श्रेष्ठ नाटकों का भव्य समारोह
विवेचना के उन्नीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह का उद्घाटन जबलपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री राॅमेन दत्ता ने दीप प्रज्जवलन के साथ किया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार सर्वश्री ज्ञानरंजन, संतोष तिवारी, हिमांशु राय, वसंत काशीकर, बसंत सोनी, बांकेबिहारी ब्यौहार आदि उपस्थित थे।
इस अवसर पर श्री रामेन दत्ता और कमल जैन को सम्मानित भी किया गया। श्री राॅमेन दत्ता ने तीन दशकों तक जबलपुर के हिन्दी और बंगला रंगमंच को अपने निर्देशन और अभिनय कौशल से समृद्ध किया है। श्री कमल जैन को नाटकों में प्रकाश परिकल्पना के लिये प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी अवार्ड दिया गया है। श्री कमल जैन भोपाल से ’सवाल अपना अपना’ नाटक के प्रकाश संयोजन के लिए विशेष रूप से जबलपुर आए थे।
विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह में प्रतिदिन नाट्य मंचन के पूर्व पूर्वरंग आयोजित होता है। तरंग आॅडीटोरियम के बाहर बने मंच पर सैकड़ों दर्शक इस पूर्वरंग की प्रस्तुतियों का आनंद लेते हैं। उद्घाटन से पूर्व तरंग आॅडीटोरियम के बाहर श्रीमती उपासना उपाध्याय और उनके नृत्य दल ’तरंग’ ने रवीन्द्र नाथ टैगोर की तीन कविताओं को बैले के रूप में प्रस्तुत किया जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया।
विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह के उद्घाटन के पश्चात विवेचना के कलाकारों ने ’सवाल अपना अपना’ नाटक का मंचन किया। इस नाटक के लेखक अभिराम भिड़कमकर हैं। यह नाटक आज के समय का जरूरी नाटक है जिसमें पैसे और भौतिकता की अंधी दौड़ में आदमी सभी मूल्यों को ताक में रखकर लगभग वहशी बन जाता है। नाटक का नायक सुभाष है जो एक विज्ञापन कंपनी में काम करता है और साधारण आर्थिक स्थिति का है। उसकी पत्नी निर्मला एक शिक्षिका है। जो धर्मभीरू है। सुभाष को शिकायत है कि उसकी कला का शोषण हो रहा है। वो बहुत जल्दी अमीर बन जाना चाहता है। इसके लिए वो नई फर्म में जाता है। उसके पास पैसा आ जाता है पर उसकी हवस बढ़ती जाती है। वो अपनी सफलता के लिए हर कुछ करने को तैयार है। उसकी पत्नी उससे ठीक विपरीत है। वो धार्मिक महिला है। सुभाष का पड़ोसी और गहरा दोस्त भास्कर एक आंदोलनकारी है जो अंधविश्वासों और रूढि़वाद के विरूद्ध आंदोलन करता है और जेल जाता रहता है। उसका पालित पुत्र मनु दोनों घरों के विचारों के बीच फंसा हुआ है। नाटक में नौकरानी सगुणा को देवी आती है जिसका चढ़ावा मिलता है। उसका आदमी गांेद्या इस काम को और विस्तार करना चाहता है मगर सगुणा मां बनना चाहती है। गांेद्या उसे मारता पीटता है। मनु की पढ़ाई के बहाने नाटक में आज की शिक्षा पर भी टिप्पणी है। नाटक की खासियत यह है कि एक कहानी के जरिये वो अपनी सारी बात कहता है पर कोई प्रवचन या भाषणबाजी नहीं करता। नाटक दर्शकों को सोचने के लिए कई सवाल छोड़ जाता है।
नाटक में प्रयोगात्मक सैट का बनाया गया है जिसे वसंत काशीकर ने परिकल्पित किया है और अभय पाटकर व सुरेश विश्वकर्मा ने बनाया है। मेकअप सामान्य है पर परिधान पर अमृत प्रभाकर ने अच्छा काम किया है। नाटक में कमल जैन, भोपाल ने अपने प्रकाश कौशल का कमाल दिखाया है। उससे सभी दृश्य बहुत उभरकर सामने आए। नाटक के सहनिर्देशक संजय गर्ग और निर्देशक वसंत काशीकर ने कलाकारों के साथ बहुत मेहनत की जिसके कारण पहली बार मंच पर उतरे कलाकारों ने भी प्रभावशाली का अभिनय किया है। निर्मला के रूप में अर्चना सोनी, सुगना के रूप में इन्दु सूर्यवंशी, भास्कर के रूप में अजय जायसवाल, सुभाष के रूप में आशीष नेमा, मनु के रूप में अक्षय सिंह ठाकुर, गोंद्या के रूप में प्रशांत दीक्षित ने बहुत शानदार अभिनय किया।
विवेचना के उन्नीसवें राष्ट्रीय समारोह के दूसरे दिन राजस्थानी भाषा के लालित्य और सौन्दर्य को प्रदर्शित करते नाटक करने में संलग्न जोधपुर की संस्था ’रम्मत’ ने ’जमलीला’ नाटक का मंचन किया। नाटक ने आज की व्यवस्था पर गहरी चोट करते हुए दर्शकों की वाहवाही लूटी। नाटक का निर्देशन डा अर्जुनदेव चारण ने किया है। जोधपुर के ये कलाकार पहली बार जबलपुर आए हैं।
नाटक ’जमलीला’ आज के सामाजिक राजनैतिक हालातों पर हंसते हंसाते टिप्पणी करता है। अपनी विशिष्ट कहानी के माध्यम से बुनी गई हास्य स्थितियों और व्यंग्य भरे संवादों से दर्शकों को बांधे रखता है। नाटक की कथा में एक हाथी की असमय मृत्यु से शुरू होता है। हाथी की आत्मा और यमराज के बीच बहस छिड़ जाती है। हाथी बताता है कि धरती में नेता नाम का जीव कुछ भी कर सकता है। यदि वो यहां आ जाए तो आपकी कुर्सी हिला सकता है। नेता को लेकर बहस छिड़ जाती है। हाथी यमराज को समझाता है कि नेता नाम का ’जीव’ बहुत चालाक और धूर्त होता है आप उससे मिलने की जिद न करें। मगर यमराज जिद पर अड़ जाता है। हाथी को धरती से यमलोक जाने आने का वरदान मिल जाता है और साथ ही यह वरदान भी मिलता है कि वो किसी को भी सशरीर धरती से यमलोक ला सकता है और चाहे जैसा रूप बना सकता है। इन वरदानों को पाकर हाथी निकल पड़ता है धरती पर ऐसा नेता ढ़ंूढने जो भिड़ सके यमराज से। इस खोज में कई चरित्र परत दर परत उधड़ कर सामने आते हैं।
नाटक में बार बार हास्य की स्थितियां आती रहीं और दर्शक चुटीले संवादों का आनंद लेते रहे। इस नाटक में सूत्रधार बने हैं भूत जो वर्तमान व्यवस्था कि परतें उधेड़ने के साथ साथ मनुष्य के मन मंे छुपी कुंठा और तृष्णा को भी उजागर करते हैं। यह नाटक धरती के सभी वासियों की महत्वाकांक्षा को मुखर करता है। इसमें मनुष्य के साथ जानवर और देवता भी शामिल है।
नाटक में विभिन्न भूमिकाओं में इला चारण, महुआ, आशीष चारण, मेघ सिंह, प्रशांत सिंह, मदन भाटी, महेश माथुर, दीपक भटनागर, अरूण बहुरा, गौरी शंकर, अशोक गहलोत, सूर्या सिंह, ने सधा हुआ अभिनय किया और नाटक को नई उचांई दी। नाटक में तरह तरह की वेशभूषा और क्राफ्ट का बहुत संुदर प्रयोग किया गया। नाटक में शफी मुहम्मद की प्रकाश परिकल्पना ने नाटक के दृश्यों को बहुत संवारा।
विवेचना के उन्नीसवें राष्ट्रीय समारोह के तीसरे दिन सुप्रसिद्ध फ्रेंच नाटककार लोर्का के नाटक का हिन्दी रूपांतर ’अघट प्रेम’ इलाहाबाद की संस्था समांतर ने मंचित किया । नाटक के भावनापूर्ण दृश्यों और संगीत से दर्शक रोमांचित रहे। नाटक का निर्देशन अनिलरंजन भौमिक ने किया है।
नाट्य मंचन से पूर्व तरंग आॅडीटोरियम के बाहर पूर्वरंग के अंतर्गत रजनीय यादव व संजय पांडे के कलाकारों ने सैला नृत्य से मनमोह लिया। पूर्व रंग की इस प्रस्तुत को बहुत सराहना मिली।
नाटक ’अघट प्रेम’ लोर्का के नाटक ’ द प्रोडिजियस वाइफ’ पर आधारित है। इसे बिहार की पृष्ठभूमि में डालकर कमलकुमार और प्रगति सक्सेना ने रूपांतरित किया है। बेमेल विवाह एक बड़ी त्रासदी रही है। इस त्रासदी को जीते हैं दो पात्र। एक बूढ़ा मोची और एक युवा स्त्री। आत्मीय उष्मा और उत्ताप के साथ कहानी में आश्चर्यजनक मोड़ आते हैं जहां बूढ़ा मोची अपनी कुंठा और युवा स्त्री अपनी तरूणाई से जूझ रहे होते हैं। मोची कुछ समय के लिए परिदृश्य से गायब हो जाता है और इसी अनुराग का रंग और गाढ़ा हो कर स्त्री के मन में घटता है। ’अघट प्रेम’ साकार होने लगता है। वो अपने पति के लिए आकुल हो उठती है। उसे लगता है कि जैसा भी था पर वो मेरा पति था और मुझे चाहता था। इस दौरान उसके पास तरह तरह के लोग आते हैं और उसे तरह तरह से रिझाते, भड़काते हैं। एक दिन उसका पति भेष बदलकर आ जाता है। वो उसे पहचान नहीं पाती मगर पति जान जाता है कि उसकी उम्र की सीमा और जन्म के बन्धनों का अतिक्रमण करता एक सपना फिर सच हो जाता है।
नाटक में सीताराम मोची बने रवीन्द्र यादव और मोची की बीवी निधि साहू ने बहुत प्रभावशाली अभिनय किया। अन्य भूमिकाओं में मुकेश जायसवाल, प्रणव कुमार भट्टाचार्य, कनिष्क सिंह, हिमानी कुलकर्णी, गरिमा चैधरी, गरिमा कुशवाहा, रागिनी पाल, अखिलेश प्रजापति, आशीष श्रीवास्तव, कार्तिक श्रीवास्तव, सुमित त्रिपाठी, सिद्धार्थ मिश्रा, मनोज कुमार, आशीष गिरी ने अपने अपने पात्रों को बखूबी निभाया। उदयचन्द्र परदेसी का संगीत और विनय श्रीवास्तव की प्रकाश परिकल्पना बहुत सुंदर थी।
एक विदेशी नाटक को देशी पृष्ठभूमि में बदलना और फिर उसे गीत संगीत से सजाकर कर अभिनय, वेशभूषा और मेकअप से पूर्ण कर प्रस्तुत करने में निर्देशक अनिलरंजन भौमिक ने बहुत मेहनत से काम किया। नाटक के सभी पक्ष बहुत मजबूत थे इसीलिये दर्शकों को सम्पूर्णता का अनुभव हुआ।
विवेचना के उन्नीसवें राष्ट्रीय समारोह के चैथे दिन चंडीगढ़ की संस्था ’थियेटर फाॅर थियेटर’ के कलाकारों ने ’चेहरे’ नाटक का प्रभावशाली मंचन किया। नाटक का निर्देशन सुदेश शर्मा ने किया जो देश के चर्चित नाट्य निर्देशक हैं। यह नाटक डा शंकर शेष का लिखा हुआ है।
नाट्य मंचन से पूर्व तरंग आॅडीटोरियम के बाहर केन्द्रीय विद्यालय सी ओ डी के बच्चों ने पूर्व रंग के अंतर्गत ’तुर्की डांस’ प्रस्तुत किया। तुर्की डांंस की इस नयनाभिराम प्रस्तुति से दर्शक अभिभूत रहे।
एक सामाजिक कार्यकर्ता भरोसे जी की मृत्यु हो जाती है। उन्होंने गांव में स्कूल खोला, नई चेतना पैदा की। सभी गांववासी भरोसे जी की अर्थी लेकर श्मशान की ओर जा रहे होते हैं कि अचानक तेज बारिश हो जाती है। लाश को पास एक खंडहर में रख दिया जाता है। इसी दौरान एक लड़का जो कि अपने आपको बम्बई का फिल्मी हीरो बताता है अपने गांव की एक लड़की को अपने साथ भगा कर ले जा रहा होता है वह भी इसी खंडहर में फंस जाता है। एक ग्रामीण जो अपनी बेटी की ससुराल में अदायगी का सामान लेकर जा रहा है वह भी फंस जाता है। बैठे बैठे बात बात में बात निकल पड़ती है। नैतिकता अनैतिकता के प्रश्न उठने लगते हैं और धीरे धीरे शवयात्रा में शामिल विभिन्न चरित्रों के चेहरे उजागर होने लगते हैं। सब एक दूसरे की बखिया उधेड़ने लगते हैं।
नाटक की खासियत यह भी है कि इसमें सत्तर वर्षीय अभिनेता से लेकर युवा अभिनेता तक सभी काम कर रहे हैं। नाटक में विभिन्न अभिनेताओं ने जो किरदार निभाए वो थे- के के डोडा जी - सुखलाल, तेजभान गांधी - भवानी, पंडित जी- नरेश भगत, साहू- शरनजीत सिंह, गेंदा सिंह- सुदेश शर्मा, अध्यापिका जी - अर्श ग्रेवाल, परमानंद- करनकुमार, ग्रामीण - शविंदरपाल सिंह, विनोद- हरविंदर सिंह, कमली - कु सुरभि कालिया, रमाकांत - मोहित गुप्ता, युवा- मंदीप सिंह, अनिल कुमार, मुनीश डोगरा। नाटक में प्रकाश व संगीत करन शर्मा का था और वेशभूषा व प्रस्तुति श्रीमती गीता गांधी की थी।
विवेचना के उन्नीसवें राष्ट्रीय समारोह के पांचवें और अंतिम दिन भिलाई इप्टा ने मंथन नाटक का मंचन किया। इस दो पात्रीय नाटक के चुभते संवादों ने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया। यह प्रस्तुति सुबह साढ़े दस बजे आयोजित हुई जिसमें बड़ी संख्या में दर्शकों ने शिरकत की। विवेचना के नाट्य समारोह अब यह एक परंपरा बन गई है कि अंतिम दिन सुबह भी एक मंचन होता है।
भिलाई इप्टा के द्वारा मंचित स्व शरीफ अहमद द्वारा लिखित ’मंथन’ नाटक में एक नाविक दिनभर काम करने के बाद अपनी थकान उतारते हुए बैठा है तभी एक पंडित जी आकर उसको नदी पार कराने के लिए कहते हैं। नाविक तैयार नहीं है। पंडित जी का जाना जरूरी है। पंडित जी के दबाव में नाविक जाने को तैयार हो जाता है पर उसकी कुछ शर्तें हैं। पंडित जी धर्मसंकट में हैं। ये शर्तें ऐसी हैं कि मानना कठिन है मगर जाना भी जरूरी है। इसके बाद पंडित जी अपना काम निकालने के लिए एक के बाद नाविक की हर शर्त मानने लगते हैं। पाप पुण्य, स्वर्ग नर्क, हिंसा अहिंसा और लाभ हानि को लेकर बहुत सटीक बहस दोनों पात्रों के बीच होती है जिसमें छुपा सच दर्शक आसानी से पहचना लेता है। नाटक में प्रमुख भूमिका राजेश श्रीवास्तव और संजीव मुकर्जी ने निभाई।
शाम को नाट्य मंचन से पूर्व तरंग आॅडीटोरियम के बाहर श्रीमती शैली धोपे के निर्देशन में नृत्यांजलि नृत्य समूह के द्वारा बंुदेली लोकनृत्य व कथक नृत्य की प्रस्तुति को बहुत सराहना मिली। इस कार्यक्रम में विश्वनाथ धारगे के नृत्य दल के लोकनृत्य को बहुत पसंद किया गया। श्री बसंत सोनी के जैविक कला के चित्रों की प्रदर्शनी को भी दर्शकों ने देखा और सराहा। श्री बसंत सोनी ने अपने जैविक चित्र बनाने की कला के बारे में बताया और उन्नीसवंे राष्ट्रीय नाट्य समारोह में शामिल करने के लिए विवेचना को आभार व्यक्त किया।
विवेचना के 19 वें राष्ट्रीय नाट्य समारोह में अंतिम प्रस्तुति अवनीश मिश्रा के निर्देशन में ’द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’ का मंचन यादगार रहा। प्रसिद्ध टी वी अभिनेता हेमंत पांडेय और राणा के मंजे हुए अभिनय ने नाटक में जान डाल दी। नाटक में राजा मास्टर अपनी 60 साल पुरानी टेलरिंग की दुकान को ठीक से चला नहीं पा रहे हैं। यूं तो उनके बाप दादे भी यही काम करते थे पर अब उनको लगा कि टेलरिंग के बजाय ड्रामा कंपनी चलाई जाए जिससे द ग्रेट राजा मास्टर टेलरिंग कम्पनी अपना रूप बदलकर द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी बन जाए। इससे उनके अंदर का कलाकार भी बाहर की हवा खा पाएगा जिसे उनके बाप ने इतने सालों से दबा कर रखा है। जहां तक ड्रामा कंपनी में कलाकार का सवाल है टेलरिंग कंपनी के टेलर सब ड्रामा कंपनी के एक्टर बन जाएंगे। द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी के पहले नाटक के पहले शो में क्या कुछ घटता है यही इस नाटक में दिखाया गया है। नाटक में घटी मजेदार घटनाएं और चरित्र दर्शकों को बार बार हंसाते हैं। नाटक नौटंकी शैली में है। गीत और संगीत नाटक का एक मजबूत पक्ष है। राजा मास्टर के रूप में हेमंत पांडेय और दिले नादां के रूप में राणा प्रताप संेगर की जोड़ी ने जबरदस्त रंग जमाया। गाजर झांस्वी बने शशि चतुर्वेदी, अनारकली बनी नताशा, चंपाकली बनी निर्मला और मंहगुआ बने नरोत्तम बैन ने दर्शकों को खूब हंसाया।
नाट्य समारोह में विख्यात चित्रकार श्री बसंत सोनी के चित्रों की प्रदर्शनी तरंग प्रेक्षागृह की गैलरी में लगाई गई। उल्लेखनीय है श्री बसंत सोनी के अपने चित्र पेड़ों की छाल, फूल, पत्तियों, जड़ों और छिलकों आदि से बनाते हैं। इस जैविक कला के वे पहले कलाकार हैं और यह उनकी स्वयं की विकसित की हुई विधा है।
विवेचना के उन्नीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह के अंतिम दिन विवेचना की ओर से सभी सहयोगियों और मित्रों का आभार व्यक्त किया गया।
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