटक भारत के आज के नाटकों का सर्वाधिक चर्चित नाटक है। इसके जबलपुर में मंचन हेतु विवेचना वर्षों से प्रयासरत थी। इंदिरा पार्थसारथी के इस तमिल नाटक का हिन्दुस्तानी रूपांतर शाहिद अनवर ने किया है।
सन् 1657 में जब शाहजहां बीमार हुआ तो उनके चार बेटों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई छिड़ गई। दारा शिकोह और औरंगजेब प्रमुख दावेदार थे और शाहजहां की दोनों लड़कियां जहांनारा और रोशनआरा क्र्रमशः दारा और औरंगजेब का समर्थन कर रहीं थीं। शाहजहां स्वयं दारा के पक्ष में था जोकि अकेला ही उस दौरान आगरा में था। शाहजहां के काले संगमरमर के महल के ख्वाब को पूरा करने के लिए दारा तैयार था। उस समय का मुगल दरबार राजनैतिक पैंतरेबाजियों का अखाड़ा बना हुआ था। चैथा चैथा
नाटक औरंगजेब के दो जासूसों की बातचीत से शुरू होता है जो बताते हैं कि उन पर भी नजर रखी जा रही है। ये औरंगजेब के शक्की स्वभाव का बयान है। नाटक में इतिहास के उन हिस्सों को लिया गया है जो उस समय औरंगजेब, दाराशिकोह और शाहजहां के बीच के द्वंद्व को ठीक तरह से उभारते हैं। नाटक उस समय महल के अंदर चल रहे उतार चढ़ाव पर पैनी नजर डालता है। इस सत्ता संघर्ष के सभी खिलाड़ी अलग अलग स्वभाव और अलग अलग राह के राही है। शाहजहां रूमानी और अपने आप में खोये हुए हैं। औरंगज़ेब मजहबी हैं तो दारा बहुलता के हामी हैं। नाटक शाहजहां और दारा और औरंगज़ेब, जहांनारा और रोशनआरा के बीच के अंतर को पकड़ने की कोशिश करता है। शाहजहां अतीत में तो दारा भविष्य औरऔरंगज़ेब वर्तमान में रहता है। औरंगज़ेब की जीत उसकी जमीनी सच्चाई से करीब होने पर है मगर उम्र के आखिरी पड़ाव में वो बिल्कुल अकेला है अपने से सवाल पूछता हुआ। उसका राज्य बिखर रहा है और वो कुछ नहीं कर पा रहा है।
निर्देशक के एस राजेन्द्रन ने बताया कि औरंगजेब नाटक इतिहास के किरदारों और महलों के अंदर चल रही शतरंजी चालों को सामने लाता है। एक ढहते साम्राज्य का सबसे ज्यादा फायदा सत्ता के गलियारों में घूमने वाला अवसरवादी उच्च वगै और मिलिट्री उठाती है और ये वर्ग अपने फायदे के सभी समझौते करने को तैयार रहता है। शाहजहां की दोनों पुत्रियां अपने अपने पसंदीदा भाई की तरफ से अपनी अपनी चालें चलती हैं। ये माहौल का परिणाम था जो उस दौरान मुगल दरबार के गलियारों और तख्त के आसपास मौजूद था।
इस नाटक का मुख्य तत्व हमें वह आधार प्रदान करता है जिससे हम सत्ता के शीर्ष पर बैठे चरित्रों की मनोदशा, उनके डर, उनकी चिन्ताओं को समझ सकें जो परिस्थितियों के संकट पर घिरते जाने के साथ साथ और भी घनी होती जाती हैं। यह नाटक इमरजेंसी लगने के पहले सन् 1974 में लिखा गया। यह नाटक अन्य चीजों के अलावा एक देश एक भाषा एक धर्म के सिद्धांत की आलोचनात्मक पड़ताल करता है। औरंगजेब की आज के समय में कहीं ज्यादा राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता है।
नाटक में औरंगजेब बने महेन्द्र मेवाती ने अभिनय का कीर्तिमान स्थापित किया। औरंगजेब के व्यक्तित्व और उसकी विचित्रताओं, उसकी मनोदशा को मेवाती ने सच्ची अभिव्यक्ति दी। दारा के रूप में इमराज राजा नाटक के दूसरे नायक नजर आते हैं। जहांनारा बनी आशिमा खन्ना
बहुत शानदार थीं। रोशनारा बनी प्रियंका शर्मा, शाहजहां बने नीलेश दीपक ने कमाल का अभिनय किया। नाटक सैट भव्य था और शाहजहाँ के महल का पूर्ण आभास कराता था।
नाटक के अंत में निर्देशक के एस राजेन्द्रन को श्री हरि भटनागर की पेन्टिग स्मृतिचिन्ह के रूप में प्रदान की गई। इस अवसर पर विवेचना से हिमंाशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर उपस्थित थे।
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