विवेचना
जबलपुर में सन् 1960 के आसपास का समय सांस्कृतिक रूप से सक्रियता का समय था। शहर में युवकों और प्रौढ़ों की एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी थी जो राजनैतिक रूप से बहुत सजग थे और लगातार साहित्यिक, राजनैतिक गतिविधियों पर आलोचक की नजर रखते थे। निरंतर चर्चाओं और गोष्ठियों का क्रम चला करता था। कुछ अड्डे भी थे जहां लोग जमा होते थे और बातचीत हुआ करती थी। प्रोफेसर ताम्हनकर ने इन्हीं दिनों एक ऐसे मंच की जरूरत महसूस की जो विभिन्न ज्वलंत विषयों पर परिसंवाद आयोजित करे। विशिष्ट वक्ताओं को बुलाकर व्याख्यान आयोजित किये जा सकें। इसी विचार के साथ विवेचना का जन्म हुआ। उस समय विवेचना में सक्रिय हुए सर्वश्री हरिशंकर परसाई, मायाराम सुरजन, शेषनारायण राय, डा रमन, महेन्द्र वाजपेयी, हनुमान वर्मा, ज्ञानरंजन, डा के के वर्मा, डा ए पी सिंह आदि।
विवेचना के गठन के बाद परिसंवादों का लंबा सिलसिला शुरू हुआ। भारत को अणुबम बनाना चाहिये या नहीं, चेकोस्लाविया प्रकरण, खाद्यान्न व्यापार का अधिग्रहण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जैसे अनेक प्रश्नों पर गंभीर परिसंवाद आयोजित किये गये। चेकोस्लाविया प्रकरण पर बोलने के लिये उड़ीसा के तत्कालीन राज्यपाल विशंभरनाथ पांडे आये थे।
प्रो ताम्हनकर विवेचना के जन्मदाता और प्रमुख संयोजक थे। प्रायः व्याख्यान नगर निगम के वर्तमान बैठक कक्ष में आयोजित होते थे जो उस समय सार्वजनिक बैठकों के लिये इस्तेमाल किया जाता था। गोष्ठियां लगातार जारी रहीं यद्यपि पुराने लोग कम होते गए पर नए सक्रिय लोगों का आना भी जारी रहा। सन् 1974-75 के आसपास विवेचना में प्राध्यापकों का एक नया समूह सक्रिय हुआ। एक नया विचार उठा कि बात को कहने के लिये सभागार से बाहर निकल कर बाहर सड़क पर आया जाए। इस विचार से शुरूआत हुई नाटकों की। विवेचना में कुछ युवा और छात्र जुडे़। अलखनंदन विवेचना में आए और उनने नाटकों के निर्देशन का बीड़ा उठाया। उस समय एम ए के छात्र शशांक ने एक रात में नुक्कड़ नाटक लिखा ’जैसे हम लोग’ और 1 मई 1975 को इस नाटक का प्रदर्शन नगर की सड़कों चौराहों पर किया गया। जबलपुर शहर में पहला अवसर था जब नुक्कड़ नाटक मंचित हुआ। यही समय था जब संस्कृति विभाग ने मध्यप्रदेश कला परिषद ( राज्य संगीत नाटक अकादमी ) के अंतर्गत गतिविधियां शुरू की थीं। पहले नाट्य समारोह से विवेचना के नाटक कला परिषद के समारोहों के अनिवार्य अंग बन गये। उसके बाद विवेचना में प्रतिवर्ष कम से कम एक नया नाटक तैयार हुआ। पहला मंच नाटक गिनी पिग (1976) था। इसका मंचन सतना में भी हुआ। फिर तैयार हुआ फज्ल ताबिश का नाटक डरा हुआ आदमी (1977) इसके शो रायपुर व लखनऊ में भी हुए। गोदो के इंतजार में (1978) विवेचना की महत्वपूर्ण प्रस्तुति रही जिससे अलखनंदन एक प्रतिभाशाली निर्देशक के रूप में सामने आए। इसका भोपाल मंचन आज भी याद किया जाता है। लखनऊ से आए चितरंजन दास के निर्देशन में हमीदुल्ला का नाटक दरिन्दे(1978) तैयार हुआ। यह नाटक बहुत लोकप्रिय हुआ और इसके मंचन सागर शहडोल अमलाई आदि में हुए और बहुत चर्चित हुआ। दुलारी बाईे(1979) का मंचन भी विवेचना की उपलब्धि रहा। मणिमधुकर के कम चर्चित नाटक ’इकतारे की आंख’ े(1979) का प्रथम मंचन विवेचना ने किया। इसका शो श्रीराम सेंटर दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य समारोह (1979)में किया गया। फज्ल ताबिश का दूसरा महत्वपूर्ण नाटक अखाड़े से बाहर (1980) तैयार हुआ जिसका मंचन ग्वालियर, भोपाल, रायपुर आदि में भी हुआ। इसी समय भोपाल में भारत भवन रंगमंडल बना जिसमें जबलपुर से अलखनंदन, गंगा मिश्रा और राजकुमार कामले चुने गये। अलखनंदन के भारत भवन चले जाने के बाद विवेचना के नाटकों निर्देशन अरूण पांडेय ने किया। इस दौरान बादल सरकार का नाटक जुलूस(1981) तैयार किया गया। इसके मंचन बहुत हुए। उज्जैन, रीवां मंे इसके यादगार मंचन हुए। इसी समय 1983 में बंसी कौल जबलपुर आए और कालिदास अकादमी के लिये आचार्य दण्डी का नाटक ’दशकुमार चरित’ तैयार कराया। इसका मंचन कालिदास समारोह उज्जैन में हुआ। इसमें प्रमुख भूमिका हिमांशु राय की थी। सन् 1983 मंे अलखनंदन ने ’बकरी’ नाटक तैयार करवाया। इसके मंचन बहुत सराहे गये। 1984 में अलखनंदन ने भोपाल से आकर दो नुक्कड़ नाटक तैयार कराये। ’राजा का बाजा’ और ’मशीन’। तपन बैनर्जी ने ’इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ का नाट्य रूपांतर किया और उन्हीं के निर्देशन में यह नाटक तैयार हुआ। इन तीन नुक्कड़ नाटकों के सैकड़ों प्रदर्शन जबलपुर व पूरे मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के साथ ही देश में अनेक शहरों में हुए। इससे विवेचना को राष्ट्रीय पहचान मिली। सन् 1985 में वसंत काशीकर के निर्देशन में ’पोस्टर’ तैयार हुआ। तपन बैनर्जी के निर्देशन में ’राम रचि राखा’ (1986) और ’एक अराजक की अचानक मौत’ (1987)तैयार किये गये और बहुत पसंद किये गये। इसी बीच आलोक चटर्जी जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में छात्र थे कई बार जबलपुर आए। उन्होंने तीन कहानियों के मंचन किए। विवेचना के कलाकारों के साथ ’सगीना महतो’ (1984) नाटक तैयार कराया। बाद में ’इडीपस’ और संस्कृत नाटक ’उरूभंगम’ तैयार कराया। इसी दौर में विवेचना ने ’लोककथा’, ’हरदौल’, ’भोले भड़या’, ’दूर देश की कथा’, जैसे नाटक भी तैयार किये जिनके बहुत मंचन प्रदेश के अनेक शहरों में हुए। 1989 में विवेचना को संगीत नाटक अकादमी की यंग डायरेक्टर्स योजना के अंतर्गत अरूण पांडेय के निर्देशन में ’ईसुरी’ नाटक करने का मौका मिला। इसे बाद में ’हंसा उड़ चल देस बिराने’ नाम दिया गया। यह नाटक बहुत प्रसि़द्ध हुआ और पूरे देश में इसके तीस से अधिक के लगभग मंचन हुए। इस नाटक के मंचन दिल्ली, चंडीगढ़, जम्मू, शिमला, पटियाला, कुरूक्षेत्र, हुबली, सागर, भोपाल, रायगढ़, बिलासपुर, जयपुर, आदि शहरों में हुए। विवेचना ने सन् 1990 में ’रामलीला’ और ’सैंया भये कोतवाल’ आलोक चटर्जी के निर्देशन में तैयार किये। ’रामलीला’ के अनेक मंचन हुए। ’हानूश’ (1991) और ’थैंक यू मिस्टर ग्लाड’ (1993) विवेचना की अनूठी प्रस्तुति साबित हुए और इनके बहुत से मंचन हुए। ’हानूश’ में प्रमुख भूमिका नवीन चौबे ने और ’थेंक यू मि ग्लाड’ में प्रमुख भूमिका हिमांशु राय ने निबाही। इस दौरान हुए नाट्य शिविरों में ’मखना के बापू’, ’मोटेराम का सत्याग्रह’ आदि की भी प्रस्तुतियां हुईं। विवेचना का चर्चित नाटक ’निठल्ले की डायरी’ परसाई जी की रचनाओं का कोलाज है जो 1996 में तैयार हुआ और आज तक इसके सर्वाधिक मंचन हुए हैं। नवीन चौबे के निर्देशन में परसाई जी की रचनाओं पर ’मैं नर्क से बोल रहा हूं’ (1998) तैयार हुआ जिसके मंचन लोकप्रिय हुए। सन् 1999 में उदयप्रकाश की कहानी पर अरूण पांडेय के निर्देशन में ’और अंत में प्रार्थना’ तैयार हुआ। सन् 2000 में अरूण पांडेय के निर्देशन में ’चौक परसाई’ जो परसाई जी की रचनाओं का था कोलाज तैयार किया गया। जावेद जैदी, भोपाल के निर्देशन में 2002 में ’मुआवजे’ नाटक तैयार होकर मंचित हुआ।
विवेचना ने अरूण पांडेय के निर्देशन में मुक्तिबोध की रचनाओं पर ’तुम निर्भय ज्यों सूर्य गगन में’ कविता मंचन तैयार किया जिसपर दूरदर्शन ने फिल्म भी बनाई। अनेक कवियों की कविताओं के मंचन किये गये।
सन् 2002 तक एक साथ काम करने के बाद सन् 2003 से अरूण पांडेय और नवीन चौबे ने ’विवेचना रंगमंडल’ के नाम से मूल संस्था ’विवेचना’ से अलग होकर काम करना शुरू कर दिया। उनका 2006 का अलग पंजीयन है। नामों के साम्य के कारण मूल विवेचना संस्था के बारे में गलतफहमी होती रहती है। हिमांशु राय व बांकेबिहारी ब्यौहार ने इस स्थिति से उबरकर विवेचना को सम्हाला और आज भी मूल संस्था विवेचना अपने श्रेष्ठ नाट्य मंचनों और श्रेष्ठ आयोजनों के कारण भारत में सम्मान के साथ जानी जाती है।
सन् 2006 में विवेचना के पुराने साथी वसंत काशीकर ने मूल विवेचना संस्था के कलाकारों को जोड़कर नाटकों की तैयारी शुरू की। सन् 2006 में वसंत काशीकर के निर्देशन में विवेचना ने ’मायाजाल’ नाटक तैयार किया। सन् 2007 में वसंत काशीकर के निर्देशन में ’मानबोध बाबू’ तैयार हुआ। सन् 2008 में वसंत काशीकर के निर्देशन में ’सूपना का सपना’ तैयार हुआ। सन् 2009 में ’मित्र’ नाटक मंचित हुआ। सन् 2010 में ’मौसाजी जैहिन्द’ नाटक मंचित हुआ। सन् 2011 में नाटक ’दस दिन का अनशन’ मंचित हुआ। सन् 2012 में नाटक ’सवाल अपना अपना’ का मंचन हुआ। सन् 2013 में बादल सरकार के नाटक ’बड़ी बुआ जी’ का मंचन जबलपुर व इंदौर में हुआ। सन् 2014 में तपन बैनर्जी के निर्देशन में ’कंजूस’ का मंचन हुआ। मायाजाल, मानबोध बाबू, सूपना का सपना, दस दिन का अनशन मंे प्रमुख भूमिकाएं संजय गर्ग और सीताराम सोनी ने निबाहीं। मित्र, मौसाजी जैहिन्द में प्रमुख भूमिका वसंत काशीकर ने निबाहीं। विवेचना के नाटकों के मंचन भोपाल, मंडला, नरसिंहपुर, रायपुर, भिलाई, इलाहाबाद, बनारस, नागपुर, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कलकत्ता, मुम्बई, दिल्ली, लखनऊ आदि शहरों में हुए हैं। विवेचना को मुम्बई के सुप्रसिद्ध ’काला घोउ़ा फेस्टीवल’ में 2014 व 2015 में लगातार आमंत्रित किया गया जहां विवेचना के नाटक ’मानबोध बाबू’, ’दस दिन का अनशन’ और ’मौसाजी जैहिन्द’ बहुत पसंद किए गए।
विवेचना द्वारा सन् 1983 में पहला नाट्य शिविर आयोजित किया गया। इसमें शहर के 80 युवा शामिल हुए। तब से प्रतिवर्ष नाट्य शिविर का आयोजन एक अनिवार्यता बन गयी। आज जबलपुर में जो लोग रंगकर्म में सक्रिय हैं या पिछले कुछ सालों तक सक्रिय रहे हैं वो सभी विवेचना के किसी न किसी वर्कशाप की देन हैं। वर्ष 2008 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से विवेचना ने सुनील सिन्हा के निर्देशन में थियेटर वर्कशाप आयोजित किया। विवेचना द्वारा महाविद्यालयों में एक दिवसीय नाट्य कार्यशाला का आयोजन बहुत लोकप्रिय रहा है। विवेचना द्वारा मेकअप, लाइट सैट आदि तकनीकी विषयों पर कार्यशालाऐं आयोजित की गई हैं। बच्चों की कार्यशालाएं व स्कूलों में बच्चों के लिये कार्यशालाएं नियमित रूप से आयोजित होती हैं।
विवेचना द्वारा सन् 1994 से राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन शुरू किया गया है। सन् 1994 से अब तक बाइस राष्ट्रीय नाट्य समारोहों में अब तक अबतक सर्वश्री हबीब तनवीर, बा.व.कारंत, बंसी कौल, सतीश आलेकर, राज बिसारिया, जुगल किशोर, तनवीर अख्तर, दिनेश खन्ना, नादिरा बब्बर, के एस राजेन्द्रन, उषा गांगुली, अरविंद गौड़, सुरेश भारद्वाज, अशोक बांठिया, पियूष मिश्रा, रंजीत कपूर, अनिलरंजन भौमिक, संजय उपाध्याय, इप्टा भिलाई, वेदा राकेश, नजीर कुरैशी, बलवंत ठाकुर, जावेद जैदी व श्रीमती गुलबर्धन, अलखनंदन, लईक हुसैन, विजय कुमार, अजय कुमार, विवेक मिश्रा, अशोक राही, वसंत काशीकर, दिनेश ठाकुर, अजित चौधरी, रवि तनेजा, जे पी सिंह मानव कौल,डा एम सईद आलम, रमेश तलवार, अनूप जोशी, इमरान राशिद, त्रिपुरारी शर्मा, महमूद फारूखी, मनीष जोशी, अनूप जोशी, अर्जुनदेव चारण, सुदेश शर्मा, अवनीश मिश्रा, दानिश इकबाल, इश्तियाक आरिफ खान, द्वारा निर्देशित 115 नाटक मंचित हो चुके हैं। जबलपुर का यह नाट्य समारोह अब पूरे देश में रंगकर्मियों को आकर्षित करता है। विवेचना का नाट्य समारोह बहुत सुनियोजित और सुव्यवस्थित आयोजन है जिसके कारण आज विवेचना के समारोह का आकर्षण पूरे देश में है। विवेचना के समारोह में प्रतिदिन 800 दर्शक आते हैं। विवेचना ने नाटकों के लिए एक बड़ा दर्शक वर्ग विकसित किया है।
विवेचना द्वारा समय समय पर सामयिक विषयों पर संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। सन् 1982 में विवेचना ने साम्प्रदायिकता पर राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन किया। सन् 1986 में ’हिन्दी का जातीय गद्य’ पर राष्ट्रीय गोष्ठी आयोजित की गई। सन् 1996 में ’साक्षरता’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई। सन् 1998 में ’हिन्दी थियेटर’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। सन् 2005 में ’सामाजिक आन्दोलनों में रंगकर्म की भूमिका’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई। स्थानीय स्तर पर विवेचना द्वारा प्रतिमाह गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। मिर्जा गालिब पर और विजय तेंदुलकर पर वर्ष 2008 में गोष्ठियां आयोजित हुईं। विश्व रंगमंच दिवस, 23 मार्च भगतसिंह शहादत दिवस पर विवेचना द्वारा प्रतिवर्ष आयोजन किये जाते हैं। प्रतिवर्ष 22 अगस्त को परसाई जन्मदिवस के अवसर पर परसाई जयंती मनाई जाती है जिसमें एक विद्वान का व्याख्यान होता है। विवेचना ने जबलपुर में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन सन् 1980, इप्टा म प्र के दूसरे राज्य सम्मेलन सन् 1984 के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई।
विवेचना द्वारा सुगम संगीत के आयोजन, शास्त्रीय गायन पर कार्यशाला, लोकनृत्य और लोकगायन पर केन्द्रित आयोजन भी किये जाते हैं। विवेचना द्वारा सुप्रसिद्व फोटोग्राफर ओ पी शर्मा की कार्यशाला और अन्तराष्ट्रीय छायाचित्र प्रदर्शनी के आयोजन किये गये हैं। चित्रकार हरि भटनागर की कला प्रदर्शनी, नगर के चार चिकित्सकों की कला प्रदर्शनी जैसे आयोजन भी विवेचना ने किये हैं।
विवेचना का बाकायदे गठन और रजिस्ट्रेशन सन् 1975 मंे हुआ। प्रो ज्ञानरंजन, प्रो एम बी पटैल, प्रो एम जी पटेरिया, प्रो मधुमास खरे, प्रो प्रभात मिश्रा, डा श्यामसुंदर मिश्र, डा मलय उस दौर में विवेचना के सूत्रधार और पदाधिकारी रहे। शशंाक, हिमांशु राय, नंदकिशोर पांडेय, अजय घोष, अलखनंदन, राजकुमार ठाकुर, गौरीशंकर यादव, प्रमोद सोलंकी, राम गुलवानी, तपन बैनर्जी, राजेन्द्र दानी, अरूण पांडेय, सीताराम सोनी,राकेश दीक्षित, वसंत काशीकर, बांकेबिहारी ब्यौहार आदि विवेचना के उस दौर के साथी हैं जब विवेचना आकार ले रही थी। इस दौरान जबलपुर शहर के सैकड़ों युवा विवेचना से जुडे़ और अपना अपना योगदान दिया।
इप्टा से विवेचना का विश्ेाष सरोकार है। विवेचना इप्टा की जबलपुर इकाई के रूप में कार्यरत है। विवेचना के सचिव हिमांशु राय इप्टा के राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य व मध्यप्रदेश इप्टा के अध्यक्ष हैं। जबलपुर से विवेचना द्वारा इप्टावार्ता मासिक का प्रकाशन किया जाता है। विवेचना द्वारा समय समय पर अनेक पुस्तिकाओं का प्रकाशन किया गया है।
वर्तमान में विवेचना के अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव, राजेन्द्र जैन उपाध्यक्ष व सचिव हिमांशु राय हैं। बांकेबिहारी ब्यौहार कोषाध्यक्ष हैं। विवेचना के कला निर्देशक वसंत काशीकर हैं।
विवेचना से अलग होकर अरूण पांडेय ने सन् 2003 से विवेचना रंगमंडल के नाम से कार्य करना शुरू किया। मूल संस्था विवेचना से विवेचना रंगमंडल का कोई संबंध नहीं है। कृपया भ्रमित न हों।
संपर्क हिमांशु राय, सचिव विवेचना, 657 आमनपुर, नरसिंह वार्ड जबलपुर म प्र पिन 482002
फोन 0761 2422070, 09425387580
बांकेबिहारी ब्यौहार 1184, विजयनगर, कृषि उपज मंडी, जबलपुर म प्र 482002
फोन 0761 2644219, 9827215749
e mail : vivechanajbp@gmail.com
जबलपुर में सन् 1960 के आसपास का समय सांस्कृतिक रूप से सक्रियता का समय था। शहर में युवकों और प्रौढ़ों की एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी थी जो राजनैतिक रूप से बहुत सजग थे और लगातार साहित्यिक, राजनैतिक गतिविधियों पर आलोचक की नजर रखते थे। निरंतर चर्चाओं और गोष्ठियों का क्रम चला करता था। कुछ अड्डे भी थे जहां लोग जमा होते थे और बातचीत हुआ करती थी। प्रोफेसर ताम्हनकर ने इन्हीं दिनों एक ऐसे मंच की जरूरत महसूस की जो विभिन्न ज्वलंत विषयों पर परिसंवाद आयोजित करे। विशिष्ट वक्ताओं को बुलाकर व्याख्यान आयोजित किये जा सकें। इसी विचार के साथ विवेचना का जन्म हुआ। उस समय विवेचना में सक्रिय हुए सर्वश्री हरिशंकर परसाई, मायाराम सुरजन, शेषनारायण राय, डा रमन, महेन्द्र वाजपेयी, हनुमान वर्मा, ज्ञानरंजन, डा के के वर्मा, डा ए पी सिंह आदि।
विवेचना के गठन के बाद परिसंवादों का लंबा सिलसिला शुरू हुआ। भारत को अणुबम बनाना चाहिये या नहीं, चेकोस्लाविया प्रकरण, खाद्यान्न व्यापार का अधिग्रहण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जैसे अनेक प्रश्नों पर गंभीर परिसंवाद आयोजित किये गये। चेकोस्लाविया प्रकरण पर बोलने के लिये उड़ीसा के तत्कालीन राज्यपाल विशंभरनाथ पांडे आये थे।
प्रो ताम्हनकर विवेचना के जन्मदाता और प्रमुख संयोजक थे। प्रायः व्याख्यान नगर निगम के वर्तमान बैठक कक्ष में आयोजित होते थे जो उस समय सार्वजनिक बैठकों के लिये इस्तेमाल किया जाता था। गोष्ठियां लगातार जारी रहीं यद्यपि पुराने लोग कम होते गए पर नए सक्रिय लोगों का आना भी जारी रहा। सन् 1974-75 के आसपास विवेचना में प्राध्यापकों का एक नया समूह सक्रिय हुआ। एक नया विचार उठा कि बात को कहने के लिये सभागार से बाहर निकल कर बाहर सड़क पर आया जाए। इस विचार से शुरूआत हुई नाटकों की। विवेचना में कुछ युवा और छात्र जुडे़। अलखनंदन विवेचना में आए और उनने नाटकों के निर्देशन का बीड़ा उठाया। उस समय एम ए के छात्र शशांक ने एक रात में नुक्कड़ नाटक लिखा ’जैसे हम लोग’ और 1 मई 1975 को इस नाटक का प्रदर्शन नगर की सड़कों चौराहों पर किया गया। जबलपुर शहर में पहला अवसर था जब नुक्कड़ नाटक मंचित हुआ। यही समय था जब संस्कृति विभाग ने मध्यप्रदेश कला परिषद ( राज्य संगीत नाटक अकादमी ) के अंतर्गत गतिविधियां शुरू की थीं। पहले नाट्य समारोह से विवेचना के नाटक कला परिषद के समारोहों के अनिवार्य अंग बन गये। उसके बाद विवेचना में प्रतिवर्ष कम से कम एक नया नाटक तैयार हुआ। पहला मंच नाटक गिनी पिग (1976) था। इसका मंचन सतना में भी हुआ। फिर तैयार हुआ फज्ल ताबिश का नाटक डरा हुआ आदमी (1977) इसके शो रायपुर व लखनऊ में भी हुए। गोदो के इंतजार में (1978) विवेचना की महत्वपूर्ण प्रस्तुति रही जिससे अलखनंदन एक प्रतिभाशाली निर्देशक के रूप में सामने आए। इसका भोपाल मंचन आज भी याद किया जाता है। लखनऊ से आए चितरंजन दास के निर्देशन में हमीदुल्ला का नाटक दरिन्दे(1978) तैयार हुआ। यह नाटक बहुत लोकप्रिय हुआ और इसके मंचन सागर शहडोल अमलाई आदि में हुए और बहुत चर्चित हुआ। दुलारी बाईे(1979) का मंचन भी विवेचना की उपलब्धि रहा। मणिमधुकर के कम चर्चित नाटक ’इकतारे की आंख’ े(1979) का प्रथम मंचन विवेचना ने किया। इसका शो श्रीराम सेंटर दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य समारोह (1979)में किया गया। फज्ल ताबिश का दूसरा महत्वपूर्ण नाटक अखाड़े से बाहर (1980) तैयार हुआ जिसका मंचन ग्वालियर, भोपाल, रायपुर आदि में भी हुआ। इसी समय भोपाल में भारत भवन रंगमंडल बना जिसमें जबलपुर से अलखनंदन, गंगा मिश्रा और राजकुमार कामले चुने गये। अलखनंदन के भारत भवन चले जाने के बाद विवेचना के नाटकों निर्देशन अरूण पांडेय ने किया। इस दौरान बादल सरकार का नाटक जुलूस(1981) तैयार किया गया। इसके मंचन बहुत हुए। उज्जैन, रीवां मंे इसके यादगार मंचन हुए। इसी समय 1983 में बंसी कौल जबलपुर आए और कालिदास अकादमी के लिये आचार्य दण्डी का नाटक ’दशकुमार चरित’ तैयार कराया। इसका मंचन कालिदास समारोह उज्जैन में हुआ। इसमें प्रमुख भूमिका हिमांशु राय की थी। सन् 1983 मंे अलखनंदन ने ’बकरी’ नाटक तैयार करवाया। इसके मंचन बहुत सराहे गये। 1984 में अलखनंदन ने भोपाल से आकर दो नुक्कड़ नाटक तैयार कराये। ’राजा का बाजा’ और ’मशीन’। तपन बैनर्जी ने ’इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ का नाट्य रूपांतर किया और उन्हीं के निर्देशन में यह नाटक तैयार हुआ। इन तीन नुक्कड़ नाटकों के सैकड़ों प्रदर्शन जबलपुर व पूरे मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के साथ ही देश में अनेक शहरों में हुए। इससे विवेचना को राष्ट्रीय पहचान मिली। सन् 1985 में वसंत काशीकर के निर्देशन में ’पोस्टर’ तैयार हुआ। तपन बैनर्जी के निर्देशन में ’राम रचि राखा’ (1986) और ’एक अराजक की अचानक मौत’ (1987)तैयार किये गये और बहुत पसंद किये गये। इसी बीच आलोक चटर्जी जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में छात्र थे कई बार जबलपुर आए। उन्होंने तीन कहानियों के मंचन किए। विवेचना के कलाकारों के साथ ’सगीना महतो’ (1984) नाटक तैयार कराया। बाद में ’इडीपस’ और संस्कृत नाटक ’उरूभंगम’ तैयार कराया। इसी दौर में विवेचना ने ’लोककथा’, ’हरदौल’, ’भोले भड़या’, ’दूर देश की कथा’, जैसे नाटक भी तैयार किये जिनके बहुत मंचन प्रदेश के अनेक शहरों में हुए। 1989 में विवेचना को संगीत नाटक अकादमी की यंग डायरेक्टर्स योजना के अंतर्गत अरूण पांडेय के निर्देशन में ’ईसुरी’ नाटक करने का मौका मिला। इसे बाद में ’हंसा उड़ चल देस बिराने’ नाम दिया गया। यह नाटक बहुत प्रसि़द्ध हुआ और पूरे देश में इसके तीस से अधिक के लगभग मंचन हुए। इस नाटक के मंचन दिल्ली, चंडीगढ़, जम्मू, शिमला, पटियाला, कुरूक्षेत्र, हुबली, सागर, भोपाल, रायगढ़, बिलासपुर, जयपुर, आदि शहरों में हुए। विवेचना ने सन् 1990 में ’रामलीला’ और ’सैंया भये कोतवाल’ आलोक चटर्जी के निर्देशन में तैयार किये। ’रामलीला’ के अनेक मंचन हुए। ’हानूश’ (1991) और ’थैंक यू मिस्टर ग्लाड’ (1993) विवेचना की अनूठी प्रस्तुति साबित हुए और इनके बहुत से मंचन हुए। ’हानूश’ में प्रमुख भूमिका नवीन चौबे ने और ’थेंक यू मि ग्लाड’ में प्रमुख भूमिका हिमांशु राय ने निबाही। इस दौरान हुए नाट्य शिविरों में ’मखना के बापू’, ’मोटेराम का सत्याग्रह’ आदि की भी प्रस्तुतियां हुईं। विवेचना का चर्चित नाटक ’निठल्ले की डायरी’ परसाई जी की रचनाओं का कोलाज है जो 1996 में तैयार हुआ और आज तक इसके सर्वाधिक मंचन हुए हैं। नवीन चौबे के निर्देशन में परसाई जी की रचनाओं पर ’मैं नर्क से बोल रहा हूं’ (1998) तैयार हुआ जिसके मंचन लोकप्रिय हुए। सन् 1999 में उदयप्रकाश की कहानी पर अरूण पांडेय के निर्देशन में ’और अंत में प्रार्थना’ तैयार हुआ। सन् 2000 में अरूण पांडेय के निर्देशन में ’चौक परसाई’ जो परसाई जी की रचनाओं का था कोलाज तैयार किया गया। जावेद जैदी, भोपाल के निर्देशन में 2002 में ’मुआवजे’ नाटक तैयार होकर मंचित हुआ।
विवेचना ने अरूण पांडेय के निर्देशन में मुक्तिबोध की रचनाओं पर ’तुम निर्भय ज्यों सूर्य गगन में’ कविता मंचन तैयार किया जिसपर दूरदर्शन ने फिल्म भी बनाई। अनेक कवियों की कविताओं के मंचन किये गये।
सन् 2002 तक एक साथ काम करने के बाद सन् 2003 से अरूण पांडेय और नवीन चौबे ने ’विवेचना रंगमंडल’ के नाम से मूल संस्था ’विवेचना’ से अलग होकर काम करना शुरू कर दिया। उनका 2006 का अलग पंजीयन है। नामों के साम्य के कारण मूल विवेचना संस्था के बारे में गलतफहमी होती रहती है। हिमांशु राय व बांकेबिहारी ब्यौहार ने इस स्थिति से उबरकर विवेचना को सम्हाला और आज भी मूल संस्था विवेचना अपने श्रेष्ठ नाट्य मंचनों और श्रेष्ठ आयोजनों के कारण भारत में सम्मान के साथ जानी जाती है।
सन् 2006 में विवेचना के पुराने साथी वसंत काशीकर ने मूल विवेचना संस्था के कलाकारों को जोड़कर नाटकों की तैयारी शुरू की। सन् 2006 में वसंत काशीकर के निर्देशन में विवेचना ने ’मायाजाल’ नाटक तैयार किया। सन् 2007 में वसंत काशीकर के निर्देशन में ’मानबोध बाबू’ तैयार हुआ। सन् 2008 में वसंत काशीकर के निर्देशन में ’सूपना का सपना’ तैयार हुआ। सन् 2009 में ’मित्र’ नाटक मंचित हुआ। सन् 2010 में ’मौसाजी जैहिन्द’ नाटक मंचित हुआ। सन् 2011 में नाटक ’दस दिन का अनशन’ मंचित हुआ। सन् 2012 में नाटक ’सवाल अपना अपना’ का मंचन हुआ। सन् 2013 में बादल सरकार के नाटक ’बड़ी बुआ जी’ का मंचन जबलपुर व इंदौर में हुआ। सन् 2014 में तपन बैनर्जी के निर्देशन में ’कंजूस’ का मंचन हुआ। मायाजाल, मानबोध बाबू, सूपना का सपना, दस दिन का अनशन मंे प्रमुख भूमिकाएं संजय गर्ग और सीताराम सोनी ने निबाहीं। मित्र, मौसाजी जैहिन्द में प्रमुख भूमिका वसंत काशीकर ने निबाहीं। विवेचना के नाटकों के मंचन भोपाल, मंडला, नरसिंहपुर, रायपुर, भिलाई, इलाहाबाद, बनारस, नागपुर, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कलकत्ता, मुम्बई, दिल्ली, लखनऊ आदि शहरों में हुए हैं। विवेचना को मुम्बई के सुप्रसिद्ध ’काला घोउ़ा फेस्टीवल’ में 2014 व 2015 में लगातार आमंत्रित किया गया जहां विवेचना के नाटक ’मानबोध बाबू’, ’दस दिन का अनशन’ और ’मौसाजी जैहिन्द’ बहुत पसंद किए गए।
विवेचना द्वारा सन् 1983 में पहला नाट्य शिविर आयोजित किया गया। इसमें शहर के 80 युवा शामिल हुए। तब से प्रतिवर्ष नाट्य शिविर का आयोजन एक अनिवार्यता बन गयी। आज जबलपुर में जो लोग रंगकर्म में सक्रिय हैं या पिछले कुछ सालों तक सक्रिय रहे हैं वो सभी विवेचना के किसी न किसी वर्कशाप की देन हैं। वर्ष 2008 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से विवेचना ने सुनील सिन्हा के निर्देशन में थियेटर वर्कशाप आयोजित किया। विवेचना द्वारा महाविद्यालयों में एक दिवसीय नाट्य कार्यशाला का आयोजन बहुत लोकप्रिय रहा है। विवेचना द्वारा मेकअप, लाइट सैट आदि तकनीकी विषयों पर कार्यशालाऐं आयोजित की गई हैं। बच्चों की कार्यशालाएं व स्कूलों में बच्चों के लिये कार्यशालाएं नियमित रूप से आयोजित होती हैं।
विवेचना द्वारा सन् 1994 से राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन शुरू किया गया है। सन् 1994 से अब तक बाइस राष्ट्रीय नाट्य समारोहों में अब तक अबतक सर्वश्री हबीब तनवीर, बा.व.कारंत, बंसी कौल, सतीश आलेकर, राज बिसारिया, जुगल किशोर, तनवीर अख्तर, दिनेश खन्ना, नादिरा बब्बर, के एस राजेन्द्रन, उषा गांगुली, अरविंद गौड़, सुरेश भारद्वाज, अशोक बांठिया, पियूष मिश्रा, रंजीत कपूर, अनिलरंजन भौमिक, संजय उपाध्याय, इप्टा भिलाई, वेदा राकेश, नजीर कुरैशी, बलवंत ठाकुर, जावेद जैदी व श्रीमती गुलबर्धन, अलखनंदन, लईक हुसैन, विजय कुमार, अजय कुमार, विवेक मिश्रा, अशोक राही, वसंत काशीकर, दिनेश ठाकुर, अजित चौधरी, रवि तनेजा, जे पी सिंह मानव कौल,डा एम सईद आलम, रमेश तलवार, अनूप जोशी, इमरान राशिद, त्रिपुरारी शर्मा, महमूद फारूखी, मनीष जोशी, अनूप जोशी, अर्जुनदेव चारण, सुदेश शर्मा, अवनीश मिश्रा, दानिश इकबाल, इश्तियाक आरिफ खान, द्वारा निर्देशित 115 नाटक मंचित हो चुके हैं। जबलपुर का यह नाट्य समारोह अब पूरे देश में रंगकर्मियों को आकर्षित करता है। विवेचना का नाट्य समारोह बहुत सुनियोजित और सुव्यवस्थित आयोजन है जिसके कारण आज विवेचना के समारोह का आकर्षण पूरे देश में है। विवेचना के समारोह में प्रतिदिन 800 दर्शक आते हैं। विवेचना ने नाटकों के लिए एक बड़ा दर्शक वर्ग विकसित किया है।
विवेचना द्वारा समय समय पर सामयिक विषयों पर संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। सन् 1982 में विवेचना ने साम्प्रदायिकता पर राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन किया। सन् 1986 में ’हिन्दी का जातीय गद्य’ पर राष्ट्रीय गोष्ठी आयोजित की गई। सन् 1996 में ’साक्षरता’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई। सन् 1998 में ’हिन्दी थियेटर’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। सन् 2005 में ’सामाजिक आन्दोलनों में रंगकर्म की भूमिका’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई। स्थानीय स्तर पर विवेचना द्वारा प्रतिमाह गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। मिर्जा गालिब पर और विजय तेंदुलकर पर वर्ष 2008 में गोष्ठियां आयोजित हुईं। विश्व रंगमंच दिवस, 23 मार्च भगतसिंह शहादत दिवस पर विवेचना द्वारा प्रतिवर्ष आयोजन किये जाते हैं। प्रतिवर्ष 22 अगस्त को परसाई जन्मदिवस के अवसर पर परसाई जयंती मनाई जाती है जिसमें एक विद्वान का व्याख्यान होता है। विवेचना ने जबलपुर में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन सन् 1980, इप्टा म प्र के दूसरे राज्य सम्मेलन सन् 1984 के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई।
विवेचना द्वारा सुगम संगीत के आयोजन, शास्त्रीय गायन पर कार्यशाला, लोकनृत्य और लोकगायन पर केन्द्रित आयोजन भी किये जाते हैं। विवेचना द्वारा सुप्रसिद्व फोटोग्राफर ओ पी शर्मा की कार्यशाला और अन्तराष्ट्रीय छायाचित्र प्रदर्शनी के आयोजन किये गये हैं। चित्रकार हरि भटनागर की कला प्रदर्शनी, नगर के चार चिकित्सकों की कला प्रदर्शनी जैसे आयोजन भी विवेचना ने किये हैं।
विवेचना का बाकायदे गठन और रजिस्ट्रेशन सन् 1975 मंे हुआ। प्रो ज्ञानरंजन, प्रो एम बी पटैल, प्रो एम जी पटेरिया, प्रो मधुमास खरे, प्रो प्रभात मिश्रा, डा श्यामसुंदर मिश्र, डा मलय उस दौर में विवेचना के सूत्रधार और पदाधिकारी रहे। शशंाक, हिमांशु राय, नंदकिशोर पांडेय, अजय घोष, अलखनंदन, राजकुमार ठाकुर, गौरीशंकर यादव, प्रमोद सोलंकी, राम गुलवानी, तपन बैनर्जी, राजेन्द्र दानी, अरूण पांडेय, सीताराम सोनी,राकेश दीक्षित, वसंत काशीकर, बांकेबिहारी ब्यौहार आदि विवेचना के उस दौर के साथी हैं जब विवेचना आकार ले रही थी। इस दौरान जबलपुर शहर के सैकड़ों युवा विवेचना से जुडे़ और अपना अपना योगदान दिया।
इप्टा से विवेचना का विश्ेाष सरोकार है। विवेचना इप्टा की जबलपुर इकाई के रूप में कार्यरत है। विवेचना के सचिव हिमांशु राय इप्टा के राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य व मध्यप्रदेश इप्टा के अध्यक्ष हैं। जबलपुर से विवेचना द्वारा इप्टावार्ता मासिक का प्रकाशन किया जाता है। विवेचना द्वारा समय समय पर अनेक पुस्तिकाओं का प्रकाशन किया गया है।
वर्तमान में विवेचना के अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव, राजेन्द्र जैन उपाध्यक्ष व सचिव हिमांशु राय हैं। बांकेबिहारी ब्यौहार कोषाध्यक्ष हैं। विवेचना के कला निर्देशक वसंत काशीकर हैं।
विवेचना से अलग होकर अरूण पांडेय ने सन् 2003 से विवेचना रंगमंडल के नाम से कार्य करना शुरू किया। मूल संस्था विवेचना से विवेचना रंगमंडल का कोई संबंध नहीं है। कृपया भ्रमित न हों।
संपर्क हिमांशु राय, सचिव विवेचना, 657 आमनपुर, नरसिंह वार्ड जबलपुर म प्र पिन 482002
फोन 0761 2422070, 09425387580
बांकेबिहारी ब्यौहार 1184, विजयनगर, कृषि उपज मंडी, जबलपुर म प्र 482002
फोन 0761 2644219, 9827215749
e mail : vivechanajbp@gmail.com
हिमांशु दादा,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा। विवेचना का इतिहास पढ़कर ढेर सारे दृश्य फ़्लैशबैक की तरह सामने से गुज़र गए। मैं भी इसके एकाध चैप्टर का साक्षी रहा हूँ। इसमें कुछेक चीज़ें छूट गई हैं। जैसे दिसंबर 1994 से जुलाई 1995 तक का अक्षर यात्रा से जुड़ने का प्रसंग, जिसमें नुक्कड़ नाटकों और गीतों के सैकड़ों शो किए गए। उसके बाद युवा निर्देशकों को प्रोत्साहित करने के लिए चलाई गई योजना के अंतर्गत अजय काकोनिया निर्देशित 'अरे! मायावी सरोवर' और नानू निर्देशित 'दिल का कमज़ोर'...।
क्या दादा? आपने तो बिलकुल भुला दिया!
अरे मखना के बापू नत्थू की कहानी तो रह ही गया...। मुझे आज तक सबसे प्रासंगिक नाटक यही लगता है। इसमें 72 या 73 लोगों के कोरस ने एक साथ स्टेज पर गाना गाया था।
यह सच है कि जबलपुर, या कहो तो देश के अनेक कोनों में जो रंगमंच से वास्ता रखते हैं, विवेचना से होकर निकले हैं, आप लोगों के संस्कार ही हमारे अंदर मौजूद हैं। आपके साथ बिताए अनेक क्षण... आपकी बातें... सब याद हैं। कभी फुरसत मिली तो चर्चा करेंगे।
आपका ब्लॉग पढ़कर बहुत अच्छा लगा। पर एक शिकायत है। इसमें भी आपने अपनी चिरपरिचित प्रेस-विज्ञप्ति शैली में लिखा है। यह एक अलग चीज़ है। इसमें इतना औपचारिक होने की ज़रूरत नहीं है।
- आनंद