Wednesday, April 27, 2011

विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह बोलियों के रंगमंच का बोलबाला



विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह
बोलियों के रंगमंच का बोलबाला
विवेचना का सत्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 27 से 31 अक्टूबर 2010 तक संपन्न हुआ। सन् 1994 से निरंतर चल रहे इस नाट्य समारोह के आयोजन में इस बार बोलियों के रंगमंच का प्रस्तुतिकरण विशेष रहा। विवेचना का स्वयं का नाटक जहंा बुन्देली भाषा में था वही ंबलवंत ठाकुर, जम्मू का नाटक ’घुमाई’ डोगरी भाषा में था। वहीं स्व हबीब तनवीर का नाटक छत्तीसगढ़ी में था। नाट्य समारोह की दूसरी विशेषता यह रही कि पांचों नाटकों के लेखक ही उनके निर्देशक थे। यह एक संयोग ही था पर इससे समारोह में एक नया तत्व जुड़ गया।
विवेचना ने इस समारोह को आकर्षक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मध्यप्रदेश विद्युत मंडल के भव्य ऑडीटोरियम को जहां विशेष रूप से सजाया गया वहीं नाट्य समारोह के प्रचार प्रसार के लिए पूरे शहर में बैनर लगाये गये। समारोह के आकर्षक पोस्टर को जबलपुर के गली कूचों से लेकर प्रमुख चौराहों तक लगाया गया। समारोह के शुरू होने से पहले ही समारोह नाटक के दर्शकों के बीच उत्सुकता और उत्साह का कारण बन चुका था। विवेचना का समारोह जबलपुर में एक परंपरा बन चुका है जिसके कारण अक्टूबर माह में समारोह की पहली खबर छपते ही दर्शकों में नाटकों के बारे में चर्चा शुरू हो जाती है। बाकी शहरों के लिए यह बात आश्चर्यजनक हो सकती है कि सात सौ साठ सीट का ’तरंग’ प्रेक्षागृह प्रतिदिन पूरा भरता है और सारी टिकटें केवल काउंटर से ही बिकती हैं। इस बार नादिरा बब्बर और उनकी एकजुट मुम्बई की टीम पांच साल बाद आई तो उसके लिए विशेष उत्सुकता थी। बलवंत ठाकुर जबलपुर में इसके पहले तीन बार आ चुके हैं और उनके नाटकों ने ऐसी धाक जमाई है कि दर्शक उनके नाटकों का इंतजार करते हैं। डोगरी भाषा में होने के बावजूद उनके नाटकों का दर्शक हिन्दी नाटकों के बराबर ही स्वागत करते हैं। हबीब साहब ने विवेचना के पहले राष्ट्रीय नाट्य समारोह का उद्घाटन किया था और उनका नाटक ’देख रहे हैं नैन’ पहले समारोह का पहला नाटक था। विवेचना के पांचवें समारोह में हबीब साहब ’वसंत ऋतु का सपना’ लेकर भी आ चुके हैं। इस समारोह में उनका नाटक ’चरणदास चोर’ होना दर्शकों के लिए उनकी सुखद स्मृतिस्वरूप था। इस समारोह में त्रिपुरारी शर्मा का नाटक पहली बार मंचित हुआ। दर्शकों को एक इस नाटक ने अभिनय और कल्पनाशीलता का अलहदा अहसास कराया।
विवेचना ने इस बार नाट्य समारोह को सम्पूर्णता देने के लिए अनेक नए आकर्षण जोड़े। समारोह के पहले दिन विवेचना के नृत्य प्रकोष्ठ ’तरंग’ की नृत्यांगनाओं ने गणेशवंदना की प्रस्तुति कत्थक में की। इसे बहुत अधिक सराहा गया। यह प्लेटफॅार्म प्रदर्शन का पहला सोपान था। तरंग प्रेक्षागृह के बाहर बने मंच पर इसकी प्रस्तुति ने समा बांध दिया। दूसरे दिन इसी श्रृंखला में युवा शास्त्रीय गायक रिज़वान ने अपने गायन से दर्शकों को लुभाया। तीसरे दिन दीपा की एकल प्रस्तुति थी। दीपा ने अपने एकल कत्थक प्रदर्शन से दर्शकों को मोहित कर दिया। चौथे दिन राकेश कुरेले और साथियों ने आकर्षक लोकनृत्यों की प्रस्तुति की। आकर्षक वेशभूषा में लोकवाद्यों के साथ जब लड़के लड़कियों ने नाचना शुरू किया तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये। शहर के प्रमुख दर्शकों द्वारा इन प्लेटफॉर्म प्रदर्शकों को सम्मानित किया गया।
समारोह का उद्घाटन जबलपुर शहर के प्रथम नागरिक महापौर श्री प्रभात साहू ने किया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश विद्युत मंडल केन्द्रीय कीड़ा व कला परिषद के महासचिव श्री संतोष तिवारी, सुप्रसिद्ध कहानीकार प्रो ज्ञानरंजन, जबलपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री गौरीशंकर यादव, विवेचना के अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव, विवेचना के सचिव हिमांशु राय, बांकेबिहारी ब्यौहार, निदेशक वसंत काशीकर, संजय गर्ग आदि उपस्थित थे। महापौर श्री प्रभात साहू ने कहा कि विवेचना के इस आयोजन ने पूरे देश में जबलपुर का नाम रोशन किया है। समारोह के नाटकों के उच्च स्तर से समारोह की गरिमा बढ़ी है। आज जबलपुर के नागरिक गर्व से कहते हैं कि हमारे शहर में हर साल एक शानदार नाट्य समारोह होता है।
इस अवसर पर जबलपुर के वरिष्ठ अभिनेता श्री गौरीशंकर यादव का अभिनंदन किया गया। श्री गौरीशंकर यादव ने रामलीला और बंगला नाटकों से शुरूआत करके विभिन्न नाट्य दलों और निर्देशकों के साथ काम किया। गांव गांव शहर शहर घूमकर नाटकों के प्रदर्शन किए। अलखनंदन के निर्देशन में हुए ’वेटिंग फॉर गोदा’े में उनका अभिनय यादगार रहा। श्री गौरीशंकर यादव ने अपने संबोधन में ’वेटिंग फॉर गोदो’ के एक संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि लंबे जीवन का सफर अब खत्म होने को आ रहा है। जीवन की शाम है। पर संतोष है कि नाटकों में काम करते हुए हमने एक सार्थक जीवन जिया।
उद्घाटन के पश्चात् विवेचना, जबलपुर के नाटक ’मौसाजी जैहिन्द’ का मंचन हुआ। यह उदयप्रकाश की कहानी ’मौसाजी’ पर आधारित है। निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। इस नाटक की खासियत ये रही कि इसमें विवेचना द्वारा सितंबर माह में आयोजित थियेटर वर्कशॉप में शामिल युवाओं और महिलाओं ने काम किया है। इनमें से अधिकंाश ने पहली बार मंच पर कदम रखा। मौसाजी की कहानी मौसाजी नाम के चरित्र के आसपास घूमती है जो आज भी आजादी के पहले के समय में रह रहा है। उन्होंने अपने अंदर एक झूठा संसार रच लिया है। उनके दोस्त महात्मा गांधी भी थे आज के मुख्यमंत्री भी दोस्त हैं। उनके किस्से और गप्पें उनके मोहल्ले वाले बड़े चाव से सुनते हैं और यह भ्रम बनाये रखते हैं कि वे मौसाजी की बातें को सच मानते हैं। मौसाजी के हर किस्से के नायक वे स्वयं हैं। कहानी को सार्थकता और विस्तार देने के लिए ज्ञान चतुर्वेदी और शरद जोशी की कहानियों के कुछ अंश भी बहुत सधे तरीके से इस्तेमाल हुए हैं। नाटक में बहुत शानदार सैट और बहुत अच्छी प्रकाश परिकल्पना देखने को मिली।
नाट्य समारोह के दूसरे दिन शब्दकार, दिल्ली का नाटक ’रूप अरूप’ मंचित हुआ। इसका निर्देशन त्रिपुरारी शर्मा ने किया है। यह नाटक एक दूसरे नाटक ’रंगधूलि’ से उद्भूत है। दरअसल यह एक इम्प्रोवाईजे़शन है। नौटंकी में पहले केवल पुरूष कलाकार होते थे। महिलाओं के रोल भी पुरूष ही निभाते थे। समय के साथ बदलाव हुआ और महिलाएं नौटंकी में काम करने आईं। ये प्रायः बेड़नी जाति की थीं। इनका परंपरागत काम ही महफिलों में नाचना था। मंच इनके लिए एक सपना था। मंच पर पहुचने पर उनका स्वाभाविक अभिनय निखरा और पहले काम कर रहे पुरूषों का अहम आहत हुआ। उसके लिए अस्मिता का संकट पैदा हो गया। पुरूष और महिला कलाकारों के बीच और स्वयं पुरूष के अंदर एक बदलाव का युग शुरू होता है। बदलाव के इस युग में महिला का अभिनय महिला ही करने लगती है और पुरूष अपने अंदर के पुरूष की पहचान खोजने लगता है। गौरी देवल और हैप्पी रंजीत सिंह ने इस दो पात्रीय नाटक को अपने अभिनय से ऐसा संवारा कि दर्शक अभिनय के नए नए रंग खोजने में खो गये। गति करते फ्रेम और उनकी छबियां, अद्भुत प्रकाश परिकल्पना ने नाटक को बहुत ऊंचाई दी।
नाट्य समारोह के तीसरे दिन नटरंग, जम्मू के कलाकारों ने बलवंत ठाकुर के निर्देशन में ’घुमाई’ नाटक का मंचन किया। बलवंत ठाकुर के काम से जबलपुर के दर्शक भली भांति परिचित हैं। इस बार चार साल बाद बलवंत ठाकुर का नाटक जबलपुर में हुआ। जबलपुर में घुमाई के मंचन के समय कुछ लोगों को यह संशय था कि डोगरी भाषा होने के कारण कितने दर्शक इसे ग्रहण कर पायेंगे। पर बलवंत ठाकुर के निर्देशन में तैयार नाटकों में अभिनय और प्रस्तुति के बीच भाषा गौण हो जाती है और दर्शक नाटक से दिल से जुड़ जाता है। घुमाई डोगरी की एक लोककथा पर आधारित है। इसकी शुरूआत शादी की रस्म पूरी होने के बाद विदाई के कार्यक्रम से होती है। बहू की डोली और बाराती ससुराल के लिए चल पड़ते हैं। जैसे ही कठिन चढ़ाई शुरू होती है दुल्हन को प्यास लगती है और वो पानी मांगती है। उस पर कोई ध्यान नहीं देता। उसकी प्यास बढ़ती जाती है और वो बार बार पानी मांगती है। उसे समझाया जाता है कि जहां भी पानी मिलेगा वहां रूक कर पानी पिला दिया जाता है। एक स्थिति ऐसी आती है कि दुल्हन की हालत बहुत खराब हो जाती है और डोली को रोकना पड़ता है। सभी को कहा जाता है कि पानी खोजें। बहुत दूर बहुत गहराई में कहीं पानी दिखता है जहां जाना कठिन है। वहां जाने को कोई तैयार नहीं होता। दुल्हन की परेशानी देखकर एक युवक अंततः तैयार होता है। उसे सब समझाते हैं कि जान का खतरा है पर वो निकल पड़ता है। वो पानी लेकर लौट के आता है दुल्हन की प्यास बुझाता है पर इसी दौरान अधिक थकान से उसकी मौत हो जाती है। दुल्हन घोषणा करती है कि आज से वो विधवा हो गई है क्योंकि केवल शादी की रस्म से कोई पति नहीं हो जाता। जो पत्नी के लिए बजान की बाजी लगाता है वो ही असली पति होता है। नटरंग जम्मू के नाटक में संगीत अभिनय और प्रकाश परिकल्पना ने दर्शकों का दिल जीत लिया।
विवेचना के नाट्य समारोह के चौथे दिन नया थियेटर, भोपाल के कलाकारों ने ’चरणदास चोर’ का मंचन किया। यह पहला अवसर था कि जब हबीब साहब जबलपुर में टीम के साथ नहीं थे। चरणदास चोर के अनगिनत मंचन पूरी दुनिया में हुए हैं और इसकी कहानी सभी को ज़बानी याद है। फिर भी किसी हिट फिल्म की तरह इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं होती। जबलपुर में विवेचना के नाट्य समारोह में चरणदास चोर को देखने के लिए दर्शक टूट पड़े। नाटक को हमेशा की तरह खूब पसंद किया गया। तरंग के भव्य मंच पर पंथी नृत्य ने खूब समा बांधा। चरणदास चोर और सिपाही की भूमिका निभा रहे चेतराम यादव और रविलाल सांगड़े के अभिनय को कभी भूला नहीं जा सकता।
विवेचना के नाट्य समारोह के पांचवें दिन एकजुट मुम्बई के कलाकारों ने ’यार बना बडी’ का मंचन किया। इसमंे जाने माने फिल्म कलाकार यशपाल शर्मा, सज्जाद और राजेश बलवानी मंच पर थे। नाटक में तीन दोस्तों की तिकड़ी में से एक दोस्त अचानक असामान्य होकर बड़ी बड़ी बातें करने लगता है। अपनी जमीन और दोस्तों को भूल जाता है। बाकी के दोनों दोस्त उसे राह पर लाने का बीड़ा उठाते हैं। उससे लगातार संवाद करते हैं। और एक दिन उसे अपनी भूल का अहसास होता है। तीनों दोस्त फिर एक हो जाते हैं। कहानी में अनेक उतार चढ़ाव आते हैं। तीनों अभिनेताओं ने अपने सहज अभिनय, तत्परता और सामंजस्य से नाटक को सफल बनाया। दर्शकों ने नाटक का भरपूर आनंद लिया।
पांच नाटक, पांच प्लेटफॉर्म प्रदर्शन, चित्र प्रदर्शनी, पुस्तक प्रदर्शनी से भरा पूरा यह समारोह विवेचना के यादगार समारोहों में से एक माना जाएगा। दर्शकों ने हर दिन पूरे हॉल को भरकर यह साबित किया कि जबलपुर में विवेचना के नाट्य समारोह पर उन्हें भरपूर विश्वास है। विवेचना के द्वारा आमंत्रित नाट्य दलों ने अपने सुंदर प्रदर्शन और मित्र भाव से समारोह को चार चांद लगाए। प्रत्येक नाटक के अंत में निर्देशक व संस्था को विख्यात चित्रकार हरि भटनागर की पेन्टिंग भेंट कर सम्मानित किया गया। हर नाटक के बाद निर्देशक ने दर्शकों से बात की और इस बात को रेखांकित किया कि हर दर्शक को अच्छा नाटक चाहिए लेकिन हर नाटक को अच्छा दर्शक भी चाहिए। विवेचना के नाट्य समारोह में न केवल हॉल की क्षमता भर दर्शक आए वरन् हर नाटक की अच्छाईयों को उन्होंने विशेष रूप से लक्षित किया और सराहा।

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