Wednesday, February 2, 2011
जबलपुर में पहली बार बांगला नाट्य उत्सव का आयोजन
जबलपुर में पहली बार बांगला नाट्य उत्सव का आयोजन हुआ। विवेचना जबलपुर और जबलपुर बंगाली एसोसियेशन ने मिलकर पश्चिम बंग नाट्य अकादमी के सहयोग से इस समारोह को संयोजित किया। पश्चिम बंग नाट्य अकादमी पश्चिम बंगाल सरकार की सरकार की एक इकाई है। नाट्य अकादमी द्वारा हर वर्ष बंगाल के बाहर किसी शहर में बंगला नाटकों के समारोह का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष विवेचना के विशेष आग्रह पर इसे जबलपुर में आयोजित किया गया। जबलपुर के सभी बंगाली क्लब और काली बाड़ी संगठन जो जबलपुर बंगाली एसोसियेशन के अंतर्गत संगठित हैं इसमें शामिल हुए। 16 सितंबर से 19 सितंबर 2010 तक आयोजित इस चार दिवसीय नाट्य समारोह का उद्घाटन जबलपुर के मेयर श्री प्रभात साहू, बंगाल के वरिष्ठ निर्देशक मनोज मित्रा व चन्दन सेन ने किया। इस अवसर पर पश्चिम बंगाल सरकार के संस्कृति सचिव श्री सोमनाथ मुखोपाध्याय ने नाट्य अकादमी की गतिविधियों की जानकारी दी। इस समारोह में चार नाटक मंचित किए गए।
नाट्य समारोह के प्रथम दिन जबलपुर के बंगला कलाकारों ने तपन चक्रवर्ती के निर्देशन में ’जनवरी 64’ नाटक का मंचन किया। कोलकाता में जनवरी 1964 में हुए हिन्दू मुस्लिम दंगों की पृष्ठभूमि में यह नाटक स्कूल की अध्यापिका द्वारा एक मुस्लिम युवक के प्राणों की रक्षा की कहानी है। दर्शकों की भारी उपस्थिति के बीच नाटक को बहुत सराहना मिली।
नाट्य समारोह के दूसरे दिन बंगाल के वरिष्ठ और सम्मानित निर्देशक मनोज मित्रा का नाटक ’’ साजानो बागान’’ मंचित हुआ। साजानो बागान जमींदार द्वारा गरीब किसान की जमीन ह्रड़प लेने की साजिशों की कहानी है। नाटक में जमींदार के हथकंडे और जमीन हड़पने की हवस इतनी प्रबल रहती है कि मर कर भी वह भूत बनकर जमीन के इर्दगिर्द ही मंडराता है। समय परिस्थितियों के मुताबिक नाटक में अनेक मोड़ होते हैं पर अंत में जीत गरीब बान्छाराम की ही होती है। बांछाराम के रूप में निर्देशक मनोज मित्र स्वयं थे। उनके अभिनय को देखना एक निराला अनुभव था। नाटक का सैट व लाइट बहुत प्रभावशाली थी। इस अवसर पर बोलते हुए मनोज मित्र ने कहा कि जबलपुर में वे पहली बार आए हैं और यहां विवेचना व बंगाली समाज द्वारा आयोजित नाट्य समारोह बहुत अच्छी कोशिश है। आज नाटक का समय बहुत अच्छा नहीं है। फिल्म और टी वी के माध्यम बहुत प्रभावी हैं। पर नाटक हमेशा चलते रहेंगे। जरूरत है जबलपुर में किए गए नाट्य समारोह जैसे प्रयासों की।
समारोह के तीसरे दिन नाटककार, निर्देशक चंदन सेन के नाटक ’’ हासे आश्रु नोदी ’’ का मंचन किया गया। नाटक की शुरूआत एक ऐसे व्यक्ति से होती है जो कभी कारखाने में कैशियर हुआ करता था। कारखाना बंद होने पर वह बेरोजगार हो जाता है। परिवार वालों को भरण पोषण करने के लिए वह बड़े बड़े लोगों की खुशामद करता है और बदले में मिली बख्शीश से उसका घर चलता है। उसकी एक बेटी भी है जो कहीं नौकरी करती है। घर वाले नहीं जानते कि वह कहां नौकरी करती है। दरअसल वह घर से निकलकर बाहर युवकों को आकर्षित करती है और बाद में हल्ला मचाकर पकड़वा देने की धमकी देकर रूपये एंेठती है। इसी बीच उसकी मुलाकात गांव के एक गरीब लड़के से होती है जो उसे बहुत चाहता है। एक दिन लड़की का पिता लड़की को रंगे हाथों पकड़ लेता है। लड़की को अपने किए का बहुत पछतावा होता है।
नाटक में भव्य सैट और लाइट का अनोखा प्रयोग किया गया। नाटक मंे पूरे समय जिज्ञासा और रूचि बनी रही। नाटक को और चंदन सेन को बहुत सराहना मिली।
नाट्य समारोह के अंतिम दिन उषा गांगुली के निर्देशन में ’मुक्ति’ नाटक का मंचन किया गया। उषा जी मूलतः हिन्दी नाटक ही करती हैं। मुक्ति उनका विशिष्ट बंगला नाटक है। नारी आखिर कब तक बंधनों में बंधकर रहेगी ? क्या शोषण ही उसकी नियति है ? नाटक की मुख्य पात्र है मुक्ति जो दूसरों के लिए जीती है। कोई उसे बहन, कोई बुआ, कोई मौसी बबनाकर अपना अपना काम निकालते हैं लेकिन मुकित को मुक्ति कैसे मिले वह अपने लिए क्या सपने संजोए ये किसी को फिक्र नहीं है। एक घर मंे नन्हीं बालिका नीना से उसकी मुलाकात होती है। दोनों में गहरी दोस्ती हो जाती है। नीना मुक्ति को समझाती है। उसे उसकी अपनी ताकत का एहसास कराती है। मुक्ति अपने किंए काम का पैसा लेकर जाने लगती है। घर के लोग उससे तब भी यही पूछते हैं कि इस उम्र में वह क्या लाल जोड़ा पहनने जा रही है ? नाटक के अंत में मुक्ति इस समाज से एक प्रश्न पूछती है कि जीवन की इस संाझ में क्या उसे अपनी इच्छा से जीने का हक नहीं है ? वो कहां जाए ?
दर्शकों से बात करते हुए उषा जी ने कहा कि थियेटर में काम करना उन्हें संतोष देता है। थियेटर हमें तात्कालिक प्रसिद्धि नहीं देता लेकिन व्यक्ति और समाज की समस्याओं को सम्प्रेषित करने का यह सशक्त माध्यम है। उनका सौभाग्य है कि वो थियेटर से जुड़ीं जिसके कारण उन्हें मानव जीवन के सतरंगे पहलुओं को अध्ययन करने का मौका मिला। उनके नाट्य दल ’रंगकर्मी’ 200 कलाकार हैं जो निरंतर सृजन करने में उनकी मदद करते हैं। होली, रूदाली, महाभोज, कोर्ट मार्शल, मुक्ति, काशीनामा, उनके प्रसिद्ध नाटक हैं।
जबलपुर में बंगला समाज में यह नाट्य समारोह एक अलख जगा गया है। बड़ी संख्या में नए पुराने दर्शक नाटक देखने पंहुचे और यह विश्वास दिलाया कि अगला समारोह और ज्यादा सफल होगा। विवेचना और जबलपुर बंगाली एसोसियेशन ने दर्शकों का आभार व्यक्त किया।
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